आवश्यकता है रामायण रेलमार्ग और उच्च राजपथ की

रामचंद्रजी महाराज भारत की संस्कृति के मर्यादा पुरूषोत्तम हैं, उनके बिना भारत की संस्कृति का जीवंत उदाहरण देना हमें कठिन हो जाएगा। भारत की मर्यादित संस्कृति की रक्षा कोई ऋषि, संत या महात्मा करे यह तो संभव है, पर इस कार्य को कोई राजवंशी राजपुरूष मर्यादित रहकर करे-यह अपने आप में एक महत्वपूर्ण बात है। कदाचित राम के व्यक्तित्व की इसी अनूठी प्रतिभा के कारण ही आदि कवि बाल्मीकि जी को उनके व्यक्तित्व को उकेरने के लिए ‘रामायण’ जैसे पवित्र ग्रंथ की रचना करनी पड़ी और यह लिखना पड़ा-”इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्न श्रीराम गुणों के भंडार हैं। उनकी आत्मा संयत है। वे तेजस्वी, धैर्यवान और वशी हैं। उनकी बुद्घि प्रखर है। वे नीतिज्ञ, भाषणपटु, शत्रु विजेता, धर्म के ज्ञाता और सत्य प्रतिज्ञ हैं। उन्होंने क्रोध को जीता हुआ है। वे जितेन्द्रिय हैं। वे सभी लोकों के रक्षक हैं, और स्वधर्म के परिपालक प्राणी मात्र उन्हें प्रिय हैं। वे साधु स्वभाव हैं। उनका आत्मा उन्नत है। वे विद्वान हैं। अपने इन उदार गुणों से सब भांति वे संपूर्ण प्रजा को रंजित एवं संतुष्ट रखते थे। इसलिए यथार्थ रूप में उनका ‘राम’ यह नाम लोकविख्यात था।”
राम हमारी राजनीति के लिए प्रेरक हो सकते हैं-क्योंकि वह संपूर्ण प्रजा को रंजित एवं संतुष्ट रखते थे। राम हमारे राजनीतिज्ञों के लिए प्रेरक हो सकते हैं, क्योंकि वे जितेन्द्रिय होकर राज भोगते थे, और सभी लोकों के रक्षक थे। लंपट और नारी समाज के भक्षक भेडिय़ा राजनीतिज्ञों के लिए राम प्रकाश स्तंभ हैं जो उन्हें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाकर जितेन्द्रियता का अमृत पिलाते हैं। राम इस देश के जन-जन के लिए प्रेरक हो सकते हैं, क्योंकि वे गुणों के भंडार हैं और यह संसार गुणों की ही पूजा करता है-
मानव की पूजा कौन करे, मानवता पूजी जाती है।
साधक की पूजा कौन करे, साधकता पूजी जाती है।।
इस संसार का सच यही है कि इसमें मानवता और साधकता की ही पूजा की जाती है। राम का चरित्र मानवता और साधकता का प्रतीक है, इसलिए उनके इस दिव्य गुण में समाज को मानवतावादी और साधकतावादी बनाने का भाव समाविष्ट है। इसलिए कुछ लोगों ने उन्हें ‘भगवान’ तक मान लिया। जिसमें लोगों को दानवता और असाधुता से मुक्ति दिलाने की अद्भुत सामथ्र्य है। वह ऐश्वर्य संपन्न होकर भी गुणों के भंडार हैं। जबकि आजकल व्यक्ति ऐश्वर्यों को पाकर बिगड़ता है, और संसार में अमर्यादा का संचार करता है। उसके काले कारनामे रात में तो चलते ही हैं दिन में भी उसके हृदय की कतरनी बंद नही होती। अत: मर्यादा पुरूषोत्तम राम मानव मात्र के लिए भी प्रेरणा का स्रोत हो सकते हैं।
