- मनुष्यों को चाहिए कि जितना अपना जीवन शरीर, प्राण, अन्तःकरण, दशों इन्द्रियाँ और सब से उत्तम सामग्री हो उसको यज्ञ के लिये समर्पित करें जिससे पापरहित कृत्यकृत्य होके परमात्मा को प्राप्त (योग से) होकर इस जन्म और द्वितीय जन्म में सुख को प्राप्त हों।
-महर्षि दयानन्द (यजु० 22/33) - जैसे प्रत्येक ब्रह्माण्ड में सूर्य प्रकाशमान है, वैसे सर्वजगत में परमात्मा प्रकाशमान है। जो योगाभ्यास से उस अन्तर्यामी परमेश्वर को अपने आत्मा से युक्त करते हैं, वे सब ओर से प्रकाश को प्राप्त होते हैं।
-महर्षि दयानन्द (यजु० 23/5) - जैसे सब जीवों के प्रति ईश्वर उपदेश करता है कि मैं कार्य्य कारणात्मक जगत में व्याप्त हूँ। मेरे विना एक परमाणु भी अव्याप्त नहीं है। सो मैं जहां जगत नही है वहां भी अनन्त स्वरूप से परिपूर्ण हूँ। जो इस अतिविस्तारयुक्त जगत को आप लोग देखते हैं सो यह मेरे आगे अणुमात्र भी नहीं है इस बात को कैसे ही विद्वान सब को जनावें।
-महर्षि दयानन्द (यजु० 23/50) - सब मनुष्यों को परमेश्वर के विज्ञान और विद्वानों के संग से बहुत बुद्धियों को प्राप्त होकर सब ओर से धर्म का आचरण कर नित्य सब की रक्षा करने वाले होना चाहिए।
-महर्षि दयानन्द (यजु० 25/14) - सब विद्वान लोग सब मनुष्यों के प्रति ऐसा उपदेश करें कि जिस सर्वशक्तिमान निराकार सर्वत्र व्यापक परमेश्वर की उपासना (योग) हम लोग करें तथा उसी को सुख और ऐश्वर्य को बढ़ाने वाला जानें, उसी की उपासना तुम भी करो और उसी को सब की उन्नति करने वाला जानो।
-महर्षि दयानन्द (यजु० 25/18) - जो मनुष्य पर्वतों के निकट और नदियों के सङ्गम में योगाभ्यास से ईश्वर की और विचार से विद्या की उपासना करें वह उत्तम बुद्धि वा कर्म से युक्त विचारशील बुद्धिमान होता है।
-महर्षि दयानन्द (यजु० 26/15) - जैसे विद्वान् लोग ब्रह्म को स्वीकार करके आनन्द मङ्गल को प्राप्त होते और दोषों को निर्मूल नष्ट कर देते हैं वैसे जिज्ञासु लोग ब्रह्मवेत्ता विद्वानों को प्राप्त होके आनन्द मङ्गल का आचरण करते हुए बुरे स्वभावों के मूल नष्ट करें और आलस्य को छोड़ के विद्या की उन्नति किया करें।
-महर्षि दयानन्द (यजु० 27/3)
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