प्रश्न:- क्या मूर्तिपूजा सीढ़ी है ???
उत्तर :- जी हाँ !! बिलकुल यह सत्य है |
मूर्तिपूजा सीढ़ी ही है |
देखिये, किस प्रकार एक मूर्तिपूजक सीढ़ी-दर-सीढ़ी आगे ही आगे बढ़ता है और कभी पीछे हटता नहीं है |
1. महाभारत से पहले इस देश में कोई मूर्ति नहीं पूजी जाती थी, सब केवल एक निर्गुण-सगुण-निराकार ईश्वर “ओ३म्” की ही पूजा करते थे, सारे शास्त्र इसकी गवाही/ प्रेरणा/ आदेश/निर्देश दे रहे हैं
2. उसके बाद हमारे पूर्वज योगियों की मूर्ति बना कर पूजने लगे जैसे महावीर स्वामी, शिव जी, महात्मा बुद्ध
3. उसके बाद लोगों ने तपस्वी, वेद धर्म की रक्षा करने वालों की मूर्ति बनानी शुरू की जैसे रामचंद्र जी, श्रीकृष्ण जी आदि
4. पहले के समय में केवल जनेऊधारी पूज्यजनों की ही मूर्तियां पूजी जाती थीं
5. पहले के समय में केवल वही मूर्ति पूजी जाती जिसके एक हाँथ में शास्त्र होता था तो दूसरे हाँथ में शस्त्र क्यों की वेद का आदेश है “यत्र ब्रह्म च क्षत्रं च सम्यञ्चौ चरतः सह, तं लोकं पुण्यं प्रज्ञेषं यत्र देवाः सहाग्निना (यजुर्वेद 20/25) | समाज में शांति स्थापना के लिए शास्त्र और शस्त्र दोनों का समन्वय आवश्यक है, ऐसा सन्देश देने के लिए यह मूर्तियां बनाई जाती थीं |
6. आगे चल कर ब्रह्मचारी ज्ञान-गुण-सागर हनुमान जी की मूर्ति बना कर पूजने लगे
7. मातृ-स्वरूपा अम्बे, दुर्गा की पूजा करने लगे
8. फिर भी मन नहीं माना तो अज्ञानता के प्रतीक काले शनि को, काली माता को पूजने लगे
9. शराब भोगी काल भैरव को पूजने लगे
10. श्मशान की राख लपेटने वाले अघोरी महाकाल को पूजने लगे
11. ये भी कम पड़ गया तो ईसा-मसीह के क्रूस पर चढ़ी मूर्ति या मरियम की गोद में बैठे ईसा को पूजने लगे
12. इतना सब करने पर भी मन प्यासा रहा तो अजमेर जा कर या नगर-नगर, डगर-डगर बने मुर्दों, कब्रों, दरगाहों को पूजने लगे
13. इतना सब करने के बाद भी कमी रह गयी थी इसलिए 9 गज की कब्र पूजने लगे, फिर 72 गज की कबर पूजने लगे
14. इसके बाद भी मन में असंतोष रहा तो विधर्मी, जनेऊ-विहीन, शास्त्र-शस्त्र-शून्य साईं को लेकर आये और उसकी बड़ी-बड़ी मूर्ति बना कर पूजने लगे
15. इतना करने के बाद भी मन नहीं भरा तो देश में कई कुत्तों के मंदिर हैं, गधों से लेकर गाय तक की कबर बना कर पूजी जाने लगी
16. व्यक्ति तो छोड़िये अब तो वाहन भी पूजे जाते हैं | राजस्थान में एक मोटर बाइक की पूजा होती है | एक बार ओम्-बन्ना नामक व्यक्ति की मृत्यु, दुर्घटना में हो गयी, कहते हैं उसकी बाइक को पुलिस वाले थाने ले गए, और बार-बार ले गए लेकिन बाइक खुद चल कर वापस अपने मूल स्थान पर स्वयं आ जाती थी इसलिए लोगों ने उसे शक्तिशाली मान कर पूजने लगे | वहाँ शराब और नारियल चढ़ाया जाता है लेकिन कोई यह प्रश्न नहीं करता की इसमें कितना सत्य है और किस विद्या / शक्ति से बाइक वापस अपने स्थान पर आ जाती थी क्यों न उस विद्या/शक्ति का प्रयोग गायों के ऊपर चलने वाले छुरे पर किया जाये ताकि गाय कटने से बच जाए…….. कितना ही अच्छा हो यदि उस विद्या/शक्ति का प्रयोग पाकिस्तान से चलने वाली गोली को वापस लौटने में किया जाए ताकि हमारे सैनिक अपनी जान बचा पाएं……… लेकिन लोगों ने बाइक को पूजना ही उत्तम माना
17. देश भर में कई-कई अनपढ़, गांजा पीने वाले बाबाओं की कबर (महा-समाधि) बनी हुई है …. ….बेचारे कुमारिल भट्ट जी से पाणिनि, गार्गी, याज्ञवल्क्य आदि किसी ने महासमाधि नहीं ली लेकिन अनपढ़ गांजा पीने वाले कब्र बना-बना कर पूजने / पुजवाने लगे
18. किसी-किसी मंदिर में मूर्तियों को छोड़ कर गुरुओं के उपयोग में लिए गए पलंग, गद्दी, तकिये, खड़ाऊं, ज्योति अर्थात् दीप आदि को पूजा जाता है
19. कहीं-कहीं तो गुरु के दाँत, बाल की पूजा होती है
20. वृक्ष और पुस्तक भी पूजे जाने लगे
21. अभी आगे और मूर्तियाँ आएँगी, इसलिए सीढ़ी का अंतिम कदम/ पायदान कहा नहीं जा सकता
इसलिए कहता हूँ मूर्ति पूजा सीढ़ी है | ये सीढ़ी ऐसी है जो व्यक्ति को कभी पीछे नहीं हटाती, हमेशा आगे ही आगे बढाती है, कभी हार नहीं मनवाती, व्यक्ति जीवन भर विविध स्वरुप में मूर्तिपूजा करता है, पर थकता कभी नहीं है |
ये ऐसी सीढ़ी है जो व्यक्ति को आध्यात्म के क्षेत्र में ऊपर की ओर नहीं परन्तु नीचे को ओर, गहरी खाई में ले जाती है और व्यक्ति जीवन भर अंतहीन मूर्ति-पूजा में लगा रहता है |
इन सब विविध-स्वरूपों पर यदि कोई प्रश्न चिह्न लगाए तो कहते हैं की ये सब हैं तो अलग लेकिन मूल में एक ही हैं लेकिन हैं अलग-अलग
फिर कहते हैं मार्ग अलग-अलग हो सकते हैं लेकिन हैं सब एक ही, सब एक ही मंजिल पर ले जाते हैं, लक्ष्य एक ही है
मूर्तिपूजा करने वाला व्यक्ति अनन्त-यात्रा पर तो जा सकता है लेकिन मूर्ति-पूजा का अन्त कोई नहीं पा सकता इसलिए ये सीढ़ी ही है ऐसा अब आप मान लीजिये बेशक यह सीढ़ी गहरी खाई में गिरा रही जहाँ से बाहर निकलना असम्भव है। |
धन्यवाद
विदुषामनुचर
विश्वप्रिय वेदानुरागी
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