ब्रहमानंद राजपूत
यमुना नदी एक हजार 29 किलोमीटर का जो सफर तय करती है, उसमें दिल्ली से लेकर चंबल तक का जो सात सौ किलोमीटर का जो सफर है उसमें सबसे ज्यादा प्रदूषण तो दिल्ली, आगरा और मथुरा का है। दिल्ली के वजीराबाद बैराज से निकलने के बाद यमुना बद से बदतर होती जाती है।
यमुना नदी यमुनोत्री ग्लेशियर से निकलती है और गंगा नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी है आज यह नदी गंगा नदी से भी ज्यादा प्रदूषित है। भारतवर्ष की सर्वाधिक पवित्र और प्राचीन नदियों में यमुना को गंगा के साथ रखा जाता है। जिस तरह गंगा नदी का सांस्कृतिक इतिहास है उसी प्रकार यमुना नदी का भी सांस्कृतिक इतिहास है। सम्पूर्ण ब्रज क्षेत्र की तो यमुना एक मात्र महत्वपूर्ण नदी है। जहां तक ब्रज संस्कृति का संबध है, यमुना को केवल नदी कहना ही पर्याप्त नहीं है। वस्तुतः यह ब्रज संस्कृति की सहायक, इसकी दीर्ध कालीन परम्परा की प्रेरक और यहा की धार्मिक भावना की प्रमुख आधार रही है। जिस प्रकार ब्रज क्षेत्र में कृष्ण का स्थान है उसी प्रकार ब्रज में यमुना का स्थान है। आज उसी नदी यमुना में प्रदूषण का स्तर खतरनाक है, और दिल्ली से आगे जा कर ये नदी मर रही है. और यमुना एक नाला बन कर रह गयी है। और इसकी सांसें छिन रही हैं।
जो लोग यमुना पर सालो से शोध कर रहे है उन विशेषज्ञों का मानना है कि इसकी वजह है औद्योगिक प्रदूषण, बिना ट्रीटमेंट के कारखानों से निकले दूषित पानी को सीधे नदी में गिरा दिया जाना, यमुना किनारे बसी आबादी मल-मूत्र और गंदगी को सीधे नदी मे बहा देती है, लेकिन इनमें सबसे खतरनाक है रासायनिक कचरा जो कि यमुना किनारे लगे कारखाने उडेल रहे है।
आज यमुना का हाल घर में पड़ी बूढ़ी मां की तरह हो गया है जिसे हम प्यार तो करते हैं, उसका लाभ भी उठाते हैं, लेकिन उसकी फिक्र नहीं करते। यमुना का आधार धार्मिक, आर्थिक और सांस्कृतिक है। इस नदी का गौरवशाली इतिहास रहा है, इसलिए यमुना को प्रदूषण मुक्त कर उसकी गरिमा लौटने की मुहिम के लिए सभी देशवासिओ को आगे आना होगा।
देश की हर नदी पर व्यवासायिक गतिविधियां दिनोदिन बढती जा रही है, कम से कम यमुना और देश की प्रमुख नदियों को इससे मुक्त रखने की जरूरत है।
दिल्ली का वजीराबाद बैराज एक ऐसी जगह है जहाँ पर आपको यमुना की बदहाली का जवाब शायद मिल जाएगा। यही वो जगह है जहाँ से नदी दिल्ली मे प्रवेश करती है और इसी जगह पर बना बैराज यमुना को आगे बढ़ने से रोक देता है। यहीं तक यमुना नदी बहती है इसके आगे यमुना रुपी नाला बहता है। वजीराबाद के एक ओर यमुना का पानी एकदम साफ और दूसरी तरफ एक दम काला, इसी जगह से नदी का सारा पानी दिल्ली द्वारा उठा लिया जाता है और जल शोधन संयंत्र के लिए भेज दिया जाता है ताकि दिल्ली की जनता को पीने का पानी मिल सके। बस यहीं से इस नदी की बदहाली भी शुरु हो जाती है। दिल्ली में यमुना नदी में 22 किलोमीटर के सफर में ही 18 से ज्यादा नाले मिल जाते हैं तो बाकी जगह का हाल क्या होगा। इसमें सबसे बड़ा योगदान औद्योगिक प्रदूषण का है जो साफ हो ही नही रहा।
यमुना नदी एक हजार 29 किलोमीटर का जो सफर तय करती है, उसमें दिल्ली से लेकर चंबल तक का जो सात सौ किलोमीटर का जो सफर है उसमें सबसे ज्यादा प्रदूषण तो दिल्ली, आगरा और मथुरा का है। दिल्ली के वजीराबाद बैराज से निकलने के बाद यमुना बद से बदतर होती जाती है। इन जगहों पर यमुना के पानी में ऑक्सीजन तो है ही नही। चंबल नदी से मिलकर इस नदी को जीवन दान मिलता है और पुनः पुनर्जीवित होती है, वो फिर से अपने रूप में वापस आती है।
नदी साफ रहने के लिए जरूरी है कि पानी बहने दिया जाए, हर जगह बांध बना कर उसे रोकने से काम नही चलेगा। दिल्ली के आगे जो बह रहा है वो यमुना है ही नही वो तो मल-जल है। पहले मल- जल को नदी में छोड़ दो और उसके बाद उसका उपचार करते रहो तो नदी कभी साफ नही हो सकती।
यमुना ऐक्शन प्लान के दो चरणों में इतना पैसा बहाने के बाद भी अगर नदी का हाल वही का वही है तो इसका सीधा मतलब ये है कि जो किया गया हैं वो सही नही है। इसमें से ज्यादा पैसा यमुना को साफ और प्रदूषित मुक्त बनाने की बजाय भ्रष्टाचार की भेट चढा है ये जगजाहिर होता है। करोड़ों रुपए खर्च होने के बाद भी अभी तक कोई परिणाम क्यों नही निकला और यमुना एक्शन प्लान पर करोडो पैसे खर्च हो जाने के बाद भी क्यों यमुना प्रदूषण मुक्त नहीं हुई, यह अपने आप में एक सवाल है।
असल बात यह है कि कालिंदी की हालत सुधारने के लिए प्रयास नहीं किए गए। सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर भी कार्यक्रम चलाए गए पर हालात जस के तस रहे। इसके लिए जरूरत है दृढ संकल्प की जो कि हर भारतीय के अन्दर होना चाहिए, तब हमें करोडो रुपए बहाने की भी जरूरत नहीं पडेगी। सभी धर्म सम्प्रदाय के लोगो को यमुना को अपनी माँ का दर्जा देना होगा, क्योकि यमुना देश के करोडो लोगो की प्यास बुझती है चाहे वह हिन्दू हो या मुस्लिम इसके लिए सभी को प्रयास करना चाहिए। इसके अलावा तब तक शांत नहीं बैठना है- जब तक यमुना अविरल नहीं हो जाती है। और आज जरूरत है यमुनातट पर बसे लोगों को यमुना की दुर्दशा के बारे में बताने और उन्हें जागरूक करने की। तभी हम यमुना की धारा को अविरल, निर्मल तथा आचमन लायक बना सकते है और ब्रज को वही पुरानी कालिंदी लौटा सकते है।
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