पंच महायज्ञ की वैदिक परंपरा और मानव समाज
वेदो के अनुसार मनुष्य को प्रतिदिन अपने जीवन में पाँच महायज्ञ जरूर करने चाहिए।*
(1) ब्रह्मयज्ञ :- ब्रह्म यज्ञ संध्या ,उपासना को कहते है। प्रात: सूर्योदय से पूर्व तथा सायं सूर्यास्त के बाद जब आकाश में लालिमा होती है, तब एकांत स्थान में बैठ कर ओम् वा गायत्री आदि वेद मंत्रों से ईश्वर की महिमा का गुणगान करना ही ब्रह्मयज्ञ कहलाता है।
(2) देवयज्ञ :- अग्निहोत्र अर्थात हवन को देवयज्ञ कहते है। यह प्रतिदिन इसलिए करना चाहिए क्योंकि हम दिनभर अपने शरीर के द्वारा पृथ्वी ,जल ,वायु, आदि को प्रदूषित करते रहते है। इसके अतिरिक्त आजकल हमारे भौतिक साधनों से भी प्रदूषण फैल रहा है, जिसके कारण अनेक बीमारियाँ फैल रही है। उस प्रदूषण को रोकना तथा वायु, जल और पृथ्वी को पवित्र करना हमारा परम कर्तव्य है। सब प्रकार के प्रदूषण को रोकने का एक ही मुख्य साधन है और वो है हवन। अनुसंधानों के आधार पर एक बार हवन करने से 8 किलोमीटर तक की वायु शुद्ध होती है ।
(3) पितृयज्ञ :- जीवित माता- पिता तथा गुरुजनों और अन्य बड़ों की सेवा एवं आज्ञापालन करना ही पितृयज्ञ है।
(4) अतिथियज्ञ :- घर पर आए हुए विद्वान, धर्मात्मा, सन्यासी का भोजन आदि से सत्कार करके उनसे ज्ञानप्राप्ति करना ही अतिथियज्ञ कहलाता है।
(5) बलिवैश्वदेवयज्ञ :- पशु, पक्षी, कीट, पतंग आदि ईश्वर ने हमारे कल्याण के लिए ही बनाए हैं। इन पर दया करना और इन्हें खाना खिलाना बलिवैश्वदेवयज्ञ कहलाता है। क्योकि ये हम पर आश्रित है। अब कोई चिङिया आदि कोई व्यापार, नौकरी आदि तो करेगी नहीं उनके लिए प्रतिदिन दाना आदि डालना बलिविश्वदेव यज्ञ कहलाता है।
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