धरतीपुत्र केंचुआ और हमारी खेती*
आर्य सागर खारी🖋️
केंचुआ सच्चे अर्थों में धरतीपुत्र है,प्राकृतिक खेती का केंचुआ मुख्य आधार है ।जंगल के पेड़ को यूरिया व डीएपी कौन डालता है? किटनाशक का छिड़काव कौन करता है ?पानी कौन देता है ?लेकिन समय आने पर वह पेड़ फलों से लद जाते हैं। आप जंगल के किसी पेड़ के पत्ते को लैब में टेस्ट कराओ एक भी तत्व की कमी नहीं मिलेगी जंगल में जो नियम काम करता है वही हमारे खेत में करना चाहिए ,इसी का नाम प्राकृतिक कृषि है। केंचुआ रात के अंधेरे में क्योंकि दिन में उसे पक्षियों द्वारा उठा ले जाने का डर रहता है अपनी माता धरती के लिए उसकी उर्वरता खुशहाली के लिए रात्रि भर अनथक परिश्रम करता है… जमीन को ऑक्सीजन देता है खाद तैयार करता है । केचुआ के द्वारा बनाए गए असंख्य छिद्रों से वर्षा का जल भूमि में नीचे जाता है उससे भूमिगत जलस्तर बढ़ता है भूमि को नमी मिलती है जो भीषण गर्मी में भी पौधों को सूखने नहीं देती। बात यदि भारतीय केचुआ की करें उसमें विलक्षण विशेषता है। वर्मी कंपोस्टिंग के लिए विदेशों से आयात किये केचुआ केवल गोबर को खाते हैं लेकिन भारतीय केंचुआ मिट्टी और गोबर दोनों को खाता है विदेशी केंचुआ 16 डिग्री से नीचे और 28 डिग्री से ऊपर के तापमान पर जीवित नही रहता जबकि भारतीय केचुआ अधिक गर्मी अधिक सर्दी दोनों को ही सहन कर लेता है। इतना ही नहीं यह एक छिद्र से जमीन में नीचे जाता है दूसरे छिद्र से ऊपर आता है हर बार एक नया छेद बनाता है। 8 से 10 फुट तक छिद्र बनाते हुए जमीन में जाता है और अपने शरीर से वर्मी वाश से छेद को लिपते हुए जाता है जिससे छेद जल्दी बंद नहीं होता । भारतीय केचुआ धरती में जो खनिज है उनको खा कर पेट से निकालकर पौधों की जड़ को देता है। जिनमें अनेक प्रकार के पोषक तत्व होते हैं जो जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाते हैं धरती माता का कायाकल्प करते हुए इस प्रकार यह किसान का भी कितना बड़ा उपकार करता है। लेकिन रासायनिक खेती ‘अधिक अन्न उपजायो ‘की प्रतिस्पर्धा में यह परोपकारी जीव अकाल मौत मरता है यूं तो इंसान भी धरती का ही पुत्र है वह भी धरती को माता मानता है बड़े-बड़े नारे लगाता है लेकिन धरती का इंसान रूपी कुपुत्र कभी-कभी जानबूझकर तो अधिकार अज्ञानतावश धरती के सैकड़ों लाखों सपूतों को एक झटके में मौत की नींद सुला देता है। एक उदाहरण से समझे एक केंचुए को पकड़ो उसके ऊपर यूरिया, डीएपी डालो देखो वह जिएगा मरेगा निश्चित तौर पर वह तुरंत मर जायेगा इससे बड़ा प्रमाण और क्या होगा परंतु उसी केंचुए के ऊपर यदि गाय का गोबर डाल तो तो वह स्वस्थ होगा अपना परिवार बढ़ाएगा क्योंकि उसको उसका भोजन मिल गया है। 1 एकड़ खेत में लाखों की संख्या में केंचुआ बिना पैसे के मजदूर की तरह दिन-रात काम करता है वह सारी जमीन को मुलायम बना देता है नीचे की जमीन को उलट देता है खनिजों को नीचे से ऊपर कर देता है और बारिश का सारा पानी इन छिद्रों के द्वारा धरती मां के पेट में चला जाता है। सरकारे ‘रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम’ के लिए करोडो खर्च करती है जो ठीक से काम भी नहीं करते लेकिन केचुआ यह काम निशुल्क कर देता है लेकिन आज जमीन को यूरिया डीएपी ने पत्थर बना दिया है केंचुआ जैसे मित्र जीव बचे नहीं है। धरती में छिद्र नही है जब बारिश आती है तो पानी तेजी से बेहकर नदी नालों में जाकर बाढ़ आने का कारण बनता है। धरती को हरी-भरी, शस्य श्यामला केवल केंचुए जैसे जीव ही बनाते हैं सच्चे अर्थों में केंचुआ ही धरतीपुत्र है इंसान जब था तब था धरती पुत्र आज उसके क्रियाकलापों के कारण उसे धरती को माता कहने का भी अधिकार नहीं है क्योंकि धरती के पुत्र इंसान ने धरती के केंचुआ जैसे लाखों परोपकारी जीवो को जहरीली रासायनिक खेती के माध्यम से धरती के गर्भ में ही दफन कर दिया है। अब भी समय है हमें जैविक खेती व प्राकृतिक खेती की ओर लौटना होगा यदि दुनिया को अकाल महामारी कुपोषण वैश्विक प्रदूषण कैंसर जैसी बीमारियों से बचाना है।
आर्य सागर खारी✍✍✍