ब्राइड ट्रैफिकिंग : कुछ रिश्ते मीठे भी होते हैं
सीटू तिवारी
पटना, बिहार
जानकी देवी और रीता दास रिश्ते में सास–बहु लगती हैं. वो कटिहार के धीमनगर की खेड़िया पंचायत की रहने वाली हैं और अपने गांव के दूसरे परिवारों से इतर, बहुत सुकून में हैं. वजह ये कि उन्होंने अपने घर की बेटियों की शादी बहुत सोच समझ कर की है. जानकी देवी बताती हैं, “साल 2008 में जब शादी के लिए दलाल आया तो डर लगा हुआ था, लेकिन हमने भी शर्त रख दी कि दूल्हे का घर देखकर ही शादी करेंगें. अपनी दोनों बेटियों रंजू और संजू का ससुराल देखने के लिए परिवार के सारे मर्द गए थे. फिर जब ठीक लगा तभी यू पी के चंदौसी (संभल जिला) में शादी की. ऐसा नहीं है कि शादी के बाद बेटी को भूल गए बल्कि हम रेगुलर अपनी बेटियों से फोन पर बातें करते हैं, कहिए तो आपकी भी करा दे?” हालांकि जानकी ने अपनी बेटियों की शादी का वही रास्ता अपनाया जिसे अकादमिक भाषा में “ब्राइड ट्रैफिकिंग” कहते हैं, लेकिन उनकी जागरूकता के कारण ही आज उनकी बेटियां अपने अपने ससुराल में खुश हैं और उनका हालचाल मायके वालों को मिलता रहता है. ऐसा नहीं हैं कि ब्राइड टैफिकिंग के हर मामले का अंत दुःख देने वाला हो, लेकिन ‘हैप्पी एंडिंग’ वाले मामले बहुत ही कम देखने को मिलते हैं.
बिहार के ग्रामीण हिस्सों खासतौर पर सीमांचल के हिस्से में शादी के नाम पर लड़कियों की ट्रैफिकिंग की ख़बरें आम हैं. इस ट्रैफिकिंग में उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान सहित कई प्रदेशों से आने वाले दूल्हे, शादी के नाम पर बिहार की कम उम्र की लड़कियों को खरीद लेते हैं. ऐसे ज्यादातर मामलों में शादी के बाद लड़की का उसके मायके से रिश्ता नहीं रहता है और खुद मायके वाले भी दूल्हे और उसके घर परिवार के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं रखते हैं. बिहार में तीन दशक से भी ज्यादा समय से पत्रकारिता कर रहे रमाकांत चंदन कहते है, “बिहार में ब्राइड ट्रैफिकिंग की एक वजह तो असमान लिंगानुपात है. आप देखिए पंजाब, हरियाणा, राजस्थान इन सभी जगहों पर लिंगानुपात में बहुत अंतर है. लेकिन एक दूसरी वजह ये भी समझ में आती है कि बिहार के समाज के भीतर और बाहर भी ये समझ आम बनी हुई है कि बिहार सस्ते श्रमिकों का बाजार है. यही समझ बिहार से लड़कियों की ‘सस्ती’ खरीदारी तक विस्तार पाती है.”
रमाकांत चंदन जो बात कह रहे हैं वह ब्राइड ट्रैफिकिंग के मामले में दुल्हनों के ‘रेट’ से भी पुख्ता होता है. महज पांच हजार से लेकर बीस हजार में ये लड़कियों बिक जाती हैं. कई बार तो किसी एक गांव में जब दलाल जाते हैं तो एक दूल्हे के सामने कई लड़कियों के ऑप्शन दिए जाते हैं. रेखा देवी के देवर के लिए भी इसी तरह ‘संभावित’ दुल्हनों को एक लाइन में खड़ा किया गया था. घरेलू कामगार रेखा देवी, लखनऊ से सटे सीतापुर जिले के महोली के गिरधरपुर गांव की है. रेखा देवी ने भी अपने शराब पीने वाले देवर के लिए बिहार के सीवान जिले से 20,000 रुपए में दुल्हन खरीदी थी. वो बताती है, “देवर की शादी नहीं हो रही थी तो सबने कहा बिहार से पैसे देकर दुल्हन ले आओ, हमने 20,000 रुपये खर्च किए थे. बहुत सारी लड़कियों के बीच में से देवर ने एक गोरी चिट्टी लड़की पसंद की थी. लेकिन इस बीच देवर ही मर गया तो फिर दुल्हन को विदा नहीं कराया गया. देवर के मरने के बाद वो लड़की मुझे बार –बार फोन करके मिन्नतें करती थी कि मैं अपने पति की शादी भी उससे करा दूं. बदले में वो मेरा सारा काम करेगी. लेकिन अपने पति की शादी उससे कैसे करा देती? मैं अपनी सौतन कैसे ले आऊं?”
