” जयन्ती ” शब्द के बारे में भ्रांति निवारण
डॉ.राधे श्याम द्विवेदी
सोसल मीडिया में एक खबर कहीं से आ गई कि जीवित व्यक्ति की जयंती नहीं मनाई जाती है,नश्वर व्यक्ति की जयंती मनाई जाती है। यह कथन बिल्कुल सत्य नहीं है।
आइए ” जयन्ती” शब्द के बारे में कुछ विचार विमर्श कर लें। केवल सही विश्लेषण को आगे बढ़ाएं। भ्रांतियां और गलत संदेश कदापि नहीं फैलना चाहिए।
जयंती मूल रूप से बना है — जयतीति से। जि + “तॄभूवहिवसीति । ” उणां ३ । १२८ । इति झच् ।
व्याकरण की व्युत्पत्ति के अनुसार यह विजयप्रद कालांश के लिए प्रयुक्त शब्द है। अर्थात् जिस विजयी क्षण में कोई महापुरुष प्रकट हुआ हो। पुराणों में यह भी कहा है कि —
“जयं पुण्यञ्च कुरुते जयन्तीमिति तां विदुः।।”
जयप्रद और पुण्यशाली क्षण भी जयन्ती शब्द वाच्य है।
जो अत्यधिक बलवान् शत्रुओं पर विजय प्राप्त करें उसे जयन्त कहते हैं ,इसी को देने वाली वेला जयन्ती होती है।
“ अतिशयेनारीन् जयते जयहेतुरिति वा जयन्तः । ”
(इति तद्भाष्यम् ।। )
भगवान् विष्णु का भी नाम जयन्त है । अतः उसके प्राकट्य को व्यक्त करने वाली वेला भी जयन्ती शब्द वाच्य है।
“अर्को वाजसनः शृङ्गी जयन्तः सर्व्वविज्जयी ।।
भगवान् शिव का भी नाम जयन्त है , उसके अवतारों का प्राकट्य दिवस भी जयन्ती पद वाच्य है।
यथा मात्स्ये । ५ । ३० ।
“सावित्रश्च जयन्तश्च पिनाकी चापराजितः ।
एते रुद्राः समाख्याता एकादशगणेश्वराः ।।
भगवान वासुदेव के अंश उपेन्द्र को भी जयन्त शब्द से उद्बोधित करते है–
जयन्तो वासुदेवांश उपेन्द्र इति यं विदुः ।।
भगवती दुर्गा को भी जयन्ती कहते हैं। यथा –
जयन्ती मंगला काली आदि आदि।
श्रीकृष्ण की जन्मकालीन वेला भी जयन्ती कहलाती है।
रोहिणीसहिता कृष्णामासे च श्रावणेऽष्टमी ।। अर्द्धरात्रादधश्चोर्द्ध्वं कलयापि यदा भवेत् ।
जयन्ती नाम सा प्रोक्ता सर्व्वपापप्रणाशिनी ।।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अनेक ग्रहों की उच्च स्थिति से यह योग बनता है हमारे सभी अवतारों के जन्म समय में यह ज्योतिषीय योग विद्यमान है अतः उनका जन्म दिवस जयन्ती कहलाता है।
यत्र स्वोच्चगतश्चन्द्रो लग्नादेकादशे स्थितः ।
जयन्तो नाम योगोऽयं शत्रुपक्षविनाशकृत् ।।
अतः सिद्ध है कि जयन्ती शब्द का जीवित या मृत से कोई सम्बन्ध नहीं है । यह महापुरुषों के प्रकट दिवस पर प्रयुक्त होता है।
जयंती का अर्थ होता है जिसकी विजय पताका निरंतर लहराती रहती है । जिसकी सर्वत्र जय जय होता रहे । यह बात बिल्कुल निराधार है कि जयन्ती शब्द केवल मृतक महापुरुषों के जन्म दिवस के लिए ही है। यह ना जाने किसने और कैसे निकाल दिया कि जयंती मरे हुए लोगों की होती है ? मरे हुए लोगों की तो “पुण्यतिथि” होती है।
“जयंती” शब्द का अर्थ है जिनका यश , जिनका जय , जिनका विजय अक्षुण है और जो नित्य है , सदा विद्यमान है। उसकी जयंती मनाई जाती है।
जयंती महापुरुषों की या भगवान की ही होती है । नश्वर शरीर धारियों के लिए जयंती नहीं है । यह बात बिल्कुल निराधार है कि जयन्ती शब्द केवल मृतक महापुरुषों के जन्म दिवस के लिए ही है। जिनकी कीर्ति , यश ,सौभाग्य , विजय निरंतर हो और जिसका नाश न हो सके ,उसे जयंती कहते हैं ।
आदिशक्ति महामाया जगतजननी का नाम भी जयंती रहा है । तो क्या इनकी मृत्यु हो चुकी है ? बिल्कुल नहीं।
जयंती का प्रयोग मुख्यत: किसी घटना के घटित होने के दिन की, आगे आने वाले वर्षों मे पुनरावृत्ति को दर्शाने के लिये किया जाता है । आज के युग में भी आप हम अपने माता पिता या किसी जीवित महापुरुष के 25 वर्ष विवाह ,सन्यास या साक्षात्कार दिवस के पूर्ण होने पर
रजत जयंती , 50 वर्ष पर स्वर्ण जयंती और 75 वर्ष पर हीरक जयंती मनाते हैं ।
हनुमान जी की कीर्ति , यश , विजय पताका , भक्ति , ज्ञान , विज्ञान , जय निरंतर और नित्य है , इसलिये इनकी जयंती मनाई जाती है । ऐसे तो नृसिंह जयंती , वामन जयंती , मत्स्य जयंती इत्यादि भगवान के सभी अवतारों की जयंती मनाई जाती है ।
जयंती मृत्यु से नहीं , उनके नित्य, सदा विद्यमान , अक्षुण , कभी न नष्ट होने वाली कीर्ति और जयत्व के कारण मनाई जाती है ।
चाहे वह जन्म हो या मृत्यु हो । महावीर जयंती ,बुद्ध जयंती , कबीरदास जयंती , गुरुनानक जयंती इत्यादि सभी उनके जन्म दिन ही मनाई जाती है ।जयंती का किसी भी तरह जन्म और मृत्यु से कोई सम्बंध नहीं है ।जन्मोत्सव साधारण से लोगों का मनाया जाता है , लेकिन “जयंती” शब्द विराट है ,वृहद है और यह मात्र दिव्य पुरुषों का ही मनाया जाता है। अतएव देवी देवता और महापुरुषों के जन्म और कृतित्व का गुणगान खुले मन से किया जाना चाहिए और अपने अंतर्मन में उतार कर प्रेरणा लेनी चाहिए।
(लेखक , ‘ सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी’ पद पर कार्य कर चुका है। वर्तमान में साहित्य, इतिहास, पुरातत्व और अध्यात्म विषयों पर अपने विचार व्यक्त करता रहता है।)