हमारे मर्यादा पुरूषोत्तम राम के लिए कहा जाता है किउन्होंने ‘लंका विजय’ की। परंतु हमारा कहना है कि उन्होंने लंका विजय न करके लंकाधिपति रावण का नाश किया। यदि वह लंका विजय करते तो उसे जीतकर अपने राज्य के आधीन करते और फिर उसके राजा विभीषण को अपना कर दाता बनाकर छोड़ देते, परंतु राजा रामजी के विषय में ऐसा कोई उदाहण नहीं है कि उन्होंने विभीषण को अपना करदाता राजा बनाया। आज की साम्राज्यवादी शक्तियों को और उन देशों को राम के इस आदर्श चरित्र से शिक्षा लेनी चाहिए, जिन्हेंने संसार में उपनिवेशवादी व्यवस्था लागू की और संसार को अनेकों अनचाहे युद्घों में धकेल दिया, जिनमें करोड़ों लोग मारे गये। कुछ मक्कार इतिहास का इसके उपरांत भी राम को लंका पर चढ़ाई करने वाला आक्रांता शासक कहते हैं और उपनिवेशवादी शासन व्यवस्था के माध्यम से विश्व को अनेकों विनाशकारी युद्घों में धकेलने वाले क्रूर और अत्याचारी शासकों को अपने समय का अत्यंत नीतिज्ञ और प्रजावत्सल शासक सिद्घ करते हैं। ऐसे इतिहासकारों से मानवता का अहित हुआ है।
हमारा मानना है कि भारत की वैश्विक संस्कृति के संवाहक चरित्र और व्यक्तित्व के धनी मर्यादा पुरूषोत्तम राम की स्मृतियों को अक्षुण्ण रखने व उनके व्यक्तित्व से नई पीढ़ी को परिचित कराने के लिए देश में एक रेल गलियारा और एक उच्च राजपथ बनाया जाए। ये दोनों मार्ग अयोध्या से चलकर रामेश्वरम् तक जाने चाहिएं। इस महत्वाकांक्षी और राष्ट्रभक्ति को प्रकट करने वाली योजना से देश की एकता और अखण्डता को मजबूती मिलेगी और सारे देशवासियों के भीतर सांस्कृतिक और भावनात्मक एकता को बलवती करने में सहायता मिलेगी। 
रामचंद्रजी अयोध्या से चलकर प्रयाग पहुंचे थे, प्रयाग से चलकर वह चित्रकूट आये। चित्रकूट से चलकर विंध्य पर्वतमाला को पारकर विदर्भ से निकलते हुए आज के महाराष्ट्र में ‘पंचवटी’ पहुंचे थे। ‘पंचवटी’ के क्षेत्र को उस समय जनस्थान कहते थे। वहां तक रावण का राज्य था। जिसे पार कर राम दंडकारण्य की ओर बढ़े और किष्किंधा पर्वत पर पहुंच गये। किष्किंधा से वह आज के कर्नाटक को पार करते हुए केरल पहुंचे। वहां से वह आज के तमिलनाडु के रामेश्वरम् तक पहुंचे। जहां से उन्हेंने श्रीलंका के लिए पुल बनवाया था। तमिलनाडु को उस समय पांडय प्रदेश कहा जाता था।
इस रेलमार्ग को अयोध्या रामेश्वरम् रेल गलियारा कहा जा सकता है। उस पर दौडऩे वाली रेलों के नाम भी ‘अयोध्या, रामेश्वरम् एक्सप्रेस, इक्ष्वाकु एक्सप्रेस, रघुकुल एक्सप्रेस, मर्यादा पुरूषोत्तम एक्सप्रेस आदि  रखे जा सकते हैं। इस मार्ग पर पडऩे वाले स्टेशनों को रामायणकालीन नामों से ही पुकारा जाए। इसी प्रकार उच्च राजपथ (हाइवे) का निर्माण भी इसी तर्ज पर किया जाए। उस हाइवे का नाम रामायण उच्च राजपथ रखा जाए। 
रामचंद्रजी की अयोध्या में राममंदिर चाहे न्यायालय का निर्णय आने पर बना लिया, पर प्रदेश में योगी जी की सरकार अयोध्या को विश्व मानचित्र पर उभारने के लिए और उसके ऐतिहासिक व सांस्कृतिक गौरवपूर्ण इतिहास की रक्षा करने के लिए केन्द्र सरकार से मिलकर या उसे अपनी योजना से अवगत कराकर इस रेलमार्ग व उच्च राजपथ पर तो कार्य कर ही सकती है। जिन लोगों ने रामचंद्रजी को भारत के लिए अप्रासंगिक सिद्घ करने का राष्ट्रघाती प्रयास किया था, अब वे सत्ता से बहुत दूर हैं, अब तो सत्ता ‘रामपूजकों’ की है। जिन्हें निश्चय ही कुछ करना चाहिए। देश की जनता केन्द्र की मोदी सरकार और प्रदेश की योगी सरकार से सचमुच कुछ विशेष अपेक्षाएं रखती है, जिन पर उन्हें खरा उतरना चाहिए।

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