देश की राजधानी दिल्ली और राज्यों की स्थिति
भारत देश का संवैधानिक नाम भारत संघ (इंडियन यूनियन) है। इसका कारण यह बताया जाता है कि भारत विभिन्न राज्यों का एक संघ है। यद्यपि इन राज्यों की संवैधानिक स्थिति कभी के सोवियत संघ के राज्यों की स्थिति के सर्वथा भिन्न है। इसके अतिरिक्त ये राज्य किसी भी स्थिति परिस्थिति में ‘राष्ट्र राज्य’ नही हो सकते। इनकी स्थिति कुछ अलग और अनोखी है। भारत की क्षेत्रीय अखण्डता का पूरा ध्यान रखते हुए भारत के संविधान निर्माताओं ने राज्यों को अधिकार प्रदान किया था। यह एक सुखद तथ्य है कि सभी राज्य आज तक उसी भावना के अनुरूप कार्य कर रहे हैं, जैसी उनसे अपेक्षा की गयी थी।
31 दिसंबर 1947 को भारत की संविधान सभा में उस समय के कुल 12 राज्यों से 229 सदस्य सम्मिलित थे। जबकि कुल 29 देशी रियासतों से 70 सदस्य सम्मिलित थे। उस समय के राज्य मद्रास से 49, मुंबई से 21, पश्चिम बंगाल से 19, संयुक्त प्रांत (उत्तर प्रदेश का तत्कालीन नाम, अवध और आगरा को संयुक्त कर यह प्रदेश बनाया गया था, इसलिए इसे संयुक्त प्रांत कहते थे) से 55, पूर्वी पंजाब (पश्चिमी पंजाब पाकिस्तान में चला गया था, इसलिए पश्चिमी बंगाल की तर्ज पर इसका नाम पूर्वी पंजाब रखा गया, यद्यपि यह नामकरण तर्क संगत नही कहे जा सकते। आज जब पूर्वी बंगाल है ही नही तो पश्चिमी बंगाल ही क्यों बोला जाए,) से 12, बिहार से 36,मध्य प्रांत और बरार से 17, असम से 8, उड़ीसा से 9, दिल्ली अजमेर मरवाड़ा व कोडग़ू से एक-एक।
उस समय की 29 देशी रियासतों में से अलवर, भोपाल, बीकानेर, कोचीन, इंदौर, कोल्हापुर, कोटा, मयूरभंज, सिक्किम और कूच बिहार समूह, त्रिपुरा मणिपुर और खासी राज्य समूह, संयुक्त प्रांत राज्य समूह से एक-एक , जोधपुर, पटियाला, रीवा, उदयपुर, गुजरात राज्य समूह दक्षिण और मद्रास राज्य समूह से दो-दो, बड़ौदा, जयपुर पूर्वी राजपूताना राज्य समूह, मध्य भारत राज्य समूह (बुंदेलखण्ड और मालवा को मिलाकर)पंजाब राज्य समूह, पूर्वी राज्य समूह से तीन-तीन, ग्वालियर, पश्चिमी भारत राज्य समूह, पूर्वी भारत राज्य समूह प्रथम, अवशिष्ट राज्य समूह से 4-4, त्रावणकोर से 6, तथा मसूर रियासत से 7, सदस्य संविधान सभा में थे।
मूल संविधान 1949 में स्वतंत्रता के उपरांत राज्यों को क,ख,ग,घ नामक चार भागों में बांटकर रखा गया है। भाग ‘क’ में असम, बिहार,मुंबई, मध्य प्रदेश, मद्रास, उड़ीसा, पंजाब, संयुक्त प्रांत और पश्चिमी बंगाल को रखा गया। भाग ‘ख’ में हैदराबाद, जम्मू-कश्मीर, मध्य भारत, मैसूर, पटियाला, और पूर्वी पंजाब को रखा गया। इसी प्रकार भाग ‘ग’ में अजमेर, भोपाल, बिलासपुर, कूच बिहार कोडग़ू को रखा गया। जबकि भाग ‘घ’ में अंडमान निकाबार द्वीप समूह और अर्जित राज्य क्षेत्र (यदि कोई हो) को रखा गया।
