ताज टिका नहीं शीश पै, इसकी नींव जुबान
बिखरे मोती-भाग 190
गतांक से आगे….
कहने का अभिप्राय है कि जो व्यक्ति पैसे के लिए दूसरों का हक मारते हैं, उनका टेंटुआ दबाते हैं, उन्हें पाप-पुण्य अथवा धर्म-कर्म की चिंता नहीं, उन्हें तो पैसा चाहिए, पैसा। चाहे वह ईमानदारी के बजाए बेशक बेइमानी से आये, उन्हें इस बात की कोई चिंता नहीं। ऐसे लोग अपनी आत्मा की आवाज की भी अवहेलना करते हैं। मानता हूं कि ऐसे लोग स्वयं साधन संपन्न होते हैं और अपनी औलाद को भी धनवान बना जाते हैं, किंतु भ्रष्ट तरीके से कमाये गये धन के कारण वे अपनी आत्मा का हनन करते हैं। वे इंसान की अदालत से बच सकते हैं किंतु भगवान की अदालत से वे कैसे बचेंगे? वहां तो उन्हें अपने कुकर्मों के लिए जवाब देह होना पड़ेगा। न जाने कितनी लाख योनियों में से गुजरना पड़ेगा? धन कमाना बुरा नहीं है, खूब धन कमाओ, किंतु साधन की शुद्घि का ध्यान हमेशा रखो। वेद कहता है-‘शतहस्त समाहर:’ अथर्ववेद 3/24/5 अर्थात सैकड़ों हाथों से कमा। ‘सहस्रहस्त संकिर:’ अ. 3/24/5 अर्थात हजारों हाथों से बिखेर दे, दान कर। ऋषियों ने यहां तक कहा-”व्यक्तिगत जीवन तुम्हारा वैभवशाली हो।”
यक्ष ने युधिष्ठिर से पूछा था-‘संसार में सबसे बड़ा धनवान कौन है?’ युधिष्ठिर ने उत्तर दिया-‘महाराज! जिस मनुष्य की झोली पुण्यों से भरी है, वह व्यक्ति संसार का सबसे बड़ा धनवान व्यक्ति है क्योंकि उसने अपना परलोक सुधार लिया।’ इसलिए संसार में आये हो तो पुण्य से झोली भरकर जाओ, पैसे के लिए पाप मत कमाओ। अमृत के घाट (मनुष्य योनि) से खाली हाथ मत जाओ।
श्रेष्ठता, सतर्कता और अध्यवसाय के संदर्भ में :-
जेघड़, जितनी ऊंची हो,
उतनी होय निगाह।
ध्यान हटै जेघड़, गिरै
मत हो लापरवाह ।। 1121 ।।
व्याख्या :-
जेघड़ से अभिप्राय है पांच, सात मटके अथवा मटकियों को सिर पर रखना। प्राय: आपने देखा होगा पनिहारी गांव के कुएं से जेघड़ में जल भरकर चलती है, नर्तक अथवा नर्तकी जेघड़ सिर पर रखकर मंत्रमुग्ध करने वाला नृत्य करते हैं।
यह कार्य इतना सरल नहीं है, जितना देखने में लगता है। जिसके सिर पर जेघड़ होती है, उसका ध्यान प्रतिपल अपनी जेघड़ के अंतिम सिरे तक होता है। उस व्यक्ति की जरा सी चूक जेघड़ को धराशायी कर देती है और वह व्यक्ति आत्मग्लानि से भर उठता है। ठीक इसी प्रकार व्यक्ति, परिवार, समाज अथवा राष्ट्र अर्श से फर्श पर आते देखे गये हैं। इसलिए विवेकशील व्यक्ति को चाहिए कि वह जितनी ऊंचाई पर हो उसकी सोच भी उतनी ही ऊंची हो, उसकी पैनी नजर मर्यादा (अनुशासन) पर टिकी हो अन्यथा जैसे ही सावधानी हटेगी दुर्घटना घटेगी और यह दुनिया ताली मारकर हंसेगी। ”फिर पछताये होत क्या जब चिडिय़ा चुग गयी खेत।”
याद रखो, श्रेष्ठता=बड़प्पन पाने के लिए जितना संघर्ष करना पड़ता है, श्रेष्ठता को अक्षुण्ण रखने के लिए उससे भी कई गुणा अधिक अध्यवसाय करना पड़ता है।
श्रेष्ठता, का ताज सिर पर नहीं वाणी पर टिका होता है :-
ताज टिका नहीं शीश पै,
इसकी नींव जुबान।
फूंक फूंक कर पांव धर,
तब होवै गुणगान ।। 1122 ।।
व्याख्या :-
किसी विचारक ने ठीक ही कहा है-दूसरे के सिर पर सम्मान का मुकुट देखकर सभी लालायित होते हैं। मुकुट में लगे मणि, मोती और हीरे तो मनमोहक होते हैं, किंतु इसकी आंतरिक सतह में जिम्मेदारियों के नुकीले कांटे भी होते हैं, जो मुकुट को धारण करने वाले व्यक्ति को चैन से बैठने नहीं देते हैं। इसके अतिरिक्त प्राय: लोग यह समझते हैं कि मुकुट व्यक्ति के सिर पर टिका है, किंतु वास्तविकता यह है कि मुकुट व्यक्ति की वाणी की विलक्षणता पर टिका है।
क्रमश: