इस विषय में मुझे राष्ट कवि ‘श्री त्रिपाठी कैलाश आजाद’ (सांगली) महाराष्ट निवासी की कुछ पंक्तियां याद आ रही हैं, जो यहां इस विषय में बिल्कुल सत्य साबित होती हैं, यथा-
एक दूसरे के लिए, रहें कृतज्ञ हम।
प्रत्येक परिस्थिति में, रहें स्थितप्रज्ञ हम।।
वेदों का सार ‘इदन्नमम्’ का भाव ले।
सर्वोदय की भावना से, करें यज्ञ हम।।
भारत का भविष्य सचमुच उज्ज्वल है

राजनीतिज्ञों की उल्टी सोच, उल्टी बातें और सांस्कृतिक सामाजिक मूल्यों की उल्टी व्याख्याएं भारत के राजपथ पर बढ़ते उसके रथ को रोक नहीं पा रही हैं। जिस देश का शासक ही राष्ट की प्रगति में बाधक हो, उसकी समस्याओं की गंभीरता को कम करके आंकना सचमुच आत्मप्रवंचना ही होती है।
इसके उपरांत भी एक सुखद तथ्य यह है कि भारत सन् 1947 से ही उन्नति कर रहा है। उसका यह यात्रा अभियान निरंतर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है। ऐसी बाधाओं के मध्य भी आगे बढऩा एक चमत्कार है। इस चमत्कार को देखकर यह सिद्घ होता है कि यहां की जनता उद्यमी है, पुरूषार्थी है और राष्ट के प्रति समर्पित है।
राजनीतिज्ञों की प्रमादता, स्वार्थपरता, पदलोलुपता और अकर्मण्यता के मध्य जनता का उद्यमशील और पुरूषार्थी होना अमेरिकी जांच और सर्वेक्षण एजेंसियों के लिए आश्चर्य का विषय है और इस चमत्कार और आश्चर्य के लिए एक अन्य तत्व कार्य कर रहा है। ये तत्व है-
‘इतिहास के कालचक्र की गति का पूरा हो जाना।’
वर्ष सन् 1947 का समय कई अर्थों में अर्थपूर्ण रहा था। एक विदेशी शक्ति का पतन भी इसी वर्ष से प्रारंभ हुआ। विश्व ने करवट ली और उसके परिणामस्वरूप साम्राज्यवाद व उपनिवेशवाद की धुंध छंटती और हटती चली गयी।
अत: आज वह शक्ति (ब्रिटेन) स्वयं किसी शक्ति (अमेरिका) की पिछलग्गू हो गयी है। पचास साठ वर्ष के अंतराल पर विश्व को अपनी अंगुली पर नचाने वाली ब्रिटिश शक्ति की स्थिति इतनी दयनीय हो जाएगी-यह किसी को भी पता नहीं था। इसी प्रकार अगले पचास-साठ वर्ष के पश्चात अमेरिका की स्थिति क्या होगी? यह भी किसी को पता नहीं है।
ईश्वर ने ईसाइयत को समय दिया, फिर इस्लाम को दिया। दोनों ने इतिहास में अपना रक्तरंजित काला अध्याय लिखा, जो आज भी उनका भाग्य बना हुआ है।
यह इतिहास के कालचक्र की एक परिक्रमा है,- जो अब लगभग पूरी हो चुकी है। अब यह कालचक्र ज्यों-ज्यों पुन: ऊपर की ओर उठ रहा है-त्यों-त्यों भारत जैसे देश जो कभी नीचे पड़े थे, आज पुन: ऊपर उठते जा रहे हैं तथा जो शक्तियां कभी ऊपर थीं, आज वो धीरे-धीरे नीचे आ रही हैं। आज ऐसा लगता है कि बड़ी निर्ममता और निर्दयता के साथ निर्मम और निर्दयी जातियों से, इतिहास उन्हीं की भाषा में हिसाब कर बदला लेने को कमर कस चुका है।
इतिहास बदला भी लेता है
पश्चिमी शक्तियां प्रकृति के इस शाश्वत नियम को समझ नहीं सकेंगी। उन्हें यह भी नहीं पता कि-‘अवश्यमेव भोक्तव्यं कत्र्तमं् कर्म शुभाशुभम्’ अर्थात किये हुए शुभ अथवा अशुभ कर्मों का फल तो भोगना अवश्यम्भावी है।
अत: जो पश्चिमी देशों ने किया था आज उन्हीं का फल उन्हें मिलने लगा है। तीसरा विश्वयुद्घ (ईश्वर करे कि न हो, किंतु यदि हुआ तो) निश्चित रूप से ‘ईसाइयत बनाम इस्लाम के बीच ही होगा।’
इतिहास की टक-टक करती हुई सुई जिस दिशा में गतिशील है-वहां निरपराधों, निरीह, निहत्थे, नादान, आबाल-वृद्घ और महिला जाति पर किये गये अमानवीय अत्याचारों का निर्णय सुनाया जाएगा।
(लेखक की पुस्तक ‘वर्तमान भारत में भयानक राजनीतिक षडय़ंत्र : दोषी कौन?’ से)
पुस्तक प्राप्ति का स्थान-अमर स्वामी प्रकाशन 1058 विवेकानंद नगर गाजियाबाद मो. 9910336715

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