संविधान के सातवें संशोधन के अनुसार 1956 के पश्चात सन 2000 और तत्पश्चात 2014 के अंत तक अब राज्यों की स्थिति इस प्रकार है-आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, गुजरात, केरल, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, कर्नाटक, उड़ीसा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश,पश्चिमी बंगाल, जम्मू कश्मीर, नागालैंड, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा, मेघालय, सिक्किम, मिजारेम, अरूणाचल प्रदेश, गोवा,छत्तीसगढ़, उत्तरांचल, झारखण्ड, तेलंगाना। इसके अतिरिक्त संघ राज्य क्षेत्र में अभी भी सात राज्य है। जिनमें दिल्ली, अंडमान निकोबार द्वीपसमूह, लक्षद्वीप, दादरा और नगर हवेली, दमनद्वीव, पांडिचेरी, चंडीगढ़।
इसके अतिरिक्त एक कॉलम अभी भी ‘अन्य राज्य क्षेत्र जो अर्जित किये जाएं’ के नाम से स्थापित है। इस कालम का रहना या रखा जाना हमारे संविधान निर्माताओं की दूरदर्शिता को स्पष्ट करता है। इस कालम या खाने का अभिप्राय है कि भारत अपने किसी पड़ोसी देश से युद्घ के समय कोई भूमि अर्जित कर ले या कोई भूक्षेत्र स्वेच्छा से भारत में मिलना चाहे (जैसा कि 1956 में गोवा ने भारत क साथ अपना विलय किया था) या कोई विदेशी राज्य भारत के साथ मिलना चाहे, जैसा कि (1975 में) सिक्किम ने अपना विलय भारत के साथ करके किया। ऐसी स्थिति में कोई भी संकट खड़ा हो सकता है कि जब भारत के साथ विलय की इच्छा रखने वाले राज्य तक भारत के संविधान का क्षेत्राधिकार ही नही है तो उसे भारत के साथ विलय करने या भारत का अंग मानने को संविधान क्षेत्राधिकार ही नही देता। उसे तब भारत में कैसे मिलाया जा सकता है? प्रचलित संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार जैसे ही कोई विदेशी राज्य भारत के साथ विलय की इच्छा जाहिर करे, अथवा युद्घ काल में अथवा अन्य किसी भी प्रकार से कोई भू क्षेत्र अर्जित कर लिया जाए, तो ऐेसे विलय की इच्छा के साथ अथवा युद्घ काल में ऐसे अर्जन के पूर्ण होते ही तुरंत वहां भारतीय संविधान का क्षेत्राधिकार स्थापित हो जाता है। फलस्वरूप ऐसे किसी क्षेत्र को तत्समय भारतीय क्षेत्र कहने में कोई संवैधानिक बाधा नही आती।
मुंबई पुनर्गठन अधिनियम (1960 का 11) द्वारा मुंबई के स्थान पर मुंबई प्रांत का नाम महाराष्ट्र प्रतिस्थापित किया गया। इसी प्रकार मद्रास राज्य नाम परिवर्तन अधिनियम 1968 द्वारा मद्रास का नाम परिवर्तित होकर तमिलनाडु हो गया। जबकि मैसूर राज्य के स्थान पर कर्नाटक कर दिया गया था। नागालैंड अधिनियम 1962 से नागालैंड, पंजाब, पुनर्गठन अधिनियम 1966 से हरियाणा प्रदेश अस्तित्व में आया। हिमाचल प्रदेश अधिनियम 1970 द्वारा हिमाचल प्रदेश का गठन किया गया। इसी प्रकार मणिपुर, त्रिपुरा, मेघालय इसमें पूर्वी क्षेत्र पुनर्गठन अधिनियम 1970 द्वारा मणिपुर त्रिपुरा मेघालय राज्य अस्तित्व में आये। संविधान के 36वं संशोधन अधिनियम 1975 के द्वारा सिक्किम का भारत में विलय किया गया। लक्षद्वीप मिनीकाय, अमनद्वीप समूह का नाम लक्कादीप मिनीकाय और अमीनदीवी द्वीप समूह नाम परिवर्तन अधिनियम 1973द्वारा लक्षद्वीप किया गया। संविधान के 10वं संशोधन अधिनियम 1961 के अंतर्गत उड़ीसा बारहवें संशोधन अधिनियम 1962 द्वारा पंजाब व 14वें संशोधन अधिनियम 1963 द्वारा उत्तर प्रदेश का नाम और 12वें संविधान संशोधन अधिनियम 1961 द्वारा पश्चिम बंगाल (20-12-1961) नाम अंत:स्थापित किय गये। मिजोरम अधिनिमय 1986 द्वारा दिनांक 14-08-1986 से मिजोरम को राज्य का दर्जा दिया गया। इसी प्रकार अरूणाचंल प्रदेश अधिनियम 1986 द्वारा अरूणांचल प्रदेश को राज्य क्षेत्र की परिस्थिति से उठाकर राज्य का दर्जा दिया गया। जबकि गोवा, दमनद्वीप पुनर्गठन अधिनियम 1987 से गोवा को राज्य बनाया गया।
