आज से जब हमारा नया सृष्टि संवत आरंभ हो रहा है तो हम देख रहे हैं चारों ओर प्रकृति में नया उल्लास और नवजीवन का संचार हुआ अनुभव हो रहा है। प्रकृति के जर्रे जर्रे में, कण कण में पवित्रता का बोध हो रहा है। पशु पक्षी सभी हर्षित मुद्रा में हैं। इसके अतिरिक्त मनुष्य के मन का मोर भी भीतर से और उल्लसित है। आज का दिन पूर्णतया वैज्ञानिक दृष्टिकोण को प्रकट करने वाला दिन है। जिसके बारे में चिंतन करने पर पता चलता है कि हमारे ऋषि वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखते थे, उनकी दृष्टि में विज्ञान और धर्म में कोई अंतर नहीं था। आजकल जिस सूर्य सिद्धांत को अपनाकर अंग्रेजी सन चल रहा है उसे भी हमारे आर्यभट्ट नामक वैज्ञानिक ऋषि ने ही आविष्कृत किया था। वह पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने यह घोषणा की थी कि पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगाती है।
सृष्टि की आयु 4 अरब 32 करोड वर्ष बताने वाले भी हमारे ऋषि ही थे। यह एक आश्चर्यजनक तथ्य है कि आज के वैज्ञानिक भी सूर्य की आयु लगभग इतनी ही आंक रहे हैं। आर्यभट्ट ने वर्षमान 365 .8586805 दिन का बताया था। वही पहले ऋषी थे जिन्होंने त्रिकोणमिति का आविष्कार किया था। आर्यभट्ट की भांति ही हमारे वराह मिहिर नामक ऋषि वैज्ञानिक ने उज्जैन को अपने जीवन काल में नई पहचान प्रदान की थी। उन्होंने यह महान कार्य अपने अनेक प्रकार के अनुसंधानों के माध्यम से संपन्न किया था। उन्होंने खगोल पिंडों की गहराई से पड़ताल की।
गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत को स्थापित करने वाले भारत के भास्कराचार्य ऐसे ऋषि थे, जिन्होंने यह स्पष्ट किया था कि सारा ब्रह्मांड एक दूसरे के प्रति गुरुत्वाकर्षण के बल पर अवलंबित और गतिशील है। हमने परमपिता परमेश्वर की सविता शक्ति का ध्यान किया और उसे अपनी साधना का केंद्र बना कर ऊर्जा अर्थात तेज की उपासना की।
सविता का अर्थ होता है ईश्वर की प्रेरक शक्ति।सविता का अर्थ होता है सूर्य की तेजोमयी शक्ति।सविता का अर्थ होता है प्रकाश का विस्तार और चित्त में बैठे प्रत्येक विकार को ढूंढ ढूंढ कर बाहर फेंक देने की अनुपम शक्ति।सविता का अर्थ होता है संसार की सृजनात्मक शक्तियों का विकास।सविता का अर्थ होता है रचनात्मकता को नैरंतर्य प्रदान करना।
सविता का अर्थ होता है परमपिता परमेश्वर का वह तेजोमय स्वरूप जिसे गायत्री मंत्र में वरेण्यम कहा गया है। सविता का अर्थ होता है सृष्टा, विधाता, प्रचारक, विस्तारक। सविता का अर्थ होता है पूर्ण परिवर्तन का आवाहन।
सविता का अर्थ होता है पूर्ण क्रांति! क्रांति!! और क्रांति!!!
सविता का अर्थ है परमपिता परमेश्वर का वह अनुपम तेज जिसके सामने संसार की सारी आसुरी प्रवृत्तियां चित हो जाती हैं। परम पिता परमेश्वर का वह अनुपम प्रकाश जिसके सामने अंधकार कहीं टिक नहीं पाता। जैसे परमपिता परमेश्वर के नाम स्मरण करने से चित्त के भीतर बैठे विकार दूर होते हैं वैसे ही परम पिता परमेश्वर के तेज को धारण करने से शत्रु शांत होते हैं। इस प्रकार शत्रुओं को शांत करने वाले संपूर्ण तेज का नाम सविता है। तीज के उपासक भारत वासियों के ऋषि पूर्वज रहे हैं जनेश्वर की सविता शक्ति का की साधना कर संसार को अनेक प्रकार के आविष्कार दिए हैं।
आज वैदिक सृष्टि संवत के अनुसार 1अरब 96 करोड़ 8 लाख 53 हजार 1 सौ 24 वां वर्ष प्रारंभ हो रहा है । भारत में अनेक काल गणनायें प्रचलित हैं जैसे- विक्रम संवत, शक संवत, हिजरी सन, ईसवीं सन, वीरनिर्वाण संवत, बंग संवत आदि। इसके अतिरिक्त संसार में भी अनेकों कैलेंडर प्रचलित हैं ,लेकिन यह सर्वमान्य सत्य है कि वैदिक सृष्टि संवत ही सबसे प्राचीन है । वैदिक सृष्टि सम्वत की प्राचीनता की स्वीकारोक्ति के पश्चात यह भी स्पष्ट हो जाता है कि संसार में सबसे अधिक पुरानी संस्कृति के संवाहक भी हम वैदिक हिंदू लोग ही हैं। जिस पर हमें गर्व होना चाहिए।
