इतिहास, पशुहिंसा और अश्लीलता
गतांक से आगे..
जिस प्रकार वेदों में इतिहास और पशुयज्ञ नहीं हैं, उसी तरह वेदों में अश्लीलता भी नहीं है। कुछ लोग कहा करते हैं कि वेदों में अश्लील बातों का वर्णन है, पर जिन स्थलों को लेकर वे ऐसा कहते हैं वे स्थल काव्य के उत्कृष्ट रसोद्रफ के द्वारा बहुत ही उत्तम शिक्षा देते हैं। इसलिए शिक्षासम्बन्धी वे वर्णन अश्लील नहीं कहला सकते । क्योंकि हम संसार में देखते हैं कि एक ही वस्तु एक स्थान में अश्लील है और वही दूसरे स्थान में अश्लील नहीं है। एक आदमी डॉक्टर के सामने नङ्गा खड़ा है, पर उस पर अश्लीलता का कलङ्क नहीं लग रहा, किन्तु वही आदमी यदि किसी अन्य मनुष्य के सामने नग्न खड़ा है तो उस पर अश्लीलता का कलंक लग रहा है। इसी प्रकार डॉक्टरी की पुस्तकें जिनमें चित्र देकर गुप्तेन्द्रियों के वर्णन होते हैं, वे अश्लील नहीं समझी जातीं, किन्तु वही चित्र जब कोकशास्त्र के वर्णनों के साथ सर्वसाधारण में प्रचलित किये जाते हैं, तो वे अश्लील कहलाते हैं। जो हाल डॉक्टरी की पुस्तकों और कोकशास्त्र का है, ठीक वही हाल वेद और अन्य पुस्तकों का है। वेद शब्द का अर्थ ज्ञान है। ज्ञान देनेवाली समस्त पुस्तकों का वही मतलब है, जो डॉक्टरी और स्कूल से सम्बन्ध रखनेवाली पुस्तकों का है। इसलिए गुप्ताङ्गों का वर्णन करने से डॉक्टरी की पुस्तकें यदि अश्लील नहीं कहलातीं, तो वेद भी अश्लील नहीं कहला सकते । वेद में जो बातें लिखी गई हैं, वे शिक्षा के ही लिए लिखी गई हैं। इसी तरह डॉक्टरी में भी जो बातें लिखी गई हैं, वे भी शिक्षा के ही लिए लिखी गई हैं। अर्थात् जो पुस्तकों को शिक्षा देने के लिए लिखी जाती हैं, उनके वर्णन अश्लील नहीं समझे जाते ।
दूसरी बात यह है कि वेद काव्य में कहे गये हैं। कविता नव रसवाली होती है और रसों का उदक ही उसकी खूबी है। रसोद्र कता काव्य के ही अन्तर्गत समझी जाती है । अतः ऐसे स्थल जहाँ कुछ अश्लील उदाहरण दीखते हैं, वे केवल रसोद्र के के ही प्रतिपादक हैं, अश्लीलता के नहीं। इसलिए वेदों को शिक्षामय काव्य की पुस्तक समझकर अब उनके उन स्थानों की पड़ताल करना चाहिये, जिनको लोग अश्लील बतलाते हैं। यहाँ हम अश्लीलता के दोचार नमूने दिखलाकर बतलाना चाहते हैं कि किस प्रकार वेद सब कुछ कहकर भी उसका समाधान कर देते हैं।
अश्लीलता से सम्बन्ध रखनेवाली हम यहाँ कुछ वे बातें लिखते हैं, जिनको प्रायः लोग पेश किया करते हैं। लोग कहते हैं कि ऋग्वेद के यमयमीसूक्त में भाईबहन के कुत्सित प्रेम का वर्णन है। बहन अपने सगे भाई से विवाह की याचना करती है। इसी तरह वेद में अपनी कन्या के साथ पिता के गर्भधारण करने का अश्लीलतापूर्ण वर्णन भी मिलता है और वेदों में गुप्ताङ्गों का बड़ा ही बीभत्स वर्णन किया गया है। दो स्त्रियों के साथ सोने का भद्दा, असभ्य और मधील वर्णन भी मौजूद है और टोटकाटंबर और जादूटोना के साथ भी अश्लीलता का वर्णन किया गया है। इसलिए वेदों में अश्लीलता का वर्णन है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता ।
हम अभी गत पृप में लिख आये हैं कि अश्लीलता का आरोप हर स्थान में, हर कृत्य में और हर पुस्तक में नहीं किया जा सकता । संसार में जहाँ सभ्यता और लीलयुक्त घटनाएँ हैं, वहाँ सभ्य घोर अश्लील घटनाएँ भी मौजूद हैं, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। क्या कोई कह सकता है कि संसार में आज तक कभी किसी बहन ने भाई से कुत्सित प्रेम नहीं किया? क्या कोई कह सकता है कि संसार में ग्राज तक कभी किसी पिता ने अपनी कन्या के साथ मुंह काला नहीं किया ? और क्या कोई कह सकता है कि आज तक संसार में गुप्ताङ्गों और दो दो स्त्रियों का भद्दा हृदय नहीं देखा गया ? जब ये सब बातें संसार में अपवादरूप से होती हैं, तो क्या परमेश्वर के लिए यह उचित नहीं या कि वह वेद जैसे शिक्षामय काव्य में इनका वर्णन करके उपदेश कर दे कि मनुष्य सदैव इन पापाचरणों, असभ्य व्यवहारों और अश्लील कृत्यों से बचे रहें? हमारी समझ में तो यह बात अत्यन्त आवश्यक थी कि परमात्मा इन बातों का वर्णन करके मनुष्यों को इनसे बचने की हिदायत कर दे।
जब एक साधारण उपदेशक अपने व्याख्यान में बुराइयों का चित्र खींचकर उनसे बचने का प्रादेश करता है; तब भला, परमेश्वर क्यों न करता ? परमेश्वर ने लोगों को सभ्यतापूर्ण मार्ग में चलाने के अभिप्राय से उक्त समस्त बातों का वर्णन किया है और उन सब से बचने के लिए सख्त ताकीद कर दी है।
क्रमशः
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।