Categories
महत्वपूर्ण लेख

कम्युनिस्ट आंदोलन का मजदूरों से संबंध और अंतर

“मजदूर और कम्युनिष्ट सम्बन्ध एवं अन्तर”👇

कुछ साल हुए. एक स्कूल का मित्र मिला। डाक्टर भीमराव अम्बेडकर से बहुत प्रभावित था। कम्युनिष्ट लोबी से जुड़ा था। सनातन धर्म, वेद और महर्षि मनु को गाली दे रहा था। बोला धर्म से किसी को रोटी नही मिलती। भारत के बुरे हालात का कारण केवल धर्म है।

यदि भारत के टुकड़े करने का समर्थन चाहिए तो कम्युनिस्ट उपलब्ध हैं… यदि 1962 में चीन युद्ध के समय सेना का सामान ले जाने वाली मजदूर यूनियन की हड़ताल करवानी हो तो कम्युनिष्ट उपलब्ध हैं। 35 साल का लगातार शासन कम नहीं होता। रात दिन मजदूरों के अधिकारों की बात करने वाले कम्युनिष्ट मजदूरों को किस तरह बर्बाद कर रहे हैं।

कोई कम्युनिष्ट मजदूरों को तम्बाकू छोड़ने के नहीं बोलता। मैंने किसी कम्यूनिष्ट साहित्य में एक शब्द नहीं देखा इसके बारे में। टीवी के किसी भी कार्यक्रम में ये लोग मजदूरों को नशा छोड़ने को नहीं कहते। सभी जानते हैं तम्बाकू से दमा, टी बी, फेफड़े का कैंसर, मुंह का कैंसर और अल्सर की सम्भावना कई गुणा बढ़ जाती है। जो मजदूर रोटी के लिए संकट में है वह कैंसर का इलाज कहाँ से करवाएगा।

नशे की सूईंयों लगाकर आज मजदूर रोगों का शिकार हो रहा है। मजदूरों के लिए फैक्ट्री मालिक को गाली देने वाले क्या इन नशे के चक्र को तोड़ेंगे। शराब का कभी विरोध नहीं करते देखा। हाँ दूध देने वाली गाय के क़त्ल की वकालत जरुर करेंगे।

पश्चिम बंगाल (West Bengal) के मजदूरों को देने के लिए रोजगार नहीं परन्तु करोड़ों बंगलादेशी मुस्लिम बुला लिए। ये वही बंगलादेशी हैं जिन्होंने 1947 और 1971 में हिन्दूओं का और बिहारी मुसलमानों का कत्लेआम किया था।

त्रिपूरा और बंगाल का GDP Per Capita बेहद कम है। हरियाणा जैसे राज्यों से आधे से भी कम। सीधे शब्दों में, कम GDP Per Capita कम रोजगार, कम शिक्षा कम स्वास्थ्य सुविधाएं।

अर्थशास्त्र के नोबल विजेता अमर्त्य सेन ने सिद्ध किया है कि बन्द या हड़ताल का सबसे अधिक असर मजदूरों पर और विशेष रूप से दिहाड़ीदार मजदूर पर होता है। उसके बच्चे भूखे मरने लगते हैं। हडताल, बंद और दंगे में सबसे आगे बंगाल है।

सोनागाछी (कोलकाता) स्लम भारत ही नहीं, एशिया का सबसे बड़ा रेड-लाइट एरिया (वेश्यास्थान) है। यहां कई गैंग हैं जो इस देह- व्यापार के धंधे को चलाते हैं। इस स्लम में 18 साल से कम उम्र की कई हज़ार लड़कियां देह व्यापार में शामिल हैं। उन्‍हें बचपन से ही वो सब देखना पड़ता है जि‍सके बारे में सोचने पर हमारी रुह कांप जाए। ये काम इतना बुरा है कि इसमें मजबूरन पड़ने वाली लड़कियों के लिए बदनसीब शब्द भी बहुत हल्का है। जिस उम्र में हमारी मां हमें दुनिया के रीति-रिवाज, लाज-शरम सिखाती हैं वहीं ये बच्चियां खुद को बेचने का हुनर सीखती हैं। 12 से 17 साल की उम्र में ये लड़कियां सीख जाती हैं कि मर्दों की हवस कैसे मिटाई जाती है। इसके बदले उन्हें 300 रुपए मिलते हैं। इन रूपयों के बदले यहां की बच्चियां मर्दों की टेबल पर तश्तरी में खाने की तरह परोस दी जाती हैं।

चिड़ियाघर में पिंजरे में कैद जानवरों की हालत से भी बदतर हालत होती है। सोनागाछी में इन छोटे छोटे दडबे जैसे पिंजरों में कैद लड़कियों की बक़ायदा नुमायश होती है ताकि सडक पर आते जाते लोग उनकी अदाओं के जाल में फंस जाए। अपने अपने कोठे या कमरे के बाहर खडी होकर ये बदनसीब औरतें और लड़कियां अपने जिस्म नोचने वालों को रिझाती नज़र आती है। सडक पर बिकने वाले मुर्गे और बकरों की तरह सोनागाछी में इंसानों का बाज़ार लगता है।पत्रकारों और फोटोग्राफरों को भी ये लोग भीतर नहीं आने देते। ज्यादातर बच्चियां स्कूल छोड़कर आई हैं और अब देह बेचने का पाठ पढ़ रही हैं। कुछ NGO का अध्ययन कहते हैं कि इन 35 सालों में सोनागाछी में देह-व्यापार में आने वाली लड़कियों की संख्या 10 गुणा हो गई है।

