विश्व तपेदिक (टीबी) दिवस (24 मार्च) पर विशेष उपचार और जागरूकता के बावजूद टीबी मरीजों के बढ़ते आंकड़े
भारती डोगरा
पुंछ, जम्मू
कोरोना से पहले देश और दुनिया में जिन बीमारियों ने सबसे अधिक लोगों की जान ली हैं, उनमें टीबी प्रमुख है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक दुनिया भर में टीबी के मरीजों की संख्या लगभग एक करोड़ से अधिक है. साल 2022 में इस रोग से करीब 16 लाख लोगों की जाने गई हैं. भारत में भी टीबी के मरीजों की संख्या बहुत अधिक है. डब्लूएचओ के मुताबिक दुनिया में टीबी के कुल मामलों का 28 प्रतिशत मरीज अकेले भारत में है. टीबी इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2020 में 92000 लोगों में इस रोग की पहचान की गई थी, जबकि साल 2019 में भारत में कुल दो लाख से अधिक मामले दर्ज किए गए थे.
संक्रमित बीमारी के बारे में जागरूकता बढ़ाने व वैश्विक टीबी महामारी को समाप्त करने के प्रयासों को आगे बढ़ाने के लिए हर साल 24 मार्च को विश्व टीबी दिवस मनाया जाता है. माना जाता है कि इसी दिन वर्ष 1882 में डॉ रॉबर्ट कोच ने घोषणा की थी कि उन्होंने उस जीवाणु की खोज कर ली है. जो तपेदिक का कारण बनता है. उनकी यही खोज इस बीमारी के निवारण में बहुत मददगार साबित हुई है. डॉ कोच के इसी उपलब्धि को सम्मान देने के लिए हर वर्ष 24 मार्च को विश्व टीबी दिवस मनाया जाता है. इसका उद्देश्य टीबी को लेकर लोगों को जागरूक करने के साथ ही इसकी रोकथाम भी है. इसी जागरूकता और समझ को बढ़ाने के लिए हर साल थीम भी रखा जाता है. वर्ष 2022 की जहां इसकी थीम “इन्वेस्टमेंट टू एंड टीबी” था, वहीं इस वर्ष इसकी थीम “यस वी कैन एंड टीबी” रखा गया है. इसी जागरूकता के कारण साल 2000 से अब तक दुनिया भर में 66 मिलियन लोगों की टीबी से जान बचाई गई है.
यह जान लेना बहुत जरूरी है कि टीबी है क्या? दरअसल टीबी बैक्टीरिया से होने वाली एक बीमारी है. सबसे कॉमन फेफड़ों में होने वाला टीबी है. यह हवा के जरिया एक से दूसरे तक फैलता है. इस संबंध में डॉ प्रतिभा डोगरा कहती हैं कि टीबी के कुछ खास लक्षण होते हैं, जैसी हल्का बुखार, भूख कम हो जाना, हांफना और लगातार एक महीने से अधिक खांसी का होना इसके अहम लक्षणों में एक है, जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है. डॉ प्रतिभा डोगरा का कहना है कि टीबी शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकती है. चूंकि यह रोग खांसने से फैलता है इसलिए ऐसे लोगों से बचाव बहुत ज़रूरी है. वहीं खांसने वालों को भी स्वच्छता का पालन करते हुए और अन्य लोगों को संक्रमण से बचाने के लिए अपने मुंह को ढंक कर रखनी चाहिए.
भारत में 2022 में टीबी के 21 लाख से अधिक नए केस दर्ज किए गए थे. जो पिछले साल की तुलना में 18 फीसदी अधिक है. यानी भारत में आंकड़ा बढ़ रहा है. देश के विभिन्न राज्यों में टीबी के अलग अलग आंकड़े देखने को मिलते हैं. एनएचएम के आंकड़ों के मुताबिक जम्मू-कश्मीर में वर्ष 2018-19 मे 11345, वर्ष 2019-20 में 12895 और वर्ष 2020-21 में टीबी के 11860 मामले दर्ज हुए हैं. तमाम उपचारों और जागरूकता अभियानों के बावजूद टीबी के मरीजों के बढ़ते आंकड़ों पर लगाम नहीं है. यही वजह है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने साल 2030 तक दुनिया के नक्शे से टीवी को खत्म करने का लक्ष्य रखा है. जबकि भारत ने डब्लूएचओ के लक्ष्य से 5 साल पहले ही यानि साल 2025 तक देश को टीबी जैसे घातक रोग से मुक्त करने की प्रतिबद्धता जताई है. यही वजह है कि देश में 4 लाख से अधिक डॉट सेंटर खोले गए हैं, जहां टीबी के मरीज़ों की पहचान कर उन्हें रोगमुक्त करने का अभियान चलाया जा रखा है. यह डॉट सेंटर देशभर के गांव-गांव में टीबी के मरीज़ों का उपचार कर रहे हैं.
केंद्र सरकार साल 2025 तक भारत को टीबी मुक्त राष्ट्र बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठा रही है. इसके लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय सामुदायिक स्तर पर टीबी रोग उन्मूलन कार्यक्रम चलाकर जनभागीदारी बढ़ाने का फैसला किया है. स्वास्थ्य मंत्रालय की पहल पर निक्षय मित्र कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं. जिसके जरिए टीबी को देश से खत्म किया जाएगा. दरअसल टीबी उन्मूलन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए निक्षय मित्र कार्यक्रम के माध्यम से जन भागीदारी शुरू की गई है. जिसमें कोई भी आम नागरिक निक्षय मित्र बनकर टीबी के उन्मूलन में अपनी ज़िम्मेदारी निभा सकता है. इस कार्यक्रम के अंतर्गत टीबी रोगियों को गोद लेकर उनकी पोषण एवं उनके चिकित्सीय ज़रूरतों को पूरा करना है.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की पहल पर अब अधिक से अधिक लोगों को टीबी रोग के प्रति जागरूक किया जा रहा है. इसके साथ टीबी रोग पर फ्री जांच की सुविधा और अलग-अलग कार्यक्रमों के माध्यम से भी लोगों को जागरूक किया जा रहा है. इसी कड़ी में हरियाणा ने एक सराहनीय कदम की पहल की है. हरियाणा ने 2025 तक भारत को टीबी मुक्त बनाने के राष्ट्रीय लक्ष्य से पहले ही राज्य को देश का पहला टीबी मुक्त राज्य बनने का लक्ष्य रखा है. राज्य के मुख्यमंत्री ने स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक के दौरान कहा कि इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए एक राज्य टास्क फोर्स का गठन किया जाएगा, जिसके तहत सरकारी और निजी क्षेत्र के चिकित्सक संस्थान और डॉक्टर हरियाणा को टीबी मुक्त बनाने के लिए मिलकर काम करेंगे. मुख्यमंत्री खट्टर ने निर्देश दिए कि टीबी रोगियों का पता लगाने के लिए प्रत्येक जिले में मोबाइल वैन तैनात की जाए, जो घर घर में टीबी निदान परीक्षण करेंगे.
बहरहाल, अगर हरियाणा सरकार के नक्शे कदम पर चलते हुए बाकी राज्य की सरकारें भी टीबी को लेकर गंभीर होती हैं और लोगों को जागरूक करने का अभियान चलाती है, तो वह दिन दूर नहीं जब लक्ष्य से पहले भारत टीबी की बीमारी से मुक्त हो जाएगा. (चरखा फीचर)