अजय कुमार
योगी सरकार की असली परीक्षा का समय अगले वर्ष लोकसभा चुनाव के रूप में आ रहा है जब कई चुनौतियां मुद्दे का शक्ल लेती नजर आ सकती हैं। लोकसभा चुनाव के नतीजे बताएंगे कि योगी ने इन चुनौतियों का कितने बेहतर तरीके से सामना किया है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपनी सरकार के दूसरे कार्यकाल का भी एक वर्ष पूरा कर लिया है। 25 मार्च 2022 को योगी ने जब दूसरी बार प्रदेश की कमान संभाली थी उसके बाद से आज तक यूपी में काफी कुछ बदल गया है। एक तो सबसे लंबे समय तक यूपी का मुख्यमंत्री बने रहने का रिकॉर्ड उनके नाम हो गया है दूसरे चुनावी वायदों को पूरा करने में भी योगी सरकार प्रतिबद्ध नजर आ रही है। योगी ने 36 साल बाद प्रदेश में दोबारा सरकार बनाने का रिकॉर्ड तोड़ा तो पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय संपूर्णानंद के बाद राज्य में सबसे लंबे समय तक लगातार मुख्यमंत्री रहने का कीर्तिमान भी बना दिया। हालांकि कानून व्यवस्था को लेकर योगी सरकार पर विपक्ष आरोप लगाता रहता है, लेकिन भ्रष्टाचार के मामले में योगी सरकार का दामन अभी भी पाक-साफ नजर आ रहा है।
योगी सरकार का एक वर्ष पूर्ण होने से एक दिन पूर्व 24 मार्च को वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी योगी सरकार की खूब पीठ थपथपा के यह साबित कर दिया कि उनके और योगी के बीच अच्छा सांमजस्य बना हुआ है। आज योगी ने प्रेस कांफ्रेंस करके अपनी सरकार की उपलब्धियों की चर्चा की, लेकिन विपक्ष को यूपी में सब कुछ हरा-हरा नजर नहीं आ रहा है। खासकर अपराध के मामले में विपक्ष योगी सरकार से ज्यादा ही उखड़ा हुआ है। उसे लगता है कि योगी सरकार अपराध के नाम पर एक वर्ग विशेष के लोगों को निशाना बना रही है।
उधर, सपा प्रमुख अखिलेश यादव आरोप लगाते हुए कहते हैं कि क्या बेरोजगारी कम हुई है, किसानों की आय दो गुनी हो गई है, किसानों को गन्ने का भुगतान मिल रहा है, गैस का सिलेंडर सस्ता हो गया है, मां गंगा-यमुना कितनी साफ हुई हैं? उनका कहना है कि न ही वायदे के अनुसार छात्रों को लैपटॉप या स्कूटी मिली है।
बहरहाल, योगी सरकार की मानें तो बीजेपी द्वारा विधानसभा चुनाव 2022 के समय जारी किए गए संकल्प पत्र के 130 में से 110 वादे या तो पूरे कर दिए गए हैं या अमल के लिए निर्णय हो चुका है। 33.50 लाख करोड़ रुपए का निवेश प्रस्ताव लाने वाले वैश्विक निवेशक सम्मेलन ने योगी सरकार के लिए बूस्टर का काम किया तो जी-20 समिट और शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के पर्यटन मंत्रियों की बैठक ने योगी की छवि वैश्विक स्तर पर मजबूत की। प्रदेश की अर्थव्यवस्था को 10 खरब डॉलर तक ले जाने का रोडमैप भी इसी एक वर्ष में तैयार किया गया है। यह सब तब हुआ जब योगी सरकार कुछ चुनौतियों से भी जूझ रही थी।