लाल आतंक या नक्सली जिसका बौद्धिक समर्थन सारे कम्युनिस्ट करते हैं।

देश में 2011-2017 के समय में माओवादी लाल आतंक की कुल 5960 घटनाएं घटीं। इन घटनाओं में…

1221 नागरिक मरे जिनमे अधिकतर आदिवासी रहे। 455 सुरक्षाकर्मियों की जान गई, 581 माओवादी आतंकवादी मारे गए। गृहमंत्रालय से आरटीआई के तहत मिली सूचना के मुताबिक, साल 2012 से अक्टूबर 2017 तक लाल आतंकी घटनाओं में देश में कुल 91 टेलीफोन एक्सचेंज और टावरों को निशाना बनाया गया। इसी अवधि में कुल 23 स्कूलों को ध्वस्त किया इन नक्सलियों ने। साल 2012 में कुल 1415 लाल आतंक की घटनाएं हुईं, जिनमे 301 नागरिक, 114 सुरक्षाकर्मी शहीद और 74 माओवादी आतंकी मारे गए।

मानवता के दुश्मन हैं ये वामपंथ जनित लाल आतंकवादी। इनसे भी ज्यादा खतरनाक है अकादमियों, यूनिवर्सिटियों, हॉस्टलों, सेमिनारों और मीडिया आदि में बैठे वे बुद्धिखोर हैं जो इन आतंकवादियों और इनके आतंक की पैरवी, समर्थन करते हैं, इनके लिए खाद-पानी की व्यवस्था करते हैं।

कम्युनिज्म पर डॉ. अंबेडकर के विचार… ‘मेरे कम्युनिस्टों से मिलने का प्रश्न ही नहीं उठता। अपने स्वार्थों के लिए मजदूरों का शोषण करनेवाले कम्युनिस्टों का मैं जानी दुश्मन हूं।’

मार्क्सवादी तथा कम्युनिस्टों ने सभी देशों की धार्मिक व्यवस्थाओं को झकझोर दिया है। बौध्द धर्म को मानने वाले देश, जो कम्युनिज्म की बात कर रहे हैं, वे नहीं जानते कि कम्युनिज्म क्या है। रूस के प्रकार का जो कम्युनिज्म है, वह रक्त-क्रांति के बाद ही आता है।

कम्युनिस्टों ने अपने मकसद में डॉ. अंबेडकर को अवरोध मानते हुए समय-समय पर उनके व्यक्तित्व पर तीखे प्रहार किए। पूना पैक्ट के बाद कम्युनिस्टों ने डा. अंबेडकर पर ‘देशद्रोही’, ‘ब्रिटीश एजेंट’, ‘दलित हितों के प्रति गद्दारी करनेवाला’, ‘साम्राज्यवाद से गठजोड़ करनेवाला’ आदि तर्कहीन तथा बेबुनियाद आक्षेप लगाए। इतना ही नहीं, डा. अंबेडकर को ‘अवसरवादी’, ‘अलगाववादी’ तथा ‘ब्रिटीश समर्थक’ बताया। (गैइल ओंबवेडन, ‘दलित एंड द डेमोक्रेटिक रिवोल्यूशन: डॉ. अंबेडकर एंड दी दलित मूवमेंट इन कॉलोनियल इंडिया’)

कम्युनिस्ट क्या है, कौन है, थोड़ा समझिए… यदि आपके घर में काम करने वाले नौकर से कोई आकर कहे, कि तुम्हारा मालिक तुमसे ज्यादा क्यों कमा रहा है? तुम उसके यहां काम मत करो, उसके खिलाफ आंदोलन करो, उसे मारो और अगर जरूरत पड़े तो हथियार उठाओ, हथियार मैं ला कर दूंगा। यह सलाह देने वाला व्यक्ति कम्युनिस्ट है… अगर कोई गरीब मजदूर, जो किसी ठेकेदार या किसी पुलिस वाले का सताया हो, उसको यह कहकर भड़काना, कि पूरी सरकार तुम्हारी दुश्मन है, इन्हें मारो और अपना खुद का राज्य बनाओ। तुम्हें हथियार में दूंगा। यह आदमी कम्युनिस्ट है… अगर कोई आपके पुरखों के वैभव और शानदार इतिहास को छुपाकर आपको यह बताए, समझाए और पढ़ाए कि दूसरे देश तुम से बेहतर हैं, तुम कुछ भी नहीं हो, यह हीन भावना जगाने वाला आदमी कम्युनिस्ट है… एक चलते हुए कारखाने को कैसे बंद करना है, एक सुरक्षित देश में कैसे सेंध लगानी है, अच्छे खासे युवा के दिमाग में कैसे देशद्रोही का बीज बोना है, किसी सिस्टम के सताए मजबूर इंसान को कैसे राष्ट्रविरोधी नक्सली बनाना है… यह सब कम्युनिस्टों की विचारधारा है। पश्चिम बंगाल और केरल में वामपंथी अनेक दशकों तक सत्ता में रहे लेकिन कोई आदर्श स्थापित नहीं कर पाए सिवाए आधे-अधूरे भूमिसुधार के जिसकी बदोलत वे इतने साल सत्ता में रह पाए। इसके अतिरिक्त वे कोई छाप नहीं छोड़ पाए, न भ्रष्टाचार कम हुआ, न गरीबी का उन्मूलन हुआ न उद्योग धंधे न रोजगार में वृद्धि न स्वास्थ्य और शिक्षा का विकास हुआ और न ही जातिवाद का खात्मा हो पाया।

#साभार

Comment:Cancel reply

Exit mobile version