ईडी और सीबीआई छापे पर सुप्रीम कोर्ट का फैसले से भ्रष्ट नेता पड़े अलग-थलग : भविष्य में भ्रष्टाचार विरोधी अभियान को और मिलेगा बल
अशोक मधुप
हाल ही में मानहानि के एक मामले में कांग्रेस नेता राहुल गांधी को न्यायालय ने दो साल की सजा सुनाई। सजा न्यायालय ने की किंतु सभी दल एक सुर में दोष केंद्र सरकार और भाजपा को दे रहे हैं। कांग्रेस तो इस मामले को लेकर आंदोलन भी शुरू कर चुकी है।
सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के दुरुपयोग से जुड़ी कांग्रेस के नेतृत्व में 14 विपक्षी दलों की याचिका पर सुनवाई से इंकार कर दिया है। इसके बाद अब यह तय हो गया कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और केंद्रीय जांच ब्यूरो की जांच में और ज्यादा तेजी आएगी। ये दोनों संगठन और अन्य केंद्रीय जांच एजेंसियां अपनी कार्रवाई और तेज करेंगी। सुप्रीम कोर्ट के प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के दुरुपयोग से जुड़ी कांग्रेस के नेतृत्व में 14 विपक्षी दलों की याचिका पर सुनवाई से इंकार के बाद विपक्षी दलों ने अपनी याचिका वापस ले ली। याचिका में विपक्षी नेताओं के खिलाफ केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) जैसी केंद्रीय जांच एजेंसियों के मनमाने उपयोग का आरोप लगाया गया था। याचिका में गिरफ्तारी, रिमांड और जमानत जैसे मामलों को नियंत्रित करने वाले दिशा-निर्देशों का नया सेट जारी करने की मांग की गई थी।
विपक्षी दलों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने तर्क दिया कि 2013-14 से 2021-22 तक सीबीआई और ईडी के मामलों में 600 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। ईडी की ओर से 121 राजनीतिक नेताओं की जांच की गई है। जिनमें से 95 प्रतिशत नेता विपक्षी दलों से हैं। सीबीआई की 124 जांचों में से 95 प्रतिशत से अधिक विपक्षी दलों से हैं। सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि राजनीतिक विरोध की वैधता पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा है।
सुप्रीम कोर्ट ने सिंघवी से पूछा कि क्या हम इन आंकड़ों की वजह से कह सकते हैं कि कोई जांच या कोई मुकदमा नहीं होना चाहिए? क्या नेताओं को इससे अलग रखा जा सकता है? सर्वोच्च कोर्ट का कहना है कि अंततः एक राजनीतिक नेता मूल रूप से एक नागरिक होता है और नागरिकों के रूप में हम सभी एक ही कानून के अधीन हैं। इस पर सिंघवी ने कहा कि पक्षकार नहीं चाहते कि याचिका से भारत में कोई लंबित मामला प्रभावित हो और वे मौजूदा जांच में हस्तक्षेप करने के लिए भी नहीं कह रहे हैं।
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की पीठ ने कहा कि किसी मामले के तथ्यों से संबंध के बिना सामान्य दिशानिर्देश देना खतरनाक होगा। याचिका पर विचार करने में शीर्ष अदालत की अनिच्छा को भांपते हुए राजनीतिक दलों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता एएम सिंघवी ने याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी। पीठ ने आदेश दिया कि अधिवक्ता इस स्तर पर याचिका वापस लेने की अनुमति चाहते हैं। याचिका तदनुसार वापस ली गई, मानते हुए खारिज की जाती है। ये याचिका कांग्रेस, द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (द्रमुक), राष्ट्रीय जनता दल (राजद), भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस), तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), आम आदमी पार्टी (आप), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा), शिवसेना (यूबीटी), झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो), जनता दल यूनाइटेड (जदयू), मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा), समाजवादी पार्टी (सपा) और जम्मू-कश्मीर नेशनल कान्फ्रेंस की ओर से दायर की गई थी। इस याचिका को दायर करने वाले दलों ने यह नहीं सोचा कि पुलिस समेत सभी सरकारी जांच एजेंसी जांच करती हैं। केस कोर्ट में सबूतों के आधार पर तय होता है। यदि सबूत नहीं होंगे तो केस खुद ही खारिज हो जाएगा। एक दो मामले में न्यायालय इस तरह की टिप्पणी कर भी चुका है। दूसरे राजनैतिक दबाव में भी कोई एजेंसी किसी गलत व्यक्ति को आरोपी नहीं बनाएगी। क्योंकि न्यायालय में आरोप साबित नहीं करने पर बदनामी उसी की होगी।
