पल्ला में ऋग्वेद पारायण यज्ञ का अनुष्ठान आरंभ : कल्याणी आत्मा स्त्री, पुरुष व्यवहार से भिन्न होती है : आचार्य विद्या देव
ग्रेनो। ( अजय कुमार आर्य ) आर्य जगत के स्वनाम धन्य वानप्रस्थी देव मुनि जी के पैतृक गांव पल्ला व उनके मूल आवास निकट रेलवे फाटक पर नौ दिवसीय ऋग्वेद पारायण महायज्ञ का पूर्व में आयोजित अनेक पारायण यज्ञों की श्रंखला में 1 अप्रैल से लेकर 9 अप्रैल तक आयोजन किया जा रहा है। इस यज्ञ के ब्रह्मा वेदों व व्याकरण के विद्वान आचार्य विद्यादेव जी हैं।
कार्यक्रम के अध्यक्ष आर्य जगत के सन्यासी योगनिष्ठ पूज्य स्वामी चित्तेश्वरानन्द जी हैं। देवमुनि जी का परिवार व एसएस आर्य इंटर कॉलेज ,आर्यव्रत पब्लिक स्कूल व स्पोर्ट्स अकैडमी परिवार इसका आयोजक है।वानप्रस्थी देव मुनि जी प्रधान सुखबीर सिंह आर्य के नाम से पूर्व आश्रम मे प्रख्यात रहे हैं। आदर्श ग्राम प्रधान के साथ-साथ शिक्षाविद के तौर पर उन्होंने एसएस आर्य इंटर कॉलेज की स्थापना की ।
शिक्षा के क्षेत्र में इस संस्थान का योगदान अतुलनीय है। आसपास के गांव से ही नहीं ग्रेटर नोएडा के शहरी परिवेश के बच्चे भी इन संस्थानों में अध्ययन के लिए आ रहे हैं बड़ी संख्या में। मूल संस्थान की आगे दो शाखाएं सीबीएसई व ।यूपी बोर्ड के माध्यम से अंग्रेजी व हिंदी माध्यम से संचालित हो रही हैं। मुनि जी के छोटे सुपुत्र सरल सौम्य दानशील प्रवृत्ति के धनी भाई उदय प्रकाश आर्य इन संस्थानों को निदेशक के तौर पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
शिक्षा में आगामी प्रकल्प के लिए बेटियों के लिए महाविद्यालय भी बनकर तैयार है , स्नातक व स्नातकोत्तर शिक्षा के लिए। वैदिक कर्मकांड के साथ-साथ शिक्षा का यज्ञ भी मुनि जी के परिवार के माध्यम से चल रहा है। साथ ही वेदों के दर्जनों पारायण अनुष्ठान मुनि जी के परिवार में आयोजित हो चुके हैं ।हम परमपिता परमेश्वर से मुनि जी के दीर्घ जीवन आरोग्य व पारिवारिक जनों के यश वैभव की कामना करते हैं ।।मुनि जी के विद्वतसेवी , अतिथि सेवी इस परिवारों के माध्यम से परोपकार के कार्य हवन जप तप दान दक्षिणा आदि ऐसे ही संचालित होते रहे।
आज ऋग्वेद पारायण यज्ञ के दूसरे दिन प्रातः सत्र के यज्ञ समाप्ति के पश्चात यज्ञ के ब्रह्मा आचार्य विद्या देव जी ने शतपथकार महर्षि याज्ञवल्क्य को लेकर बहुत ही प्रेरक आख्यान सुनाया। विद्या देव जी ने बताया महर्षि याज्ञवल्क्य किसी गांव के आश्रम में ठहरे हुए थे। यह सुन एक महिला उनके सत्संग के लिए आश्रम के द्वार पर पहुंचती है । आश्रम के द्वार पर उपस्थित महर्षि के सहचर महिला को प्रवेश नहीं करने देते महिला चुपचाप वापस लौट जाती है जैसे ही महर्षि को यह पता चलता है वह सहचरो से पूछते हैं कि महिला को द्वार से लौट आने के पश्चात क्या महिला ने कुछ प्रतिक्रिया दी ? उन्होंने बताया महिला ने कुछ नहीं कहा । महामना ब्राह्मनिष्ठ महर्षि याज्ञवल्क्य ने कहा उस महिला को आदर सहित ढूंढ कर वापस मेरे पास लाइए। सहचर महिला को ढूंढ कर लाते हैं ।
महर्षि कहते हैं देवी प्रथम तो मैं क्षमा प्रार्थी हूं। मेरे सहचरों ने आपको यूं ही द्वार से लौटा दिया । आपने कोई वाणी से प्रतिक्रिया क्यों नहीं दी। उस महिला ने कहा कि मैं प्रतिक्रिया क्यों देती? जब यहां सब चर्म के व्यापारी हैं अर्थात मैं स्त्री हूं इसलिए मुझे लौटा दिया गया। जहां शरीर भेद से आत्मभेद माना जाता है वहां मेरी शंकाओं का समाधान क्या होगा? आत्मा का ना कोई लिंग है ना वह स्त्री है ना वह पुरूष न वह नपुसंक है वह तो अजर अमर शाश्वत है ।
उस विदुषी महिला जिसका नाम गार्गी था महर्षि के पूछने पर उसने अपना यह नाम बताया । गार्गी वेदों की ब्रह्मवादिनी रही हैं। गार्गी ने महर्षि से विस्तृत वार्तालाप किया मेरे ने उसका आदर करते हुए उसकी सभी शंकाओं का समाधान किया। आचार्य विद्या देव जी ने बताया कि वैदिक काल बहुत उच्च था। ज्ञानात्मक सिद्धांत व्यवहार सभी दृष्टि से। आचार्य जी ने यह भी बताया कि अथर्ववेद में आत्मा का नामकरण किया गया है ।वहां इसे कल्याणी कहा गया है। शरीर का ही जन्म मृत्यु होती है आत्मा के संयोग से। आत्मा का स्वरूप कभी नहीं बदलता। व्याख्यान के पश्चात सभी ने शांति पाठ किया पश्चात में सभी अतिथि व विद्वानों ने यज्ञ से प्रसाद भोजन को ग्रहण किया किया। ऋग्वेद पारायण महा
यज्ञ की पूर्णाहुति 9 अप्रैल को 11:00 बजे है। आप सभी धर्म ऋषि वैदिक संस्कृति प्रेमी इस अनुष्ठान में सादर आमंत्रित है।
इस अवसर पर सुप्रसिद्ध इतिहासकार एवं भारत को समझो अभियान के राष्ट्रीय प्रणेता डॉ राकेश कुमार आर्य द्वारा बताया गया कि 1 अप्रैल 1621 को जन्मे गुरु तेग बहादुर को इस अवसर पर विशेष से याद करने की आवश्यकता है, उन्होंने वैदिक संस्कृति की रक्षा के लिए अपना बलिदान कर दिया था। डॉ
आर्य ने कहा कि गुरु तेग बहादुर ने देश धर्म की रक्षा के लिए स्वयं का बलिदान तो दिया ही साथ ही उनके साथ भाई सती दास भाई मती दास जैसे वीर योद्धाओं ने भी अपना बलिदान देकर वैदिक संस्कृति की रक्षा करने का अपना दिव्य संकल्प पूर्ण किया था।
उन्होंने कहा कि जेता सिंह के उस बलिदान को भी हमको याद करना चाहिए जिसके अंतर्गत गुरु जी के कटे हुए शीश को उठाकर पंजाब ले जाकर गुरु जी के पुत्र गुरु गोविंद सिंह को देने में सफलता प्राप्त की थी ।इसी प्रकार लखी शाह और उनके बेटे की राष्ट्रभक्ति और स्वामी भक्ति को भी नमन करना चाहिए जिसके अंतर्गत लखी शाह ने अपना बलिदान देकर गुरुजी के शेष शरीर को अपने पुत्र के द्वारा सुरक्षित पंजाब पहुंचाने में सफलता प्राप्त की थी।