रसूल के वंशज की वेदों पर आस्था !!
यह लेख हमारे पूर्व प्रकाशित “वैदिक धर्म मानने वाले रसूल के वंशज “(200/128-लेख का दूसरा भाग है ,इसमें हम मुहम्मद साहब के वंशज , शियाओं के इमाम जाफ़र सादिक की 21 पीढ़ी में पैदा नजारी इस्माइली मुसलमानों के पीर सतपंथ फिरके के स्थापक पीर सदरुद्दीन शमशी का संक्षिप इतिहास देकर वह तथ्य भी दे रहे हैं ,जिनके कारण पीर सदरुद्दीन की वेदों पर इतनी आस्था हो गयी कि वह गायत्री मन्त्र के जाप को धार्मिक कर्तव्य मानने लगे ,
1 -पीर सदरुद्दीन की भारत यात्रा
यह उस समय की बात है जब अरब में फातिमी हुकूमत समाप्त होगयी थी , शियाओं की दुश्मन नहीं थी , और जब बाद में अब्बासियों की हुकूमत हुई तो उन्हौने शियाओं पर अत्याचार करना शुरू कर दिए , इसलिए इमाम जाफ़र सादिक के वंशज ईरान में जाकर बस गए , पीर सदरुद्दीन का जन्म ईरान में हुआ था , और जब वह हुए तो उनके पिता शमशुद्दीन ने उनको भारत में धर्म प्रचार के भेज दिया , यह हिजरी सन 734 की बात है , सदरुद्दीन भारत के मुलतान ( मूलस्थान ) शहर में रहने लगे ,वहां उन्होंने सिंधी , और पंजाबी भाषा सीखी और हिन्दू पंडितों से संस्कृत सीखी , और वैदिक धर्म के बारे में जानकारी प्राप्त की , तभी फिरोज खान तुगलक ने सिंध पर हमला कर दिया और हजारों निर्दोषों को क़त्ल करा दिया , यह हत्याकांड देख कर पीर को इस्लाम के प्रति अरुचि होने लगी , वह जानते थे कि इस्लाम के नाम पर मुसलमानों ने ही इमाम हुसैन को परिवार सहित बेदर्दी से मार् दिया था , इसलिए मुल्तान को छोड़ कर पीर गुजरात के कच्छ में आगये , उनके साथ उनके अनुयायी भी वहीँ बस गए , गुजरात में रह कर पीर को जब वैदिक धर्म और वेदों की महानता का पता चला तो उन्होंने अपने ग्रथों में भी उसका उल्लेख कर दिया , जिसके उनके पूरे विश्व में फैले करीब 15 करोड़ इस्माइली मुस्लिम मानते हैं , और अपने उपासना गृह “जमात खाना – جماعتخانه, ” में पढ़ते हैं , इस्माइली किसी मस्जिद में जाकर नमाज नहीं पढ़ते ,बल्कि एक बड़े हॉल स्त्री पुरुष मिल कर पीर सदरुद्दीन के वचनों का पाठ करते हैं ,जिन्हें ज्ञान कहा जाता है , यह सिंधी , गुजराती , कच्छी और कुछ फारसी भाषा में भी हैं
2-इस्माइली ज्ञान का आधार वेद हैं
इस्माइली सतपंथ में ज्ञान को “सांखी ” कहा जाता है ,जिसका अर्थ साक्षी ( witness ) है , इसका तात्पर्य वेद में दिए गए सत्य की गवाही “witness in support of the truth contained therein — the Vedas “पीर सदरुद्दीन ने ज्ञान संख्या 552 में कहा है कि मैं साक्षी देता हूँ कि मेरा ज्ञान ऋग्वेद , यजुर्वेद , सामवेद और अथर्ववेद पर आधारित है . उन्होंने अपने ज्ञान (पुस्तक ” में यह भी कहा है ,
“आश जी वेद वानी ते तो स्वामी पोते मुंह माहेथी बोल्या ,अने भाई तेने वेद जा कीधा आधार ,रे
रुग वेद जुजर वेद सामवेद अथर्व वेद कर्या ,अने भाई किताब जा कीधा चार रे “ज्ञान संख्या (232)
अर्थात -मेरा ज्ञान वेद आधारित है , जो स्वयं ईश्वर का वचन है , और जिसे चार किताबों में बाँट दिया गया ,जिनके नाम ऋग्वेद ,यजुर्वेद ,सामवेद और अथर्व वेद हैं ”
3-इस्माइली ज्ञान
इस्माइली निजारी मुस्लिमों के गुरु और महम्मद साहब की 49 पीढ़ी में जन्मे पीर सदरुद्दीन ने कई पुस्तकों की रचना की है , ऐसी एक किताब का नाम ज्ञान है .जिनमे वेदों को प्रमाण माना है .Ginans (Urdu: گنان, Gujarati: ગિનાન) (Derived from Sanskrit: Gnana/(ज्ञान)) are devotional hymns or poems recited by Shia Ismaili Muslims
सदगुरु ने कहा
“जेने धर्म जोया सत्त ना अने जोया वेद विचार ,ते ईमान राखशे सत नुं अने गुरु ऊपर राखे प्यार “-9
अर्थ -जिसने सत्य को जान लिया और वेद का अध्यन किया , वह गुरु की यह बात मानकर सत्य पर इमान रखता है
सदगुरु ने कहा
” जने वेद जोईने विचार्या नहीं ,अने तेनु वेद शुं नहीं काम ,ते ठाला आया भूला गया तेने वेद मां नहीं साम “-10
अर्थ – जिसने सिर्फ वेद को देखा है लेकिन उसका अध्यन नहीं किया , वह दुनियां में बेकार आया है , ऐसे लोगों को वेद से कोई मतलब नहीं जिनको वेद समझने की सामर्थ्य नहीं
Guide says: Those who having seen or heard the holy scriptures, do not reflect upon them, have nothing to do with them. They have come empty and have gotten lost, and they do not have any link in the reading or hearing of them.