पिछली बार की तरह इस बार भी अपराधियों और माफिया के खिलाफ कठोर कार्रवाई ने सीएम की बुलडोजर बाबा की छवि को बरकरार रखा। मगर, प्रयागराज में दिनदहाड़े गोलीबारी और गवाह हत्याकांड ने इस छवि पर आंच पहुंचाई है। मुख्यमंत्री लगातार संवेदनशील शासन-प्रशासन पर जोर देते रहे हैं। पर, कानपुर देहात में मां-बेटी की संदिग्ध परिस्थितियों में जल कर हुई मौत पर अफसरशाही के रवैये ने एहसास कराया कि संवेदनशीलता के पैमाने पर अभी बहुत कुछ करना बाकी है।
राजनैतिक मोर्चे पर बात की जाये तो योगी सरकार ने एक वर्ष में तीन लोकसभा और दो विधानसभा उपचुनावों का सामना किया। इसमें सियासी तौर पर अहम रामपुर व आजमगढ़ लोकसभा तथा रामपुर विधानसभा सीट (आजम को तीन साल की सजा के बाद सदस्यता जाने से रिक्त सीट) जीत ली। मैनपुरी लोकसभा सीट सपा बरकरार रखने व मुजफ्फरनगर की खतौली सीट सपा की सहयोगी रालोद जीतने में सफल रही। इसी बीच स्वार के विधायक अब्दुल्ला आजम (आजम के बेटे) की सदस्यता रद्द हो गई। इसके साथ ही सरकार ने सपा के मुस्लिम चेहरा रहे आजम के सियासी किले को ध्वस्त कर उन्हें परिवार सहित चुनावी परिदृश्य से बाहर ढकेलने जैसी अकल्पनीय सफलता हासिल की। मगर, खतौली विधानसभा क्षेत्र की अपनी जीती हुई सीट की हार ने सरकार के लिए पश्चिम यूपी में नए समीकरण की चिंता बढ़ा दी। खतौली सीट भाजपा विधायक विक्रम सैनी को मुजफ्फरनगर दंगों में दो साल की सजा होने के कारण खाली हुई थी।
बात रोजगार की कि जाए तो एक तरफ योगी सरकार द्वारा बेरोजगारों को नियुक्ति पत्र बांटे जा रहे हैं तो दूसरी तरफ उनकी सरकार पर सरकारी नौकरियां खत्म करने के सियासी आरोप लगते रहे हैं। योगी सरकार ने इसकी तोड़ में मिशन-रोजगार शुरू किया। नियमित अंतराल पर समारोह कर नियुक्ति पत्र वितरित किए जा रहे हैं। मगर, शिक्षा से जुड़ी भर्तियों को एक छत के नीचे शिक्षा सेवा चयन आयोग के जरिए कराने के अपनी पहली ही सरकार की पहल पर अब तक अमल का इंतजार है। उधर, अफसोस की बात यह है कि राज्य में उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग के अध्यक्ष सहित ज्यादातर सदस्यों के पद खाली हैं। लंबित भर्ती की कार्यवाही ठप पड़ गई है। इसी तरह माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड के सदस्यों का कार्यकाल खत्म हो चुका है। टीजीटी-पीजीटी के चयन के लिए विज्ञापन निकाल कर फार्म लेने के बावजूद परीक्षा नहीं हो पाई है। लोगों को पता नहीं चल रहा है कि प्रस्तावित शिक्षा सेवा चयन आयोग आगे की भर्तियां करेगा या उच्चतर शिक्षा आयोग व माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन आयोग से पद भरे जाएंगे। लाखों युवाओं के सीधे भविष्य से जुड़े मुद्दों पर सरकारी दुविधा चर्चा का विषय है।
बात किसानों की कि जाए तो सरकारी अमले के दावे हैं कि किसानों से लेकर आम लोगों तक के लिए मुसीबत साबित हो रहे छुट्टा जानवरों की संख्या अब बमुश्किल 50 हजार ही रह गई है। बाकी छुट्टा जानवर गौ संरक्षण स्थलों में पहुंचा दिए गए हैं। मगर, हकीकत ये है कि तमाम किसानों की रातें अब भी फसलों की रखवाली में खराब हो रही हैं। बाड़बंदी पर खर्चे अलग से। गत दिनों की ओलावृष्टि और बरसात से किसानों की फसल को काफी नुकसान हुआ, लेकिन मुआवजा देने के मामले में किसान योगी सरकार के तरीकों से नाराज दिखे।
