तपोवन आश्रम में आयोजित सामवेद पारायण एवं गायत्री महायज्ञ सम्पन्न- “समाज में यदि मित्र भाव नहीं होगा तो समाज जीवित नहीं रह सकताः डा. वेदपाल शास्त्री”
ओ३म्
===========
वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून की पर्वतीय इकाई में 10 दिवसीय सामवेद पारायण एवं गायत्री महायज्ञ का आयोजन 10 मार्च, 2023 से आरम्भ हुआ था। यह आयोजन सफलतापूर्वक आज रविवार दिनांक 19-3-2023 को सम्पन्न हुआ। आज रविवार दिनांक 19 मार्च, 2023 को ही इस महायज्ञ की पूर्णाहुति सम्पन्न हुई। यज्ञ पांच यज्ञ वेदियों में किया गया। गायत्री मन्त्र से यज्ञ में कुल एक लाख पच्चीस हजार आहुतियां दी गईं। पांचों यज्ञ वेदियों पर आज 15 से 18 लोग बैठकर आहुतियां दे रहे थे। कुछ लोग यज्ञवेदियों के निकट बैठकर मन्त्रोच्चार सुन रहे थे और स्वाहा का उच्चारण कर रहे थे। हमने भी मन्त्रोच्चार को सुना और उसके पदों को समझने का प्रयत्न किया। यज्ञ की पूर्णाहुति के बाद यज्ञ के ब्रह्मा डा. वेदपाल, अजमेर ने परमात्मा का यज्ञ को सफलतापूर्वक सम्पन्न करने के लिए धन्यवाद किया। उन्होंने आश्रम के अधिकारियों सहित याज्ञिकों का भी धन्यवाद किया। आचार्य वेदपाल जी ने चार वेदपाठियों का भी उनके महत्वपूर्ण सहयोग के लिए धन्यवाद किया। यज्ञ की पूर्णाहुति के बाद स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी ने सामूहिक प्रार्थना कराई।
स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी ने परमात्मा को सम्बोधित कर कहा कि आप हमें कृपया उदार बनायें। आप की महान कृपा के लिए आपका पुनः पुनः वन्दन एवं धन्यवाद। स्वामी जी ने कहा कि सूर्य के होने से प्रकाश होता है। सूर्य और उसका प्रकाश भी हे परमेश्वर आपकी ही देन है। परमात्मा की कृपा से ही हमें मनुष्य योनि में जन्म मिला है। आपने सृष्टि की आदि में पवित्र चार वेदों का ज्ञान हमारे पूर्वज चार ऋषियों को दिया था। समय बीतने के साथ हम वेदों के ज्ञान से दूर हो गये। दुर्भाग्यवश एवं अपने आलस्य व प्रमादवश हम अंग्रेजों व यवनों के गुलाम हो गये। आपकी कृपा और हमारे सौभाग्य से देश में ऋषि दयानन्द जी का जन्म हुआ। स्वामी जी ने ऋषि दयानन्द के गुणों एवं कामों का वर्णन किया। स्वामी जी ने परमात्मा से प्रार्थना की हमारे देश में बड़ी संख्या में ऋषियों का जन्म हो जिससे देश में वैदिक युग एवं वैदिक परम्परायें लौट सकें। हम उदार हों तथा हमारे सभी देशवासी भी आपकी तरह उदार हो। हम अपने जीवन का उत्कर्ष कर पायें। स्वामी जी ने ईश्वर से प्रार्थना करते हुए देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी व उनकी सरकार के कार्यों की प्रशंसा भी की। उन्होंने प्रार्थना कर कहा कि वह सुरक्षित रहें। हमारा देश उनके नेतृत्व में सभी क्षेत्रों में आगे बढ़ता रहे। वैदिक युग पुनः लौटे। हमारा प्यारा वैदिक साधन आश्रम तपोवन भी आपकी कृपा से उन्नति करे। स्वामी जी ने कहा कि उनका अनुभव है कि तपोवन की यह भूमि वा स्थान साधना व उपासना करने के लिए अत्यन्त पवित्र एवं दुर्लभ स्थान है। इसका लाभ आश्रम व इतर साधकों व उपासकों को उठाना चाहिये। स्वामी जी ने अपनी सामूहिक प्रार्थना को विराम देते हुए ईश्वर से सब देशवासियों के कल्याण की कामना की। इसके बाद यज्ञ के ब्रह्मा डा. वेदपाल जी ने आशीर्वाद के वैदिक वचन बोले और गुरुकुल के एक ब्रह्मचारियों ने सभी याज्ञिकों को जल छिड़क कर आशीर्वाद दिया। आशीर्वाद देते हुए आचार्य डा. वेदपाल जी ने सबके यशस्वी होने की कामना की।
