बनिया , बरगद और व्यापार*
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आर्य सागर खारी🖋️
पुर्तगाली व अगंरेज जब व्यापारी के रूप में सर्वप्रथम भारत आये तो उन्होंने भारत के गांवो में आश्चर्यजनक नजारा देखा। उन्होंने पाया अधिकांश गांवों के बाहर बरगद के पेड़ के नीचे गांव के किसानों व स्थानीय व्यापारियों बनियों की बैठके चलती है जहां बनिया व किसान हाथ में हाथ मिला कर कृषि उपज का शांतिपूर्वक सौदा कर लेते हैं वचनबद्धता ऐसी ठगी बेईमानी की कोई गुंजाइश नहीं थी । बेईमानी से कोई व्यक्ति वादाखिलाफी करता तो उसका सामाजिक बहिष्कार होता था ।ऐसा करने वाले व्यापारी या किसान की रकम को उसके भाई बंधु मिलकर वहन करते हैं। प्रायः किसी सौदे में विवाद होता ही नहीं था…. ना ही कोई लिखा पढ़ी। न लेने वाला बेईमान न देने वाला। मनु आदि महर्षि के व्यापार धरोहर से जुड़े हुए नियम की इस आदर्श व्यपार व्यवस्था के लिए जिम्मेदार थे सुदीर्घ परंपरा से। अंग्रेज पुर्तगाली व्यापारी भारतीय व्यापार व्यवस्था के मुरीद हो गए। बरगद के पेड़ को उन्होंने नया नाम दिया ‘ बनीयन ट्री ‘ अर्थात बनिया का पेड़। बरगद पेड़ का आज यही सामान्य अंग्रेजी नाम है। दीपावली बनियों का त्यौहार माना जाता रहा है दीपावली के अगले दिन से बनियों का नव वर्ष चलता है यह लंबी परंपरा रही है ।भारत ने दुनिया को व्यापार करना व्यापार के नियम सिखाएं ।भारत का बहीखाता, रोकड़ का ज्ञान अरब होते हुए यूरोप में गया। बनिये की बही जब पुरानी हो जाती थी तो उसे लाल कपड़े में लपेट कर रख देते थे। इसे अंग्रेजों ने भी अपनाया बहीयो के स्थान पर कागज जिल्द का प्रयोग किया और लाल कपड़े के स्थान पर लाल फीते का प्रयोग वह करते थे व्यापारिक फाइलों में। भारत में पैदा होने वाली शक्कर, चाय ,कपास ,जूट, मसाले ,नील अफीम व इत्र ने पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को बदल दिया दुनिया में जितनी आर्थिक औद्योगिक क्रांति हुई तकनीक स्थापित हुई वह भारत की इन्हीं वस्तुओं से उत्पन्न पूंजी के बल पर हुई । औपनिवेशिक शक्तियों ने 300 वर्ष भारत को लूटा । भारत की समृद्धि व धन की लूट को सबसे पहले 19वीं शताब्दी के समाज सुधारक दार्शनिकों महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने उद्घाटित किया है अपने ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश में वह लिखते है।
“परदेसी स्वदेश में व्यवहार व राज्य करे तो बिना दारिद्र्य और दुख के दूसरा कुछ भी नहीं हो सकता।” 10 वाँ समुल्लास सत्यार्थ प्रकाश।
“यह आर्यव्रत देश ऐसा देश है जिस के समान भूगोल में दूसरा कोई देश नहीं है इसलिए इस भूमि का नाम स्वर्ण भूमि है क्योंकि यही स्वर्ण आदि रत्नों को उत्पन्न करती है। आर्य नाम उत्तम पुरुषों का है।आर्यों से भिन्न मनुष्य का नाम दस्यु है जितने भूगोल में देश हैं वह सब इसी देश की प्रशंसा करते और आशा रखते हैं कि पारसमणि पत्थर सुना जाता है वह बात तो झूठी है परंतु आर्यव्रत देश की ही सच्चा पारसमणि है कि जिसको लोहे रूप दरिद्र विदेशी छूते के साथ ही सुवर्ण अर्थात धनाढ्य हो जाते हैं।” सत्यार्थ प्रकाश 11वा समुल्लास
यह वाक्य 1880 के दशक में लिखे गए सत्यार्थ प्रकाश ग्रंथ में महर्षि दयानंद ने बोले हैं। स्वदेशी स्वराज स्वराष्ट्र गौरव से संबंधित अन्य बहुत से कथन है महर्षि दयानंद सरस्वती के। गौ हत्या शराबखोरी आर्थिक संसाधनों की लूट अंग्रेजों की कर नीती ,वन नीति,मिशनरी मतांतरण जैसे विषयों पर अंग्रेजों को घेरने वाले प्रथम विचारक महर्षि दयानंद ही थे । महर्षि दयानंद अपनी स्वदेश भक्ति, स्वराज ,वैदिक राष्ट्रवाद के विचारों के कारण अंग्रेजों की आखों की किरकिरी आजीवन बने रहे ।वह महर्षि दयानंद पर निगरानी रखते थे उन्हें अपनी खुफिया फाइलों में बागी फकीर कहते थे। महर्षि दयानंद के अचानक देहावसान के पश्चात उनके इस कार्य को उनके मानस पुत्र श्यामजी कृष्ण वर्मा, दादाभाई नरोजी , महादेव गोविंद रानाडे भाई परमानंद, लाला लाजपत राय पंडित राम प्रसाद बिस्मिल स्वामी श्रद्धानंद शहीद भगत सिंह का समूचा परिवार आदि ने आगे बढ़ाया।
आर्य सागर खारी✍