भारत में राज्य और मुस्लिम महिलाएं-4

इस राष्ट्र के शासक सुधारक नहीं रहे हैं, यह बात सर्वमान्य हो चुकी है। ये सुधारों से डरकर इधर-उधर की बातों से जनता का मन बहलाकर मात्र समय व्यतीत कर रहे हैं। वे क्रांति की ओर हमारा ध्यान आकृष्टï कर रही है। इस क्रांति की रानी लक्ष्मीबाई बनकर, ‘तस्लीमा नसरीन’ और ‘जहांआरा बेगम’ जैसी कई जागरूक मुस्लिम महिलाएं होंगी जो इन इस्लामी किले की तंग दीवारों को तोड़ेंगी। हम और आप समय की प्रतीक्षा करें।
आज मुस्लिम समाज के भीतर से ही वे आवाजें आने लगीं हैं जो सड़ी गली किसी व्यवस्था और विज्ञान के प्रतिकूल किन्हीं परम्पराओं को समाप्त कर देना चाहती हैं। उन्हें यह ज्ञात हो गया है कि धर्म को चौदह सौ वर्ष पुराने किसी कालखण्ड के एक बिन्दु (मौहम्मद साहब का जीवनकाल) पर लाकर नहीं बांधा जा सकता। यह कालखण्ड उसके लिए प्रकाश और प्रेरणा का स्रोत नहीं हो सकता। धर्म की निर्मलता तो उसकी निरंतरता में छिपी हुई है, जो कि समीक्षा से निकलती है। इसलिए प्रगतिशील मुस्लिम बंधुवर्ग धर्म की समीक्षा के समर्थन में आगे आ रहे हैं। इस स्थिति को देखकर लगता है कि-”भोर का तारा उदित हो रहा है और मुस्लिम महिलाओं के लिए शुभ प्रभात अब दूर नहीं है।” जहां तक इस शुभ प्रभात को लाने के लिए हमारे राजनीतिज्ञों के आचरण की बात है तो इनसे ऐसी कोई अपेक्षा नही करनी चाहिए जिससे समाज और देश की स्थिति के प्रति सुधारवादी दृष्टिïकोण इनका माना जा सके। हर क्षेत्र में देश में जो भी गिरावट की स्थिति आ रही है उसके पीछे आपको एक राजनीतिज्ञ अवश्य मिलेगा।
उसी प्रकार जहां-जहां देश उन्नति कर रहा है वहां-वहां आपको देश का पुरूषार्थी किसान, वैज्ञानिक, अभियंता अथवा कोई न कोई अन्य ऐसा ही शिक्षित प्रबुद्घ और प्रगतिशील व्यक्ति अथवा वर्ग  मिलेगा। इसलिए मुस्लिम समाज में मुस्लिम महिला की स्थिति की दयनीयता को समाप्त करने के लिए मुस्लिम महिलाओं को आगे आना होगा।
राजनीतिज्ञों के पास उन्हें नहीं जाना चाहिए। क्योंकि ये तो स्वयं ही ‘कठमुल्ला’ हैं। इनके कठमुल्लापन से राष्ट्र का अहित हो रहा है। इसलिए इनसे बचकर उन्हें अपनी स्थिति को सुधारना होगा।

सावधान! स्वतंत्रता खतरे में है
इतिहास साक्षी है इस तथ्य का कि जब किसी मुस्लिम बादशाह के जीवन, गद्दी अथवा बादशाहत को खतरा उत्पन्न हुआ, तो उसने इसे नाम दिया-‘इस्लाम खतरे में है।’ इतना सुनकर ही मुस्लिम लोगों ने उस बादशाह का जी-भरकर साथ दिया। आप देखें-
चराजा दाहिर के विरूद्घ मौहम्मद बिन कासिम ने यही नारा इस्लाम को दिया और वह विजयी हो गया? जो नही होना चाहिए था।
चपृथ्वी राज चौहान का हिंदुत्व कभी मौहम्मद गौरी के इस्लाम के सामने खतरे में नहीं पड़ा। किंतु गौरी हर बार ‘इस्लाम खतरे में है’ का नारा देकर यहां आता रहा, और एक दिन वह यह अपना राज्य स्थापित करने में सफल हो गया जिसकी उससे अपेक्षा नहीं थी।
चअलाउद्दीन खिलजी का इस्लाम रानी पद्मिनी को पाने के लिए खतरे में पड़ गया था। इस्लाम के इसी खतरे ने रानी को सती होने के लिए विवश कर दिया था।
बाबर को हिन्दुस्तान पर शासन करने की लालसा थी, उसके लिए इसी कारण ‘इस्लाम खतरे में पड़ गया’ था कि वह अपने सपने को साकार करने में सफल नही हो पा रहा था। इस नारे का सहारा लेते ही उसका भी सपना पूरा हो गया।
औरंगजेब के लिए ‘इस्लाम को खतरा’ केवल इसलिए हो गया था कि हिन्दुस्तान की बादशाहत उसी के बड़े भाई सरल हृदयी ‘दाराशिकोह’ के लिए जा रही थी। ऐसा देखकर उसने इस्लाम को खतरा होने का ‘रैड अलर्ट’ किया और हिन्दुस्तान का शासक बन गया। इस प्रकार हर मुस्लिम बादशाह को निजी स्वार्थपूर्ति करने में इस नारे ने बड़ा सराहनीय सहयोग प्रदान किया।
खतरे में स्वतंत्रता
स्वतंत्रता के पश्चात हमारे राजनीतिज्ञों ने भी एक नारे का सहारा ले लेकर इस देश का मूर्ख बनाने में सफल प्रयास किया है कि ‘देश की स्वतंत्रता को खतरा है’ इसे सुनकर देश की जनता अपना मूर्ख बनवाती रही है और इस नारे के सहारे कुछ लोग देश पर शासन करने में सफल होते रहे हैं।
कांग्रेस तो आज तक हर चुनाव में जिन गानों का प्रयोग मतदाताओं को रिझाने के लिए करती रही है, उनमें प्रमुख हैं-
तूफान से लाये हैं हम किश्ती निकाल के…..।
ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आंख में भर लो पानी…..।
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल…….।
‘तूफान’ है परतंत्रता। हमें पुन: डराया जाता है कि यदि वोट हमें नही दिया तो तूफान दोबारा भी आ सकता है। इसलिए वोट हमें दो।
चीन के आक्रमण के समय नेहरू जी ने सन 1962 ई. में हमें बैठा कर रूलाया कि रोओ। आंख में पानी भर लो। तूफान आ गया है-इससे बचना है तो आओ रो लेते हैं।
(लेखक की पुस्तक ‘वर्तमान भारत में भयानक राजनीतिक षडय़ंत्र : दोषी कौन?’ से)
पुस्तक प्राप्ति का स्थान-अमर स्वामी प्रकाशन 1058 विवेकानंद नगर गाजियाबाद मो. 9910336715

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