भारतीय कालगणना में सर्वाधिक महत्व विक्रम संवत पंचांग को दिया जाता है। विक्रम संवत् का आरंभ 57 ई.पू. में उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के नाम पर हुआ। उन्होंने इसी दिन अपना राज्याभिषेक कराया था ।भारतीय इतिहास में विक्रमादित्य को न्यायप्रिय और लोकप्रिय राजा के रूप में जाना जाता है। विक्रमादित्य के शासन से पहले उज्जैन पर शकों का शासन हुआ करता था। वे लोग अत्यंत क्रूर थे और प्रजा को सदा कष्ट दिया करते थे। विक्रमादित्य ने उज्जैन को शकों के कठोर शासन से मुक्ति दिलाई और अपनी जनता को भय मुक्त कर दिया। अपनी इस महान विजय के कारण उन्हें शकारि के नाम से भी जाना जाता है। अपने इसी महान शासक विक्रमादित्य की स्मृति में आज से 2080 वर्ष पूर्व विक्रम संवत पंचांग का निर्माण किया गया।
विक्रमादित्य की भांति ही हूणो के आक्रमणों से मुक्ति दिलाने का काम शालिवाहन ने किया था । उनका यह कार्य भी आज के दिन ही संपन्न हुआ था। शालिवाहन का एक नाम विक्रमादित्य भी था । यह 78 ईसवी में शासन कर रहे थे । राजा भर्तृहरि इन्हीं के बड़े भाई थे । उनके इस महान कार्य की स्मृति में शक संवत हमारे यहां आज भी प्रचलित है।
भारतवर्ष में ऋतु परिवर्तन के साथ ही हिंदू नववर्ष प्रारंभ होता है। चैत्र माह में शीतऋतु को विदा करते हुए और वसंत ऋतु के सुहावने परिवेश के साथ नववर्ष आता है। प्रकृति में सर्वत्र नव उल्लास छाया होता है । जिसे देखकर यह लगता है कि परिवर्तन अपना खेल खेल रहा है । जिसकी स्पष्ट अनुभूति हमें होती है । प्रकृति अपना नया रूप धारण कर रही होती है । नए ढंग से सज रही होती है । नए सृजन के लिए , नई रचना के लिए । इतना ही नहीं हमारे शरीर की त्वचा भी इन दिनों में अपना रंग बदलती है। पुरानी त्वचा मैल के साथ समाप्त होती है। नई त्वचा उसके स्थान पर आती है। गाय बैल अपने रोम गिराते हैं और उनके नए रोम निकल कर आते देखे जा सकते हैं । जबकि 1 जनवरी को ऐसा कोई परिवर्तन प्रकृति में या हमारे शरीर में दिखाई नहीं देता । स्पष्ट है कि हमारे वैज्ञानिक ऋषियों का चिंतन कहीं अधिक उत्कृष्ट है । ऐसे में आज के दिन हमें अपने ऋषियों के वैज्ञानिक चिंतन पर भी गौरव की अनुभूति होती है।
यह दिवस भारतीय इतिहास में अनेक कारणों से महत्वपूर्ण है। यह भी एक मान्यता है कि आज ही के दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। इसीलिए वैदिक हिन्दू-समाज भारतीय नववर्ष का पहला दिन अत्यंत हर्षोल्लास से मनाते हैं।
आज ही के इस पवित्र दिवस को हम श्री राम एवं युधिष्ठिर के राज्याभिषेक दिवस के रूप में भी मनाते हैं इसलिए दोनों महापुरुषों को भी आज नमन करने का दिन है। महर्षि दयानंद जी महाराज ने वैदिक संस्कृति से दूर कहीं अज्ञान अंधकार में भटकते भारत को फिर से राह दिखाने के लिए आर्य समाज जैसी पवित्र संस्था की स्थापना भी आज के दिन ही 1875 में की थी । जिसने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को बहुत ऊंचाई प्रदान की और इसमें कोई दो मत नहीं कि भारत को आजादी दिलाने में महर्षि दयानंद के आर्य समाज ने सबसे अधिक भाग लिया । इसलिए आर्य समाज की स्थापना दिवस के इस पवित्र अवसर पर महर्षि को भी विनम्रता से स्मरण करना आवश्यक है । इसके अतिरिक्त संत झूलेलाल की जयंती और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे संगठन के संस्थापक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार जी का जन्मदिन भी आज ही है । अपने इन सांस्कृतिक महापुरुषों को भी हम पवित्र हृदय से सादर सादर स्मरण करते हैं।
डॉ राकेश कुमार आर्य
( लेखक भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता और सुप्रसिद्ध इतिहासकार हैं। )
मुख्य संपादक, उगता भारत