इस्कॉन का सच* भाग 5
Dr DK Garg
भाग -5
ये सीरीज छह भागों मे है , पहले चार भाग में इस्कॉन के विषय में ,इनकी कार्य प्रणाली के विषय में बताया है ताकि आपको पूरी जानकारी हो सके बाकी २ भाग में विश्लेषण किया है। कृपया अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दे और अन्य ग्रुप में शेयर करे।
इस्कॉन का विश्लेषण:
इस्कॉन का एक योगदान विश्व स्तर पर माना जायेगा की इन्होने ईसाई और अन्य धर्म के लोगो में ख़ास तौर पर विदेश में सेंध लगाकर कृष्ण और भारतीय संस्कृति का प्रचार किया ,करोडो लोगो को शाकाहारी बनाया और ये प्रयास आज भी जारी है ,लेकिन इसका दूरगामी खतरा हिन्दू समाज को है जैसे आज सिख ,जैन ,बौद्ध अलग हो गए ,ऐसी तरह भविष्य में इस्कॉन संस्था अपने को हिन्दू समाज से अलग होने का दावा कर सकती है। इनकी कार्य प्रणाली से ये स्पष्ट है की ये यज्ञ , वेद , उपनिषद ,रामायण ,मनुस्मृति आदि धर्म ग्रंथो और पूजा पद्धति
को नहीं मानते ,इनकी अपनी अपनी ढपली और अपना अपना राग चल रहा है। संस्थापक प्रभुपाद की मृत्यु के बाद इस्कॉन में तेजी से परिवर्तन आये और पाखंड ,दिखावा दिन दूना रात चौगना बढ़ता गया।
अधिकाँश लोग ये सोचते हैं कि चूंकि कृष्ण हमारे हैं, इसलिए उनके नाम पर चलने वाली सभी संस्थाएं भी हमारी अर्थात स्वदेशी ही होंगी, लेकिन ऐसा नहीं है |इस्कॉन ट्रस्ट चालयी जा रही है “प्रभु पाद जी” के नाम पर जिनका असली नाम स्वामी भक्तिवेदांत जी था, जो शायद ६० के दशक में अमरीका गए थे |
अब धार्मिक ज्ञान से कोरे अंग्रेज़ों को हमारा भक्ति भाव पसंद आया और वहां भी खूब लोगों ने “हरे रामा, हरे कृष्णा” करते हुए “प्रभु पाद जी” के मार्ग दर्शन में भक्ति मार्ग को चुना |ये लहर इतनी बड़ी थी, कि आज भी इसे “हरे कृष्णा आंदोलन” अथवा अंग्रेजी में बोले तो “Hare Krishna Movement” के नाम से याद किया जाता है |
ये बात है १९६६ की और जैसे ही कोई लहर चलती है, तो सबसे पहले उसका लाभ उठाने वाले व्यापारी उस मौके को लपक लेते हैं |
जहाँ अधिकाँश विदेशी अनुयायी वे भटके हुए युवा थे जो एक दिशाहीन जीवन के कारण नशे की गर्त में उलझे हुए थे, वहीँ उन के नेता बने कुछ ऐसे लोग जो भीड़ से फायदा उठाना जानते थे |ऐसे ही इस मौके को भी उन्होंने फ़ौरन भुनाया, स्वामीजी तो सीधे सादे वानप्रस्थी थे, उन्हें कहाँ समझ थी ये सब करने की? उन्हें तो केवल समाज के उत्थान के लिए प्रवचन से मतलब होता था, और भीड़ दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी |लेकिन जो चढ़ावा और दान के रूप में करोडो रुपये एकत्र हो रहे थे, उन्हें संभालने के लिए एक संस्था का निर्माण किया गया और नाम रखा गया : International Society of Krishna Conciousness
ये एक अमरीका में रचित, स्थापित, स्थित, पंजीकृत कंपनी है जिसके स्वामी अमरीकन हैं, स्वामी भक्तिवेदांत जी नहीं |
इस प्रकार, पहले चेले और फिर ख़ास चेले बनने लगे, उनके मैनेजर अप्पोइंट किये गए, उनके शिष्यों को उनके प्रवचनों को इतने अच्छे से व्यवस्थित किया गया कि केवल उनके रहने के लिए १२७० एकड़ में एक “वृन्दावन” बसाया गया |
New Vrindaban, West वर्जिनिया बताते हैं वहां पर एक सोने का महल और अन्य लोगों के लिए रहने के लिए भव्य भवन बने हुए हैं |
और इतना सबकुछ वहां पर ७० के दशक में हो चुका था |तब तक भारत में इस्कॉन को कोई जानता भी नहीं था !
उसके बाद १९७७ में स्वामी जी के देहवासन के बाद इस्कॉन ने भारत में अपनी जड़ें फैलानी शुरू कीं | केवल वृन्दावन ही नहीं, अपितु भारत भर में और विदेशों में भी जगह जगह इनकी शाखाएं बननी लगीं | इतने व्यापक प्रचार/प्रसार किया कि आज ये पूरे विश्व में किसी नामी कॉर्पोरेट कंपनी से अधिक बड़ी संस्था बन चुकी है |
इसपर अत्यधिक ध्यान देने वाली बात, इस्कॉन बांटती फिरती है गीता, लेकिन बातें करती है वहीँ सातवें आसमान वाली | यदि आप में से कोई भी उनकी मान्यतों को ध्यान से सुनें, तो झट से समझ सकते हैं कि वही चर्च वाली मानसिकता है, केवल क्राइस्ट के स्थान पर प्रयोग करते हैं कृष्ण, और फिर वही फ़रिश्ते, शैतान और सातवां आसमान |इसलिए ये विदेशी संस्था भारत में केवल अपने व्यापार के लिए स्थापित है, जगह जगह पर प्रचार/प्रसार का उद्देश्य केवल पैसा बटोरना है, और कुछ नहीं |
यदि आप में से कोई इतना सामर्थ्यवान हो तो आसानी से पता लगा सकते हैं कि इस्कॉन मंदिरों में एकत्र होने वाला सारा पैसे अमरीका जाते हैं, भारत में नहीं |
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