शासन और प्रशासन के मोर्चे पर ही नहीं, मंत्रिमंडल के स्तर पर भी मनभेद और मतभेद सार्वजनिक तौर पर सामने आने लगे हैं। मसलन, तबादलों में मनमानी और भ्रष्टाचार के आरोप विपक्ष ठीक से भले नहीं लगा सका। पर, तबादलों में ही गड़बड़ी के आरोप में लोक निर्माण मंत्री जितिन प्रसाद के निजी सचिव के खिलाफ कार्रवाई कर बाहर का रास्ता दिखाना पड़ा। उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने तबादलों पर सवाल उठाए तो अपर मुख्य सचिव चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अमित मोहन प्रसाद को हटाना पड़ा। जलशक्ति राज्यमंत्री दिनेश खटिक द्वारा अपने ही कैबिनेट मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह के संबंध में लिखे गए पत्र ने भी सरकार की खूब किरकिरी कराई। आबकारी मंत्री नितिन अग्रवाल के निजी सचिव भी हटा दिए गए। रही-सही कसर विधानमंडल के बजट सत्र के बाद विधायकों की सामूहिक फोटोग्राफी में पूरी हो गई। सदन में उपस्थित होने के बावजूद दोनों उपमुख्यमंत्री फोटोग्राफी में नहीं पहुंचे। इस पर विपक्ष को चुटकी लेने का मौका मिल गया। जातीय जनगणना के मुद्दे पर मतभेद खुलकर उजागर हुए। सरकार और संगठन इस मुद्दे पर केंद्र के निर्णय पर अमल की बात करते रहे। लेकिन, डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य जातीय जनगणना की खुलकर वकालत करते नजर आए।
बहरहाल, योगी सरकार की असली परीक्षा का समय अगले वर्ष लोकसभा चुनाव के रूप में आ रहा है जब कई चुनौतियां मुद्दे का शक्ल लेती नजर आ सकती हैं। लोकसभा चुनाव के नतीजे बताएंगे कि योगी ने इन चुनौतियों का कितने बेहतर तरीके से सामना किया है। 2014 में और 2019 में सर्वाधिक सीटें जीतने वाली भाजपा ने 2024 में सभी 80 सीटें जीतने का लक्ष्य तय किया है। जानकार बताते हैं कि योगी दोबारा मुख्यमंत्री बनने के बाद पहले कार्यकाल की अपेक्षा ज्यादा मजबूत हुए हैं। योगी सरकार की पहली पारी में पर्दे के पीछे विरोधी माने जाने वाले कई चेहरों का राजकाज से सीधे दखल खत्म हो चुका है। या तो वे दायित्व से मुक्त हो गए हैं या बाहर भेज दिए गए हैं। संघ परिवार से लेकर सरकार और संगठन तक में उनके शुभचिंतकों की संख्या बढ़ी है। राजकाज के अनुभव के साथ आत्मविश्वास भी बढ़ा है। सीएम के सलाहकारों की मानें तो योगी अब कड़े और बड़े निर्णय लेने में बिल्कुल भी नहीं हिचकिचाते। उसके नफा-नुकसान और समझाई जाने वाली जन-धारणाओं की ज्यादा परवाह भी नहीं करते हैं। तमाम निर्णय सिर्फ अपने विवेक से ले रहे हैं। ऐसे में आगे उनसे और बेहतर राजकाज की उम्मीद की जा सकती है।
