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भारत का यज्ञ विज्ञान और पर्यावरण नीति, भाग-4

महर्षि दयानंद ने कहा था-
”यदि अब भी यज्ञों का प्रचार-प्रसार हो जाए तो राष्ट्र और विश्व पुन: समृद्घिशाली व ऐश्वर्यों से पूरित हो जाएगा।” इस बात से लगता है कि भारत सरकार से पहले इसे विश्व ने समझ लिया है। 
देखिये-फ्रांसीसी वैज्ञानिक प्रो. टिलवट ने कहा है-
”जलती हुई खाण्ड के धुएं में पर्यावरण परिशोधन की बड़ी विचित्र शक्ति है। इससे क्षय रोग, बड़ी व छोटी चेचक, हैजा आदि के विषाणु शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं।” डॉ. टीलि का कथन है कि-”किशमिश, मुनक्का, मखाने इत्यादि सूखे मेवों को जलाकर हवन करने पर इससे पैदा होने वाले धुएं से सन्निपात ज्वर के कीटाणु मात्र आधे घंटे में तथा अन्य रोगों के विषाणु लगभग दो घंटे में नष्ट हो जाते हैं।”
मंत्रों का अद्भुत प्रभाव
अमेरिकी वैज्ञानिक डा. हावर्ड स्ट्रिमल ने तो अभी भी चौकाने वाली बात कही है-”मंत्रों के प्रभाव से होम किये गये पदार्थ, औषधियों से भी अधिक प्रभावशाली पाये गये हैं।” उन्होंने अपने परीक्षण के द्वारा पाया कि गायत्री मंत्र के सस्वर उच्चारण से एक लाख तरंगे उत्पन्न होती हैं जो दुर्भावनाओं को पर्याप्त सीमा तक शांत कर देती हैं।
यज्ञ और पर्यावरण
महर्षि दयानंद जी महाराज सत्यार्थ प्रकाश के तीसरे समुल्लास में लिखते हैं-”देखो जहां होम होता है, वहां से दूर देश में स्थित पुरूष की नासिका से सुगंध का ग्रहण होता है, वैसे ही दुर्गंध का। इतने ही से समझ लो कि अग्नि में डाला गया पदार्थ सूक्ष्म होकर फैलकर वायु के साथ दूर देश में जाकर दुर्गंध की निवृत्ति करता है, यह अग्नि का ही सामथ्र्य है कि गृहस्थ की वायु और दुर्गंध युक्त पदार्थों को छिन्न-भिन्न और हल्का करके बाहर निकालकर पवित्र वायु का प्रवेश कर देता है, क्योंकि अग्नि में भेदक शक्ति विद्यमान है।”
भयंकर प्रदूषण
आज पर्यावरण प्रदूषण विश्व के लिए एक बड़ी भारी समस्या बन चुकी है। पर्यावरण प्रदूषण से मानव जाति का अस्तित्व तक संकट में है। स्थिति इतनी भयानक है कि किसी भी वाहन में एक गैलन पेट्रोल केे दहन  से तीन पौण्ड नाइट्रोजन ऑक्साइड गैस निकलती है जो 20 लाख घन फिट हवा को प्रदूषित कर देती है। एक मोटर 970 किलोमीटर की यात्रा में उतना ऑक्सीजन समाप्त करती है जितनी कि एक व्यक्ति को एक वर्ष जीने के लिए पर्याप्त है।
पेट्रोल जलने से निकलने वाला सफेद धुआं हमारे शरीर की कोशिकाओं में जाकर जींस को विकृत कर देता है क्योंकि उसमें शीशे की मात्रा अधिक होती है। जिससे कैंसर की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। नवभारत टाइम्स की दिनांक 30 नवंबर सन 1999 ई. की एक आख्या के अनुसार-”भारत की राजधानी दिल्ली सहित कोलकाता व मुंबई विश्व के सर्वाधिक दस प्रदूषित नगरों में से हैं। इनमें रहने वाले बच्चे भी 40 पैकेट सिगरेट के बराबर का धुआं या प्रदूषित वायु ग्रहण कर लेते हैं।”
वृक्षारोपण अभियान
भारत सरकार ‘वृक्ष लगाओ और हरियाली लाओ’ के लोहमर्षक नारों से जनता का आवाह्न कर रही है। यह ठीक है कि वृक्षारोपण से भी पर्यावरण प्रदूषण की समस्या को नियंत्रित करने में एक बहुत बड़ी सफलता मिल सकती है। साथ ही यज्ञ करके उसमें डाली गयी सामग्री से भी समस्या पर नियंत्रण करना संभव है।
इसके विपरीत राष्ट्रीय स्तर पर बड़े-बड़े यज्ञ हों, सरकारी नीतियों के अंतर्गत ही जल और पेट्रोल पर एक-एक रूपया प्रति लीटर इस बात का कर अर्थात टैक्स के रूप में लिया जाए कि आप जो वायु-प्रदूषण करेंगे उससे छुटकारा पाने के लिए यज्ञ करने हेतु हम आपसे एक रूपया ले रहे हैं। राष्ट्रीय स्तर पर इस पैसे से एक नये विभाग का सृजन हो सकता है। जिसे ‘पर्यावरण नियंत्रक सांस्कृतिक प्रकोष्ठ’ जैसा नाम दिया जा सकता है।
(लेखक की पुस्तक ‘वर्तमान भारत में भयानक राजनीतिक षडय़ंत्र : दोषी कौन?’ से)
पुस्तक प्राप्ति का स्थान-अमर स्वामी प्रकाशन 1058 विवेकानंद नगर गाजियाबाद मो. 9910336715

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