मोदी सरकार के तीन वर्ष
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को देश का प्रधानमंत्री बने तीन वर्ष पूर्ण हो रहे हैं। उनके लिए यह एकसुखद तथ्य है कि वह आज भी अपनी लोकप्रियता को वैसी ही बनाये हुए हैं जैसी सत्ता संभालते समय 2014 में थी। यह उनकी उपलब्धि भी कही जाएगी। दूसरे उनके लिए यह एक और प्रसन्नतादायक तथ्य है कि कांग्रेस के पास आज भी उनका सामना करने के लिए सोनिया गांधी, मनमोहन और राहुल गांधी का वही चेहरा है जिसे लोगों ने 2014 के चुनावों में नकार दिया था। इन तीनों चेहरों में से पहले दो बड़ी तेजी से अब इतिहास बनते जा रहे हैं और तीसरा चेहरा वर्तमान बनने को या उज्ज्वल भविष्य की आशा बनने को तैयार नहीं हैं, जबकि चौथा चेहरा वहां उभरे ही नहीं-इस बात के लिए आज भी वैसे ही प्रयास किये जा रहे हैं जैसे 2014 तक किये जाते रहे थे।
राहुल गांधी ने भारत की सर्वाधिक पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस की विरासत को कल परसों के बच्चों (सपा, बसपा, राजद, जदयू, टी.एम.सी आदि) के यहां गिरवी रखना आरंभ कर दिया, जिससे लगता है कि सडक़ पर उतरकर मोदी सरकार का विरोध करना और जनजागरण के माध्यम से उसके विरूद्घ वातावरण बनाना उनके वश की बात नहीं है। वह आज भी संयुक्त विपक्ष का गठबंधन बनाकर देश की सत्ता तक पहुंचना चाहते हैं। जबकि अब ऐसा संभव नहीं है। दस्सी-पंजी एकत्र कर एक रूपया बनाकर लोगों को ठगने का समय अब चला गया है। सचमुच राहुल को यदि कांग्रेस बचानी है तो मोदी के सामने मैदान में उतरकर लड़ाई लडऩी होगी, अन्यथा आगामी 2019 के आम चुनावों में वह ‘कांग्रेस मुक्त’ भारत बनाकर भाजपा के सपनों को साकार कर देंगे।
बीते तीन वर्षों में प्रधानमंत्री मोदी ने देश का सम्मान विदेशों में बढ़ाया है अब कोई भी महत्वपूर्ण कार्य विश्व बिना भारत की सलाह के नहीं कर सकता। देश को ऐसी स्थिति में लाना मोदी की बड़ी उपलब्धि है। पाकिस्तान को दो सर्जिकल स्ट्राइकों के माध्यम से कड़ा संदेश देने में भी मोदी सरकार सफल रही है। अब हमारी सरकार ने पहली बार सेना के हाथ खुले छोड़ दिये हैं और उसे शत्रु से निपटने की पूरी छूट दे दी है। सारे देश के लिए यह अत्यंत दुख का विषय था कि हमारे सैनिकों को हाथ बांधकर सीमा पर खड़ा किया जाता था और शत्रु उनका शिकार करने में सफल हो जाता था। सवा अरब की जनसंख्या वाले देश के पास सब कुछ होते हुए भी उसके सैनिकों का इस प्रकार बलिदान हो जाना सारे देश के लिए अपमान की बात थी। हमें अपने सैनिकों के बलिदान का कोई दुख नहीं होना चाहिए, क्योंकि सैनिक मनोवैज्ञानिक रूप से बलिदान देने के लिए ही वहां जाता है, परंतु उसकी अपेक्षा यह भी होती है कि उसे अपना पराक्रम दिखने का भी अवसर वहां मिलेगा और वह पराक्रम दिखाते-दिखाते अनेकों शत्रुओं का नाश कर आवश्यक हुआ तो अपना बलिदान देगा। ऐसी ‘शहादत’ पर दुख नही गर्व होता है। पर हम देख रहे थे कि हमारे सैनिकों के हाथ बांधकर जिस प्रकार उन्हें खड़ा किया गया था