ग्रेटर नोएडा ( अमन आर्य ) यहां पर देव मुनि जी के आवास पर चल रहे ऋग्वेद पारायण यज्ञ में प्रवचन करते हुए आर्य जगत के सुप्रसिद्ध सन्यासी स्वामी ने कहा कि जब तक अविद्या है तब तक हमारी मुक्ति नहीं हो सकती। उन्होंने कहा कि अविद्याऽस्मितारागद्वेषाभिनिवेशा: पञ्च कलेशा: इस सूत्र में पांच प्रकार के क्लेश बताए गए हैं जिनमें अविद्या सबसे पहला है। सत्य ज्ञान को असत्य और असत्य रूपी अज्ञान को सत्य मानना, कर्ता व कर्म को एक ही मानना, किसी से अत्यधिक आसक्ति अर्थात प्रेम होना, किसी से अत्यधिक कटुता या नफरत करना व मृत्यु के भय से भयभीत होना । यह पाँच प्रकार के क्लेश अथवा कष्ट होते हैं जो दुःख उत्पन्न करते हैं ।
महाराज ने उपस्थित लोगों का मार्गदर्शन करते हुए कहा कि इस सूत्र में पाँच प्रकार के कलेशों का वर्णन किया गया है । यह क्लेश ही हमारे जीवन में दुःखों को आमंत्रित करते हैं । अतः समाधि या मोक्ष प्राप्ति की इच्छा रखने वालों को इन कलेशों से मुक्ति पाना अति आवश्यक है । मुख्य रूप से क्लेश का अर्थ है विपर्यय अर्थात विपरीत या मिथ्याज्ञान ( झूठा ज्ञान ) । जिस साधन से हम सही जानकारी को गलत व गलत को सही समझते हैं वह विपरीत ज्ञान क्लेश कहलाते हैं ।
स्वामी जी महाराज ने कहा कि क्लेशों की संख्या पाँच बताई है –अविद्या, अस्मिता ,राग ,द्वेष ,अभिनिवेश ।
उन्होंने कहा कि सत्य पदार्थों को असत्य व असत्य पदार्थों को सत्य मानने की गलती करना ही अविद्या नामक क्लेश होता है ।
यह अविद्या ही बाकी के सभी कलेशों की जननी अर्थात उनको जन्म देने या उनको पोषित करने वाली होती है । दृक व दर्शन शक्ति को एक ही मानने की भूल करना अर्थात कर्ता व कर्म को एक ही मानना । अस्मिता नामक क्लेश होता है । किसी भी पदार्थ या व्यक्ति विशेष के प्रति आसक्ति या प्रेम होना राग नामक क्लेश होता है । किसी के प्रति अत्यधिक कटुता या नफरत रखना द्वेष नामक क्लेश होता है । जब किसी भी व्यक्ति को अपनी मृत्यु का भय सताने लगी या वह अपनी मृत्यु से भयभीत हो जाना अभिनिवेश नामक क्लेश होता है ।
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