हम क्या हैं? इसे हमें संसार नहीं बताएगा, अपितु हमें ही स्थापित करना पड़ेगा कि-‘हम ये हैं।’ जब तक कोई देश अपनी विदेश नीति को इस आधार पर निर्मित नहीं करता है- तब तक वह एक याची के रूप में अंतर्राष्ट्रीय मंचों और संस्था-संस्थानों पर खड़ा दिखायी देता है। पर जैसे ही वह देश वेद के ‘अदीन’ होकर जीने के आदेश को शिरोधार्य कर राष्ट्र को एक जीवित प्राणी मानते हुए उसे इसी रूप में खड़ा करने का संकल्प ले लेता है तो परिणाम चाहे जो भी हों पर वह अपने आपको सिद्घ भी कर देता है, और स्थापित भी कर देता है, और हम देखते हैं कि तब उस देश को संसार दूसरे दृष्टिकोण से देखने समझने लगता है। पिछले कुछ दिनों से भारत के साथ ऐसा ही हुआ है, भारत खड़ा होने लगा है और भारत के प्रति विश्व के देशों का दृष्टिकोण बदलने लगा है। लेने के लिए हाथ आगे करना और देने के लिए हाथ आगे बढ़ाने में भारी अंतर है। निश्चय ही उनमें से एक हमारे आभामण्डल को दुर्बल करता है तो दूसरा हमारा हमें आत्मविश्वास से भरता है।
भारतीयों के लिए पूर्व नौसेना अधिकारी कुलभूषण जाधव की फांसी पर अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय द्वारा लगायी गयी रोक निश्चय ही आनंद और प्रसन्नता का विषय है। इससे पाकिस्तान की न केवल कूटनीतिक हार हुई है अपितु उसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अब एक सम्मानित और जिम्मेदार देश के रूप में स्थान मिलना भी कठिन होगा। शरीफ की शराफत को लोगों ने देख लिया है और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यह समझ लिया है कि शरीफ सरकार पाकिस्तान में आतंकी संगठनों की कृपा से ही चल रही है, वह स्वयं भयभीत है और एक ऐसे शासनाध्यक्ष से आप किसी प्रकार के आचरण की अपेक्षा नहीं कर सकते जो संसार या समाज के लिए न्यायसंगत और प्रेमपूर्ण हो। शरीफ एक ‘जिंदा लाश’ के रूप में पाकिस्तान के ‘वजीरे आजम’ की कुर्सी पर पड़े हैं। उनकी कलम पाकिस्तानी सेना के यहां गिरवी है तो हाथ का अंगूठा आतंकियों के यहां गिरवी है और उनकी जमीर को कौन खा गया?- यह तो स्वयं उन्हें भी नही पता। क्योंकि यदि उनकी जमीर (अंतरात्मा) होती तो वह ऐसी अपयश की जीवन शैली को त्यागकर सम्मानित जीवन जीने को प्राथमिकता देते। आज उनके हस्ताक्षर पाकिस्तान की सेना करती है और उनका अंगूठा आतंकी प्रयोग करते हैं। ऐसे निराधार व्यक्ति को या शासनाध्यक्ष को सारे संसार ने देख लिया है और समझ लिया है कि पाकिस्तान में लोकतांत्रिक सरकार एक मुखौटा मात्र है-वास्तव में तो वहां आतंक और आतंकियों का ही साम्राज्य है।
इस आतंक और आतंकियों की पाक सरकार ने हमारे पूर्व नौसेना अधिकारी को ईरान से अगुवा किया और उस पर जासूसी करने के झूठे आरोप लगाकर उसे फांसी की सजा सुना दी। पाकिस्तानी न्यायालय के इस निर्णय को भारत ने ‘कंगारू कोर्ट’ का निर्णय कहकर पुकारा। निश्चय ही इस निर्णय को पारित करने में किसी प्रकार के न्यायिक विवेक का परिचय नहीं दिया गया था इसके स्थान पर पूर्वाग्रह और भारत के प्रति ईष्र्याभाव ही इस निर्णय में दिखायी दे रहा था। पाकिस्तान की आतंकी सरकार सीधे-सीधे भारत से भिडऩे का साहस तो कर सकती नहीं, क्योंकि उसे भारत के शेरों ने पिछले 70 वर्ष में एक बार नहीं, चार बार जिस प्रकार धोया है-उसे वह भली प्रकार जानती है कि सीधे युद्घ में क्या होगा? ऐसे में वह छद्म युद्घ के मार्ग को ही अपने लिए उचित मानती है।
वैसे पाकिस्तान जिस रास्ते पर जा रहा है वह उसके आत्म विनाश का रास्ता है। यह लुप्त होता हुआ सितारा है जो अपने आप ही मिट जाना चाहता है और अब उसे मिटने से कोई रोक नही सकता। यह इतिहास के कूड़ेदान की वस्तु बनने जा रहा है और सिंधु शीघ्र ही गंगा से मिलने की तैयारी कर रही है। मजहब इतिहास बदल सकता है पर भूगोल को नहीं बदल सकता। जिस भूगोल के इंच-इंच पर अपना अधिकार स्थापित करने के लिए भारत के शेरों ने पिछले हजार वर्षों से अधिक के कालखण्ड में अपने अनगिनत और अमूल्य बलिदान दिये हैं। अंतत: उनके बलिदानी रक्त से उपजे भोर के सूर्य को देखना भी तो भारत देश का अपना जन्मसिद्घ अधिकार है। भारत ने आज के पाकिस्तान को अपना मानकर बलिदान दिये थे, और इस देश का मजहब इसका अपना हो सकता है पर भूमि तो आज भी हमारी है-उसे कोई नकार नहीं सकता। सत्तर वर्ष की अवैध दावेदारी 70 लाख वर्ष या 170 करोड़ वर्ष पुरानी वैध दावेदारी को समाप्त करने का आधार नहीं बन सकती।
हमें अपनी विदेशमंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज की सूझबूझ और कार्यशैली पर गर्व है। वह भारत में रहकर विदेशों में भारत के लोगों के साथ हो रहे अन्याय व अत्याचार पर गहरी दृष्टि जमाये रखती हैं। वह एक सफल विदेशमंत्री हैं, उन्हें विदेशी दौरों की भूख नहीं है परंतु वह विदेशों में भली प्रकार जानी जाती है। उन्हें एक देशभक्त भारतीय विदेशमंत्री के रूप में लोग मानने लगे हैं। उनके ये शब्द हर भारतीय को गौरवान्वित कर गये कि-‘जाधव किसी माता पिता के ही बेटे नहीं हैं-अपितु वह सारे देश के बेटे हैं।’ उनका यह कहना सारे देश के लोगों को भा गया और हर देशभक्त अपनी विदेशमंत्री के साथ आ खड़ा हुआ।
हम सभी देशवासियों को समझना होगा कि हम पाकिस्तान के विरूद्घ इजराइली पद्घति पर युद्घ करने के रास्ते पर बढ़ चुके हैं। यह लड़ाई लंबी चल सकती है, पर अब इसका निर्णय होकर ही रहेगा। इसमें हमें भी जानमाल की हानि होगी तो उस पर सरकार को कोसने के स्थान पर संयम रखना हमारे लिए उचित होगा। मोदी सरकार को चाहिए कि वह सेना को खुली छूट दे। भारत के वीर सैनिकों के 56 इंची सीने और मां भारती की 108 मनकों की माला अर्थात ‘भाला और माला’ अर्थात शस्त्र और शास्त्र का सुंदर समन्वय बन चुका है -परिणाम अच्छा ही आएगा।
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।