अब सफ़र ज्यादा नही,
आ लिया वक्त अकीर।
ब्रहम ऋता बुद्धि बने,
तो जग जाय जमीर॥2243॥
भगवद्-भाव में रहना है तो
निन्दा- चुगली छोड़ के,
ले रसना हरि नाम।
नेकी कर संसार में,
जो चाहे हरि-धाम॥2244॥
जब स्वतः ही आनन्द की प्राप्ति होती है:-
सत् चर्चा सत् कर्म कर,
जिस क्षण मन लग जाय।
सत् चिन्तन के कारणै,
आनन्द, स्वतः ही आय॥2245॥
संसार में कैसे रहो :-
हृदय मेंसद् भाव रख,
अपना हो संसार।
दुर्भावो को त्याग दें,
निज प्रतिविम्ब निहार॥2246॥
जब प्रभु कृपा होने लगे तो :-
हृदय में उर्मि उठे,
ज्यों सागर की हिलोर।
ध्यान लगे हरि नाम में,
हो जा नाम विभोर॥2247॥
प्रभु के नाम की महिमा:-
भय चिन्ता और शोक को,
हरै हरि का नाम।
भगवद् भाव में डूब कै,
कर्म करो निष्काम ॥2248॥
रसो वै स:
रसो में रस हरि ओउम् है,
एक बार पीकै देख।
आत्मा के कल्मष कटें,
कर्म भी होवें नेक॥2249॥
सृष्टि की रचना के संदर्भ में –
ओ३म् की शक्ति अपार है,
वही सृष्टि का मूल।
सांस सांस पै ओ३म् भज,
मत कर इसमें भूल॥2250॥
प्रभु कितना उदार है-
प्रभु ऐसा दातार है,
करता नहीं निराश।
जो भी उसके दर गया,
पूरन करता आश॥2251॥
प्रभु कृपा से ही मिले –
दाता है संसार का,
देता है दिन रैन।
प्रभु कृपा से ही मिले,
सुख समृद्धि चैन॥2252॥
स्वाभिमान को सर्वदा अक्षुण्ण रखो-
याचना कर भगवान से,
मत चाटै जग – धूर।
अक्षुण्ण रख स्वाभिमान को,
यही आत्मा का नूर॥2253॥
प्रभुता पायकै सर्वदा विनम्र रहो –
प्रभु कृपा को पायकै,
मत करना अभिमान।
खुशबू की तरह जायगी,
रूष्ट होय भगवान॥2254॥
ओ३म् को सर्वदा मन में धारण करो-
ओ३म् नाम से दूर हों,
मन के सभी विकार।
निर्बेर निर्द्वन्द्व हो,
ओ३म् नाम को धार॥2255॥
ये संसार कितना निष्ठुर है-
मेंढक भोजन सांप का,
सांप को खावै मोर।
जीव-जीव को खा रहा,
आग लगी चँहु ओर॥2256॥
क्रमशः