योगी ने अपने राजकाज में एक नए मॉडल को आगे बढ़ाया है। इसे गवर्नेंस का कार्यवाहक मॉडल कह सकते हैं। सीएम ने स्वयं द्वारा नियुक्त नियमित पुलिस महानिदेशक मुकुल गोयल को गत वर्ष मई में हटाकर कार्यवाहक डीजीपी डीएस चौहान को बना दिया। सभी की उम्मीदें थी कि जल्दी ही वह नियमित डीजीपी बन जाएंगे। केंद्र व राज्य में दोनों जगह एक ही पार्टी की सरकार होने के बावजूद दस महीने बीत गए, नियमित डीजीपी की नियुक्ति नहीं हो सकी। चौहान इसी महीने सेवानिवृत्ति होने वाले हैं। डीजी इंटेलिजेंस और डीजीपी अलग-अलग रखने के कई फायदे बताए जाते हैं। ये दोनों मुख्यमंत्री के अलग-अलग दो कान बताए जाते हैं। मगर, योगी ने दोनों ही पदों को एक ही अफसर को सौंपकर नए तरह का प्रयोग किया। प्रयागराज में प्रदेश को हिला देने वाला गवाह हत्याकांड को इंटेलिजेंस की विफलता की सबसे बड़ी घटनाओं में से एक माना जा रहा है।
योगी के पहले कार्यकाल में कहा जाता रहा है कि वह शक्ति के केंद्रीयकरण में विश्वास रखते थे। मगर, दूसरे कार्यकाल में वह बिल्कुल बदले रूप में सामने आए। योगी ने अपने और दोनों उपमुख्यमंत्रियों केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक के बीच बराबर-बराबर 25-25 जिलों का बंटवारा कर लिया। अब सरकार के तीनों मुख्य चेहरे बराबर-बराबर जिलों के राजकाज की मॉनीटरिंग कर रहे हैं। योगी ने मंत्रिसमूहों का गठन कर जिलों का भ्रमण कराया और मंत्रिपरिषद की नियमित बैठक के अलावा लगभग हर महीने मंत्रिमंडल के साथियों के साथ मुलाकात का समय निकाला।
बात सलाहाकारों की कि जाए तो योगी के पहले कार्यकाल में सिर्फ दो सलाहकार हुआ करते थे। सरकार के शुरुआती दिनों से सबसे पहले मीडिया सलाहकार के रूप में मृत्युंजय कुमार और फिर आर्थिक सलाहकार के रूप में केवी राजू जुड़े थे। दूसरे कार्यकाल में सीएम ने सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी अवनीश कुमार अवस्थी को सलाहकार, यूजीसी के पूर्व चेयरमैन डॉ. डीपी सिंह को शिक्षा सलाहकार और जीएन सिंह को खाद्य सलाहकार के रूप में जोड़ा। सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी अरविंद कुमार को जल्द ही सलाहकार उद्योग के रूप में जोड़ने की तैयारी है। संगठन से मुख्यमंत्री के विशेष कार्याधिकारी के रूप में पहले कार्यकाल में भेजे गए अभिषेक कौशिक की जगह श्रवण बघेल आ गए हैं तो संजीव सिंह पूर्व की तरह बने हुए हैं।
योगी सरकार पर यह भी दाग लगा हुआ है कि वह नगर निकाय चुनाव समय पर नहीं करा सके। निर्वाचित प्रतिनिधियों का कार्यकाल खत्म होने की वजह से सरकारी प्रशासक बैठाने पड़े। वैसे चुनाव न हो पाने के लिए कई तकनीकी व कानूनी वजह बताए जा रही है। मगर, जनता में संदेश गया है कि अफसरशाही जानबूझकर देर से चुनाव तैयारी शुरू करती है, ताकि चुनाव टल सकें और पंचायतों व निकायों के धन को अफसर बिना जनप्रतिनिधियों के हस्तक्षेप खर्च कर सकें। अंत में यह भी कहना जरूरी है कि योगी-2 सरकार पूरी तरह से योगी आदित्यनाथ की सफलता की पूंजी है। 2017 का विधानसभा चुनाव जहां मोदी के चेहरे पर लड़ा गया था, वहीं 2022 के विधानसभा चुनाव योगी ब्रांड पर हुए थे, जिसमें योगी को शानदार सफलता मिली थी। वह मोदी की छत्रछाया से बाहर निकल आए थे।
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