विपक्षी दलों के आरोप पर प्रवर्तन निदेशालय ने विपक्षी पार्टियों की ओर से लगाए जा रहे ‘टारगेट कर कार्रवाई’ के आरोपों के बीच एक नया डेटा जारी किया है। प्रवर्तन निदेशालय ने अपने डेटा में दावा किया है कि मनी लॉन्ड्रिंग को लेकर उसकी ओर से दर्ज मामले में जिनकी सुनवाई पूरी हो चुकी है, उसमें सजा की दर वास्तव में 96 प्रतिशत है। प्रवर्तन निदेशालय अनुसार, एजेंसी की ओर से 31 जनवरी तक 513 लोगों को गिरफ्तार की गयी है। 1.15 लाख करोड़ रुपए से अधिक की संपत्ति कुर्क की गयी है। ईडी के आंकड़ों के मुताबिक जनवरी 2023 तक ट्रायल पूरा हो चुके 25 मामलों में 24 मामलों में आरोप सही साबित पाए गए हैं। इनमें 45 अभियुक्तों को सजा हुई है। एक तरफ ईडी 96 फीसदी मामलों में दोष सिद्धि का दावा कर रही है तो दूसरी ओर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) 94 फीसदी और सीबीआई 68 फीसदी मामलों में सजा का दावा करती है।
ये आंकड़े ये बताने के लिए काफी हैं कि कार्रवाई की जद में आए सभी आरोपी दूध के धुले नही हैं। उनमें से अधिकांश भ्रष्टाचार में लिप्त रहे हैं। वह सब अपने पर कार्रवाई और गिरफ्तारी के डर से एकत्र हुए हैं। एक बात और कोर्ट की ओर से उनकी अपील खारिज करने के बाद शोर मचाने के अलावा अब कोई विकल्प नहीं बचा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछली बार लाल किले से घोषणा कर चुके हैं कि भ्रष्टाचार के मामलों में तेजी होगी। नो टोलरेंस की नीति अपनाई जाएगी। सर्वोच्च न्यायालय के इस मामले को खारिज करने से एक दिन पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सीबीआई के डायमंड जुबली समारोह को संबोधित करते हुए उसे फ्री हैंड दे दिया। प्रधानमंत्री ने जोर देकर कहा कि मौजूदा सरकार में भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी नहीं है। उन्होंने कहा कि देश और इसके नागरिकों की इच्छा है कि किसी भी भ्रष्ट व्यक्ति को बख्शा नहीं जाना चाहिए। पीएम मोदी ने अपने संबोधन में सीबीआई के कामकाज की खूब तारीफ की। उन्होंने कहा, ‘साल 2014 के बाद हमारा पहला दायित्व, व्यवस्था में भरोसे को फिर कायम करने का रहा। इसलिए हमने काले धन को लेकर, बेनामी संपत्ति को लेकर मिशन मोड पर एक्शन शुरू किया। जहां भ्रष्टाचार होता है, वहां युवाओं को उचित अवसर नहीं मिलते। वहां सिर्फ एक विशेष इकोसिस्टम ही फलता-फूलता है। भ्रष्टाचार प्रतिभा का सबसे बड़ा दुश्मन होता है और यहीं से भाई-भतीजावाद, परिवारवाद को बल मिलता है। जब भाई-भतीजावाद और परिवारवाद बढ़ता है, तो समाज का, राष्ट्र का सामर्थ्य कम होता है। जब राष्ट्र का सामर्थ्य कम होता है तो विकास प्रभावित होता है। उन्होंने कहा, ‘मुख्य रूप से सीबीआई की जिम्मेदारी भ्रष्टाचार से देश को मुक्त करने की है। भ्रष्टाचार कोई सामान्य अपराध नहीं होता। भ्रष्टाचार, गरीब से उसका हक छीनता है, अनेक अपराधों को जन्म देता है। भ्रष्टाचार, लोकतंत्र और न्याय के रास्ते में सबसे बड़ा रोड़ा होता है।’ प्रधानमंत्री ने यह भी कहा, ‘आज देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति में कोई कमी नहीं है। आपको कहीं भी हिचकने, कहीं रूकने की जरूरत नहीं है।
आज विपक्ष अपने साथ के नेताओं पर कार्रवाई होने पर आरोप ही लगाता है। इसके अलावा उसके पास कहने को कुछ नही हैं। हाल ही में मानहानि के एक मामले में कांग्रेस नेता राहुल गांधी को न्यायालय ने दो साल की सजा सुनाई। सजा न्यायालय ने की किंतु सभी दल एक सुर में दोष केंद्र सरकार और भाजपा को दे रहे हैं। कांग्रेस तो इस मामले को लेकर आंदोलन भी शुरू कर चुकी है। विपक्ष दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के विरुद्ध कार्रवाई होने पर एकत्र होना शुरू हुआ। उसका सदा एक ही आरोप रहता है कि दुश्मनी के तहत छापे मारे जा रहे हैं। प्रश्न यह है कि यदि ये छापे दुश्मनी के तहत हैं तो मनीष सिसोदिया 27 फरवरी से अब तक जेल में क्यों हैं। सबूत के अभाव में ट्रायल कोर्ट ने क्यों नहीं उन्हें छोड़ दिया। न्यायालय उनके विरुद्ध क्यों रिमांड पर रिमांड दिए जा रहा है? पश्चिम बंगाल में वहां के हाईकोर्ट के आदेश पर सीबीआई शिक्षक भर्ती घोटाले की जांच कर रही है। इस मामले में पश्चिम बंगाल की ममता सरकार में शिक्षा मंत्री रहे पार्थ चटर्जी जेल में हैं। सारी कार्रवाई कोर्ट के आदेश पर की जा रही है। उसके बावजूद आरोप केंद्र सरकार पर ही आ रहा है, क्योंकि विपक्ष के पास इसके अलावा कहने को कुछ नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय के विपक्ष का केस खारिज करने के बाद और प्रधानमंत्री का सीबीआई को फ्री हैंड देने से विपक्ष को केंद्रीय एजेंसियों की ओर से होने वाली तेज कार्रवाई के लिए तैयार रहना चाहिए।