उससे यही लगता था कि जैसे वे हमारे लिए ‘बलि के बकरे’ से अधिक कोई मूल्य नहीं रखते। सारा देश इस बात के लिए प्रसन्न है कि आज हमारे सैनिक खुले हाथों से शत्रु दमन में लगे हैं। कश्मीर के पत्थरबाजों से भी सेना सही ढंग से निपट रही है और यह पहली बार हुआ है कि पत्थरबाजों से निपटने के लिए जब एक सैन्याधिकारी अपनी जीप पर एक पत्थर बाज को बांध लेता है और ऐसा करके अनेकों जानों को बचा लेता है तो उसे भी दण्ड न देकर सम्मानित किया जाता है। अब से पहले आतंकियों के विरूद्घ कठोरता प्रदर्शित करने पर सैन्याधिकारियों के विरूद्घ ही कार्यवाही होती रही है।
देश में नोटबंदी से भी लोगों में उत्साह बढ़ा है। बेईमान और कालाधन रखने वालों को उससे अवश्य कष्ट हुआ है। परंतु नोटबंदी से भी महंगाई का कम न होना लोगों की चिंता बढ़ाता है। भ्रष्टाचार भी सरकारी कार्यालयों में पूर्ववत ही जारी है इसके अलावा भूख से भी लोगों को कोई मुक्ति मिली हो यह भी नही कहा जा सकता। परंतु इस सबके उपरांत भी लोगों में ‘मोदी जादू’ अपना प्रभाव बनाये हुए है। लोगों को अब भी लग रहा है कि मोदी सरकार को काम करने का अवसर दिया जाए, और लोग ऐसा उनके कार्यों का परिणाम आने की प्रतीक्षा न करने की शर्त पर भी करने को तत्पर हैं। यही स्थिति है जो मोदी को 2019 में भी लौटाने की सामथ्र्य रखती है। वैसे मुस्लिम जगत में तीन तलाक के विरूद्घ एक मौन क्रांति करके भी मोदी अपने लक्ष्य में सफल रहे हैं। उन्होंने मुस्लिम जगत की आधी आबादी की ‘मन की बात’ को समझकर उन्हें अपने ‘मन की बात’ को समझाने में भी सफलता प्राप्त की है। अब 2019 के आम चुनाव में मोदी को मुस्लिमों की भी बड़ी संख्या में वोट मिल सकती हैं और यदि मुस्लिम महिलाओं को वोट के दिन वोट डालने से रोका गया तो भी मुस्लिम मतों की प्रतिशतता में कमी आना तो निश्चित ही है। इससे यह लाभ मोदी को हो सकता है कि जो मत उनके विरूद्घ जाता, वह अब घर में ही रोक दिया जाएगा।
प्रधानमंत्री मोदी को अब भीतरी चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है। नक्सली हिंसा और पत्थरबाजों के विरूद्घ गृहमंत्री राजनाथसिंह की नीतियां सफल नहीं हो पा रही हैं। भीतरी सुरक्षा की स्थिति लगभग वैसी ही है जैसी 2014 से पूर्व थी। इससे लोगों में निराशा भी है, अच्छा हो कि वह गृहमंत्रालय में एक युवा और कर्मठ चेहरा बैठायें।
प्रधानमंत्री की ‘मेक इन इंडिया’ कौशल विकास, सबसे पहले भारत और स्वच्छता अभियान जैसे विचारों और योजनाओं ने भी लोगों को हृदय से प्रभावित किया है। पड़ोस के मोर्चे पर अभी पूर्ण सफलता के लिए हमें प्रतीक्षा करनी होगी। या तो हम आतंकवाद से लंबा युद्घ करेंगे और भारी ‘हानि’ को देश झेलेगा या एक बड़ा और घोषित युद्घ हमें लडऩा पड़ सकता है। उसमें भी विनाश होना निश्चित है। देश विनाश झेल सकता है पर अपना अपमान अब नहीं झेला जा सकता। मोदी संयमपूर्वक अपनी दिशा में बढ़ें-देश उनके साथ है।
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।