छत्तीसगढ़, उत्तरांचल झारखंड और तेलंगाना के लिये भी लोगों की लंबे समय से मांग चली आ रही थी। इसलिए इनकी मंशा को उचित मानकर लोगों की भावनाओं के अनुसार चार नये राज्यों का गठन करके अब राज्यों की कुल संख्या 29 हो गयी है।
मध्य प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम 2000 (धारा-5) दिनांक 01-11-2000 से छत्तीसगढ़ राज्य का, उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम 2000 धारा 5 (9-11-2000 स प्रभावी) से उत्तराखण्ड का, बिहार, पुनर्गठन अधिनियम 2000 धारा-5 (15-11-2000 से प्रभावी) से झारखण्ड का निर्माण किया गया। इसी प्रकार के अधिनियम से 2014 में तेलंगाना राज्य की विधानसभ अस्तित्व में आई और नये राज्य ने काम करना आरंभ किया।
दिल्ली संविधान की अनुसूची के भाग दो में संघ राज्य क्षेत्र की सूची में क्रमांक 1 पर सूचीबद्घ थी। दिनांक 01-02-1992 से संविधान के 69वें संशोधन अधिनियम 1991 द्वारा संशोधन में अनुच्छेद 239 क और 239 क ख अंत: स्थापित करके इसे ‘दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र’ का नाम दिया गया है।
इसके साथ ही साथ दिल्ली के विषय में यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि यद्यपि यह संघ राज्य क्षेत्र के प्रवर्ग में रहेगी और यह भी कि इसे विशेष दर्जा दिया गया है। स्पष्टत: प्रावधान है कि दिल्ली की एक विधानसभा होगी और उस राज्य के उपराज्यपाल को सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी जैसा कि राज्य में होता है। किंतु इस राज्य की विशेष स्थिति केा देखते हुए लोक, व्यवस्था, पुलिस और भूमि के विषय में विधि बनाने की शक्ति विधानसभा के पास नही होगी। यद्यपि वे अनुसूची की सूची एक की प्रविष्टि नही होगी,व 1 व 8 विनिर्दिष्ट है। इस विषय से संबंधित विधायी स्वनिर्देशित शक्ति संघ में निहित होगी। तब से अब तक इसी व्यवस्था के अंतर्गत दिल्ली के मुख्यमंत्री काम करते आये हैं। तब इस पर केजरीवाल को सवाल उठाने का कितना अधिकार है? केजरीवाल जिस संविधान की देन है पहले उसकी स्थिति पढ़ लें फिर प्रश्न करें तो अच्छा लगेगा।
दिल्ली सहित विश्व की किसी भी राजधानी को अलग और पूर्ण राज्य का दर्जा नही दिया गया है। यह प्रशासनिक और राजनीतिक कारणों से भी उचित ही कहा जा सकता है। देश की राजधानी में जितने भी दूतावास हैं, पूर्ण राज्य का दर्जा देते ही उनकी वैधानिक स्थिति प्रभावित हो सकती है, और केन्द्र सरकार के मंत्रालयों राष्ट्रपति भवन व पी.एम.ओ. आदि के लिए कुछ असहज स्थिति खड़ी हो सकती है, इसलिए कांग्रेस सहित जिस पार्टी ने भी केन्द्र में शासन किया है, उसी के लिए दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने या न देने का प्रश्न अनुत्तरित रह गया। इसलिए दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने के विषय पर बहुत ही गंभीरता से सोचने की आवश्यकता है। उस पर दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल अपने विचार दें, तो अच्छा लगेगा।