सीतापुर के इस गांव में बिहार के अलग अलग हिस्सों से इसी तरह ब्राइड ट्रैफिकिंग के जरिए तीन लड़कियां, ब्याह कर आई हैं. इनमें से एक बहु कहती है, “हमारे अपने मायके में खाने को कुछ था ही नहीं, जब बिहार में बाढ़ आती है तो हमारे मां बाप और परिवार के कई सदस्य भी यहीं आ जाते हैं. हम सब मिलकर खेत में बहुत मेहनत से काम करते हैं. मेरे मायके वाले खुश रहते है क्योंकि वो बाढ़ से बच जाते है और खाने को भी भरपूर मिलता है.” लेकिन बिहार से बाहर ब्याही गई इन लड़कियों को वहां के स्थानीय लोग अपने फायदे के लिए दलाल बनाने की कोशिश भी करते रहते हैं. ऐसी ही महिला गीता देवी मुझे बिहार के जमुई जिले के झाझा स्टेशन पर मिली, वो जमुई के सोनो प्रखंड के मानोवंदर गांव की हैं और उनकी शादी उत्तर प्रदेश में लखनऊ के सिधौली में हुई है. अपने दो बच्चों के साथ आठवीं पास गीता अपने मायके एक शादी में हिस्सा लेने आई थी.
वो बताती है, “सिधौली के आस पास के गरीब लोग आते हैं और कहते हैं हमारी बेटी की भी अपने इलाके में शादी करा दो, बाकी जो खर्चा पानी होगा, हम करेंगे, लेकिन हमने आज तक किसी को हामी नहीं भरी, इससे लोग हमसे नाराज भी हो जाते हैं. लेकिन हम पैसे के लालच में दलाल क्यों बने?” लेकिन लोग बिहार की लड़कियों से शादी क्यों करना चाहते है? पूछने पर गीता इसकी दो वजहें गिनाती है. वो कहती है, “जिनके लड़के में कोई कमी होती है, उनकी शादियां वहां हो नहीं पाती हैं. दूसरी वह शादी में लाख दो लाख खर्च नहीं कर पाएंगे, इसलिए दस-बीस हजार रूपये खर्च करके दुल्हन चाहते हैं. इसके अलावा, बिहार से कोई परिवार अपनी लड़की का ससुराल देखने ही नहीं जाता है. अब आसपास के लोगों को धोखा तो दे नहीं सकते तो बिहार के लोगों के सामने ही गलत बयानी करके उसकी लड़की ब्याह लाते है.”
दरअसल ध्यान से देखने पर ये समझ आता है कि शादी का हो जाना ही ग्रामीण किशोरियों के जीवन का केन्द्र बिन्दु मात्र है. बिहार महिला समाज की अध्यक्ष सुशीला सहाय कहती हैं, “शहर में लड़कियों के लिए जीवन में और भी बहुत सारी महत्वपूर्ण बातें हो गई हैं, लेकिन गांव में रहने वाली बच्चियों के लिए शादी जीवन का बहुत अहम हिस्सा है. इसकी वजह से हो ये रहा है कि वो शादी के नाम पर बहुत सारे अपराध हो रहे हैं जिसमें ब्राइड ट्रैफिकिंग तक शामिल है. चूंकि शादी एक ऐसी संस्था है जिसमें समाज का एक पूरा ढांचा सम्मिलित होता है, इसलिए उसमें सुरक्षा और अपराध दोनों ही शामिल है.” कटिहार के शेरशाहबादी अल्पसंख्यक मुस्लिम समाज की महिलाओं की बिन ब्याही लड़कियां भी इस कहानी का एक हिस्सा हैं. धीमनगर की खेड़िया पंचायत में शेरशाहबादी मुसलमानों की बड़ी आबादी है. इस आबादी में भी शादी का रिश्ता लाने के लिए दलाल को रुपये चुकाने पड़ते हैं.
रेफुल खातून के पिता ने भी उसकी शादी के लिए दलाल को 10,000 रुपये दिए थे. वो कहती है, “हमारे यहां अगर दलाल को पैसे नहीं देंगे तो शादी होगी ही नहीं. दलाल ही रिश्ता लेकर आता है. यहीं नियम है. हम लोग सीधे किसी के पास रिश्ता लेकर नहीं जा सकते हैं.” शेरशाहाबादियों में प्रचलित इस नियम के चलते इलाके में कई लड़कियों की शादी नहीं हो पाती है. इसी समाज की उसनारा खातून बताती हैं, “दलाल को जैसा पैसा देंगें, वैसा ही लड़का आएगा, कई बार ऐसा नहीं हो पाता तो लड़कियों की शादी नहीं होती और फिर लड़की के घर वाले ही उसके साथ बुरा व्यवहार करते हैं.”
तो क्या उसनारा को अपनी शादी नहीं होने का भी डर लगता है? जवाब में 14 साल की उसनारा खातून और उसकी हमउम्र निगोलफा, रेशमा, अली आरा खातून कहती है, “डर क्यों नहीं लगेगा? हमारे साथ भी ऐसा हो सकता है. ऐसा हुआ तो जीना मुश्किल हो जाएगा.” यह आलेख संजॉय घोष मीडिया अवार्ड 2022 के अंतर्गत लिखा गया है. (चरखा फीचर)