सामूहिक प्रार्थना के बाद पं. आर्यमुनि जी का एक भजन हुआ जिसके बोल थे ‘दर्द दिल की दुवायें बुला रही हैं तुम्हें, ये प्यार की राहें बुला रही हैं तुम्हें।’ यज्ञ में पधारी एक साधिका बहिन सुमन जी ने भी एक भजन सुनाया जिसके बोल थे ‘बड़ी श्रद्धा से तू प्यारे प्रभु प्यारे के गीत गाया कर। उसी के नाम की बस्ती सदा मन में बसाया कर।।’ दोनों भजनों को श्रोताओं ने मस्ती में भरकर सुना। भजनों के बाद आश्रम के मन्त्री श्री प्रेमप्रकाश ने कहा कि आश्रम में विगत 25 वर्षों से निरन्तर प्रत्येक वर्ष गायत्री महायज्ञ का आयोजन सम्पन्न हो रहा है। यज्ञ में प्रत्येक वर्ष एक लाख व उससे अधिक आहुतियां डाली जाती है। इस वर्ष यज्ञ में देश के सुदूर भागों के लोग बड़ी संख्या में पधारे हैं। इस बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की उपस्थिति पर मंत्री जी ने प्रसन्नता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि हमारा इस वर्ष का यज्ञ सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ है। उन्होंने परमात्मा, सभी विद्वानों एवं याज्ञिकों का हृदय से धन्यवाद किया। इस सम्बोधन के बाद आश्रम के धर्माधिकारी पं. सूरतराम शर्मा एवं प्राकृतिक चिकित्सक स्वामी योगेश्वरानन्द सरस्वती जी के सम्बोधन हुए। इन सम्बोधनों को हम एक पृथक लेख में अपने मित्र पाठकों के लिए प्रस्तुत करेंगे।
कार्यक्रम के समापन से पूर्व यज्ञ के ब्रह्मा डा. वेदपाल जी का सम्बोधन हुआ। अपने सम्बोधन में डा. वेदपाल जी ने कहा कि मनुष्य बिना प्रयोजन के किसी कार्य में प्रवृत्त नहीं होता। पशु व पक्षी भी बिना प्रयोजन के कोई कार्य नहीं करते। मनुष्य की आत्मा की मुक्ति मनुष्यजीवन का उद्देश्य व प्रयोजन है। आचार्य जी ने प्रश्न किया हम मुक्ति से पूर्व कैसे बैठे? उन्होंने कहा कि हमें पवित्रता के लिए बैठना है। पवित्र भाव से बैठना है। हमें बैठकर ईश्वर का ध्यान व उसकी स्तुति करनी है। हमें परमात्मा की स्तुति व ध्यान करना है जो जीवन संघर्षों में हमारी रक्षा कर सके। आचार्य जी ने कहा कि मिलकर बैठने से परस्पर मित्रता बढ़ती है। विचारों में भिन्नता मिलकर न बैठने में सबसे बड़ी बाधा है। साथ-साथ न बैठने से संघर्ष पैदा होता है। आचार्य जी ने द्वितीय विश्व युद्ध एवं इसमें भाग लेने वाले मित्र राष्ट्रों की चर्चा की। आचार्य वेदपाल जी ने कहा कि युद्ध में सेना उन सैनिकों को मारती है जिस सेना के प्रति मैत्री का भाव नहीं होता। उन्होंने कहा कि यदि मित्र भाव नहीं होगा तो समाज जीवित नहीं रह सकता। आचार्य जी ने कहा युद्ध आवश्यक है। युद्ध कायरता को नष्ट करता है। समाज में छायी कायरता युद्ध से मिटती है। युद्ध से पराक्रम बढ़ता है। लोग मित्र भाव से रहे, यह भी युद्ध का कारण होता है।
आचार्य डा. वेदपाल जी ने कहा कि वेद का सन्देश है कि मैत्री का विस्तार करो। ऐसा होने पर युद्ध की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। आचार्य जी ने सन्तोष शब्द की चर्चा और इसके वास्तविक अर्थ पर प्रकाश डाला। आचार्य जी ने अपरिग्रह की चर्चा भी की। उन्होंने कहा कि जब सब लोग सन्तोष एवं अपरिग्रह आदि को धारण कर लेंगे तो संसार में युद्ध नहीं होंगे। उन्होंने कहा कि सभी मनुष्यों को अपने सामने वाले मनुष्य को अपने जैसा समझना चाहिये। इससे समाज में मैत्री बढ़ेगी। इसी के साथ आचार्य जी ने अपने सम्बोधन को विराम दिया। इसके बाद आश्रम की ओर से आचार्य डा. वेदपाल जी का शाल आदि से सम्मान किया गया। आश्रम के सभी कर्मचारियों ने कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए रात दिन तप किया। आश्रम के मंत्री श्री प्रेमप्रकाश शर्मा जी ने सभी कर्मचारियों के कार्यों की सराहना की और उन्हें एक-एक शाल आदि वस्तुयें देकर सम्मानित किया। आश्रम के उपाध्यक्ष आहुजा जी ने कार्यक्रम में प्रत्येक व्यक्ति व समूह के योगदान का उल्लेख कर प्रशंसा की और सबका धन्यवाद किया। इसी के साथ सामवेद पारायण एवं गायत्री महायज्ञ का आयोजन सम्पन्न हो गया। इसके बाद सभी लोगों ने भूमि पर साथ-साथ बैठकर भोजन वा प्रसाद लिया और सब याज्ञिक अपनी अपनी गाड़ियों व साधनों से विदा लेकर अपने निवास-स्थानों की ओर प्रस्थान कर गये। यह भी बता दें कि आश्रम का आगामी ग्रीष्मोत्सव 10 मई से 14 मई, 2023 तक आयोजित किया जा रहा। यह आयोजन आध्यात्मिक उन्नति का एक महत्वपूर्ण अवसर होता है। सभी बन्धुओं को इस अवसर का लाभ उठाना चाहिये और इस आयोजन में सम्मिलित होना चाहिये। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य