सदगुरु ने कहा
“सार शुं थाशे लोक नी ,जेने नथी वेद विचार ,ते अल्ल बोले सत धर्म ने भाई जेने नाम विचारिये गमार “-15
अर्थ -” जो लोगों को सार की बात नहीं बताता और और जिसे वेद ज्ञान नहीं , और जो सच्चे धर्म (वैदिक ) की बुराई करता है , तो भाईयो उसे गंवार समझना चाहिए ”
ones who direct false accusation towards the True Religion. Brother, they never reflect upon the Divine knowledge.
4-गायत्री मन्त्र पर श्रद्धा
मुहम्मद साहब के वंशज वेदों पर आस्था रखते थे , यह बात प्रमाणित हो चुकी लेकिन इस बात को जानकर हिन्दू आशर्यचकित हो जायेंगे कि मुहम्मद के वंशज गायत्री मन्त्र भी पढ़ते थे , और आज भी इस्माइली सतपंथि प्रार्थना में गायत्री मन्त्र पढ़ते है , यह वही गायत्री मन्त्र है जो हिन्दू वैदिक धर्म के लोग पढ़ते हैं
ॐ भूर्भुवः॒ स्वः ।
तत्स॑वि॒तुर्वरेण्यं॒
भर्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि ।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त् ॥
ऋग्वेद – मंडल 3 सूक्त 62 मन्त्र 10
इस मन्त्र का अर्थ गुजराती में पीर सदरुद्दीन और और पीर गुरु हसन कबीरुद्दीन ने क्या है ,जिसका अंगरेजी अनुवाद दिया जा रहा है ,
Which means, ! 0 God, thou art the giver of life, the
remover of pains and sorrows, the bestower of happiness.
0 creator of the universe, may we receive “thy sin-destroying
light. May Thou guide our intellect in the right direction ”
5-गायत्री मन्त्र की व्याख्या
पीराणा निवासी इस्माइली विद्वान् “सय्यद इमाम शाह ” ने गायत्री मन्त्र की गुजराती भाषा में ” मूल गायत्री ” नाम से जो व्याख्या की है , उसका हिंदी अर्थ दिया जा रहा है “स्वामी आप आदि नूर परमेश्वर हो ,आप ही निरंजन हो ,आप जैसा कोई नहीं ,आपकी कोई देह नहीं ,जब कोई शब्द नहीं था ,जल नहीं ,थल नहीं ,धरती नहीं आकाश नहीं ,और न सूर्य और चन्द्रमा नहीं , थे और न पानी पहाड़ और तारा मंडल नहीं थे , तब आप ही आप थे , हम आपका ही ध्यान करते हैं ,और आप ही हमें मार्ग दिखाने वाले और सृष्टि की उत्पत्ति का कारण हो , हसन शाह कहते हैं आप ही हमारे गुरु हो ,.
इन शब्दों में ईश्वर की स्तुति करके इमाम शाह ने गायत्री मन्त्र की तीन महाव्याहृतियाँ “भू:’, ‘भुव:’ और ‘स्वः “के अर्थ बताये कि ये तीनों शब्द क्रमश: पृथिवी, अन्तरिक्ष और स्वर्ग अथवा द्युलोक के वाचक हैं।और गुजराती में इन तीनों की वैज्ञानिक व्याख्या देने से पूर्व गुजराती में कहा था
“ॐ परम कृपाळू परमात्मा नि आग्या थी आदरु छू ,तमारी आशिसे आ करी रह्यो छू !
इसके बाद इमाम शाह ने वेद के आधार पर विज्ञानं सम्मत सृष्टि की उत्पत्ति के बारे में जो विशद जानकारी दी है , काफी लंबी और क्लिष्ट है ,इसलिए इसे अगले भाग में दिया जायेगा ,
( This is a subject of modern cosmology-and-astrophysics)
चित्र -सद गुरु इमाम शाह
अगर मुल्ले मौलवियों में हिम्मत हो तो रसूल के इस असली वंशज को काफिर घोषित करने का फ़तवा जारी कर के दिखाएँ
नोट -इस लेख को सब तक पंहुंचायें
ब्रजनंदन शर्मा
( लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं जिनसे उगता भारत का सहमत होना आवश्यक नहीं)
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