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वेदोत्पत्ति ऋषि की दृष्टि का ||
मैंने आप लोगों को बताया था वेदोत्पत्ति के विषय को ऋषि दयानन्द सरस्वती जी ने अपना विचार क्या दिया है, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका में, उसपर एक मन्त्र को उठाकर, ईश्वर की दयालुता पर लिखा है, जिसमें यह भी दिखाया की जो ईश्वर दयालु है, वह कभी किसी मनुष्य को यह उपदेश नही दे सकता की तुम पशुओं के गले में छुरी चलाव |
आज मैं उसी पर लिख रहा हूँ, ऋषि दयानंद के जो विचार हैं और उन्हों ने समाधान किस प्रकार दिया है, मानव कहलाने वाले इस पर विचार करें और सत्य का ग्रहण तथा असत्य का परित्याग कर ईश्वरीय ज्ञान को ठीक ठीक समझने का प्रयास करें | इस वेदोक्त विषय को मैं अन्य मजहबी पुस्तकों के साथ तुलना करता हुवा दिखाने का प्रयास करूंगा की वेद में तथा अन्य मजहबी पुस्तकों में क्या अन्तर है, उसे भी साथ साथ दिखाने का प्रयास करूंगा, जिससे कि लोगों को समझने में और निर्णय लेने में आसानी हो |
यहाँ सवाल करते हुए ऋषि लिखते हैं =कितने ही लोग कहते हैं या प्रश्न करते हैं ईश्वर निराकार है उससे शव्द रूप वेद कैसे उत्पन्न हो सकता है ?
समाधान =परमेश्वर सर्वशक्तिमान है,उसमें ऐसी शंका करनी सर्वथा व्यर्थ है क्यों कि मुख और प्राणादि साधनों के बिना भी परमेश्वर में मुख और प्राणादि के काम करने का अनन्त समर्थ है, के मुख के बिना मुख का काम और प्राण के बिना प्राणादि का काम करने में अनन्त समर्थ है और अपने समर्थ से यथावत कर सकता है | यह दोष तो हम जीवों पर लगता है,कि मुख आदि के बिना मुख का कार्य नही कर सकते, क्योंकि हम लोग अल्प सामर्थ वाले हैं |
और इसमें यह दृष्टान्त भी है कि मन में मुखादी अबयब नही है | तथापि जैसे उसके भीतर प्रश्नोत्तरी आदि शब्दों का उच्चारण मानस व्यापार में होता है, वैसे परमेश्वर में भी जानना चाहिए | और जो सम्पूर्ण समर्थ वाला है सो किसी कार्य के करने में किसी का सहारा ग्रहण नही करता, क्यों की वह अपने समर्थ से ही सब कार्य को कर सकता है | जैसे हम लोग बिना सहारे के कोई काम नही कर सकते वैसा ईश्वर को आव्यशकता नही है | जैसा देखो की जब जगत उत्पन्न नही हुवा था, उस समय निराकार ईश्वर ने सम्पूर्ण जगत को बनाया, तब वेदों के रचने में क्या शंका रही ? जैसे वेदों में अत्यंत शुक्षम विद्या का रचन ईश्वर ने किया है,वैसे ही जगत में भी नेत्र आदि पदार्थों का अत्यंत आश्चर्य रूप रचना किया है तो, क्या वेदों की रचना निराकार ईश्वर नही करसकता ? यही बताया गया वेद में पश्यकाव्य | मेरी रचना को देखो बताया |
अब यहाँ मैं मजहबी पुस्तक की मान्यता को भी दर्शाता हूँ, यहाँ जो सर्वशक्तिमान की मान्यता वेद में बताई गयी है, यही मान्यता कुरान और बाईबिल की भी है ईश्वर को तथा अल्लाह को भी कुरान में सर्वशक्तिमान बताया गया है | إنالله على كل شي قدير i अल्लाह कादिरे मुतलक है, सब पर अपनी कुदरत रखते हैं सर्वशक्तिमान है, जो चाहे सो कर सकते हैं|
यहाँ वेद से प्रमाण यह मिला की परमात्मा सर्वशक्तिमान हैं उसके अधीन जो काम है उसे करने या अंजाम देने में किसी का सहयोग नही लेता | किन्तु अल्लाह अपने कार्य के सहयोग के लिए फरिश्तों को लगाया है | अल्लाह का जितना भी काम है सब फ़रिश्ते ही करते हैं, जैसा किसी के जिम्मे मनुष्यों के प्राण निकालने में लगाये हैं, जिन्हें मालेकुल मौत कहा जाता है { जिनका नाम जिब्राइल है } यह अल्लाह का सन्देश वाहक हैं अल्लाह से सन्देश ले कर फ़रिश्ते तक पहुंचाते हैं | एक का नाम इस्राफील है जिनको अल्लाह ने सायरन बजाने के काम में लगाया है जो कयामत आने से पहले {सुर फुन्केगे } आदि |
हर मुसलमानों के कंधे पर अल्लाह ने दो फ़रिश्ते बिठाये हैं जो पाप और पुन्य {नेकीऔरबदी} को लिखता है | जिस कापी में लिखा जाता है उसे नय्माये आयमाल कहा जाता है | जब किसी भी मुस्लमान को कबर में दफनाया जाता है उससे पूछने के लिए भी अल्लाह ने फ़रिश्ते लगाये हैं | कुल मिला कर अल्लाह का सारा काम फ़रिश्ते ही करतेहैं | किन्तु वेद में बताया गया परमात्मा अपने कामों में किसी का सहारा नही लेता कारण वह सर्वशक्ति मान है | सर्वशक्तिमान का मतलब यह नहीं हुआ कि जो चाहे सो करें, यह वेद कि मान्यता कदापि नहीं, ईश्वर के जिम्मे में जो कार्य है उस काम को अंजाम देने में किसी का सहारा नहीं चाहिए | अब जानना यह है कि परमात्मा के जिम्मे में काम क्या है ? सृष्टि कि रचना, उसे स्थिति में लाना, सृष्टि का प्रलय करना, मानव मात्र के किये कर्मों का फल देना,इस कार्य में किसी का सहयोग न लेना | लेकिन अल्लाह का सभी काम फरिश्तों से करवाते हैं, इस कारण अल्लाह और ईश्वर में भेद है |
महेन्द्रपाल आर्य =वैदिकप्रवक्ता =दिल्ली =8/अप्रैल/2023

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