मध्य प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम 2000 (धारा-5) दिनांक 01-11-2000 से छत्तीसगढ़ राज्य का, उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम 2000 धारा 5 (9-11-2000 स प्रभावी) से उत्तराखण्ड का, बिहार, पुनर्गठन अधिनियम 2000 धारा-5 (15-11-2000 से प्रभावी) से झारखण्ड का निर्माण किया गया। इसी प्रकार के अधिनियम से 2014 में तेलंगाना राज्य की विधानसभ अस्तित्व में आई और नये राज्य ने काम करना आरंभ किया। दिल्ली संविधान की अनुसूची के भाग दो में संघ राज्य क्षेत्र की सूची में क्रमांक 1 पर सूचीबद्घ थी। दिनांक 01-02-1992 से संविधान के 69वें संशोधन अधिनियम 1991 द्वारा संशोधन में अनुच्छेद 239 क और 239 क ख अंत: स्थापित करके इसे ‘दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र’ का नाम दिया गया है।
इसके साथ ही साथ दिल्ली के विषय में यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि यद्यपि यह संघ राज्य क्षेत्र के प्रवर्ग में रहेगी और यह भी कि इसे विशेष दर्जा दिया गया है। स्पष्टत: प्रावधान है कि दिल्ली की एक विधानसभा होगी और उस राज्य के उपराज्यपाल को सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी जैसा कि राज्य में होता है। किंतु इस राज्य की विशेष स्थिति केा देखते हुए लोक, व्यवस्था, पुलिस और भूमि के विषय में विधि बनाने की शक्ति विधानसभा के पास नही होगी। यद्यपि वे अनुसूची की सूची एक की प्रविष्टि नही होगी,व 1 व 8 विनिर्दिष्ट है। इस विषय से संबंधित विधायी स्वनिर्देशित शक्ति संघ में निहित होगी। तब से अब तक इसी व्यवस्था के अंतर्गत दिल्ली के मुख्यमंत्री काम करते आये हैं। तब इस पर केजरीवाल को सवाल उठाने का कितना अधिकार है? केजरीवाल जिस संविधान की देन है पहले उसकी स्थिति पढ़ लें फिर प्रश्न करें तो अच्छा लगेगा।
दिल्ली सहित विश्व की किसी भी राजधानी को अलग और पूर्ण राज्य का दर्जा नही दिया गया है। यह प्रशासनिक और राजनीतिक कारणों से भी उचित ही कहा जा सकता है। देश की राजधानी में जितने भी दूतावास हैं, पूर्ण राज्य का दर्जा देते ही उनकी वैधानिक स्थिति प्रभावित हो सकती है, और केन्द्र सरकार के मंत्रालयों राष्ट्रपति भवन व पी.एम.ओ. आदि के लिए कुछ असहज स्थिति खड़ी हो सकती है, इसलिए कांग्रेस सहित जिस पार्टी ने भी केन्द्र में शासन किया है, उसी के लिए दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने या न देने का प्रश्न अनुत्तरित रह गया। इसलिए दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने के विषय पर बहुत ही गंभीरता से सोचने की आवश्यकता है। उस पर दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल अपने विचार दें, तो अच्छा लगेगा।