महर्षि दयानंद सरस्वती जी की 200 वीं जयंती और माता सत्यवती की 17 वीं पुण्यतिथि के अवसर पर धूमधाम से संपन्न हुआ चतुर्वेद शतकम् यज्ञ

ग्रेटर नोएडा । (आर्य सागर खारी)आर्य बंधु परिवार की जननी स्वर्गीय माता सत्यवती आर्या की 17 वीं पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित चतुर्वेद शतकम यज्ञ तथा महर्षि दयानंद सरस्वती जी की 200 वीं जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित राष्ट्रव्यापी कार्यक्रमों की श्रंखला में आयोजित विचार गोष्ठी का विधिवत समापन आर्य विद्वानों ,आर्य सज्जनों व महानुभावों की भारी उपस्थिति में संपन्न हुआ। इस कार्यक्रम का आयोजन उगता भारत परिवार तथा ‘भारत को समझो अभियान समिति’ के संयुक्त तत्वावधान में किया गया था। दोनों ही वैचारिक सांस्कृतिक संस्थान आर्य बंधु श्री देवेंद्र सिंह आर्य एवं डॉ राकेश कुमार आर्य के बौद्धिक मार्गदर्शन और चिंतन की छाया में फल फूल रहे हैं। कार्यक्रम में महर्षि दयानंद के जीवन पर आधारित चित्र वीथिका का भी अनावरण किया गया। जिसे देखकर सभी लोग मंत्रमुग्ध हो गए। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि संघ के शीर्ष विचारक व भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय महामंत्री रहे यशस्वी कर्मयोगी संजय विनायक जोशी जी रहे।

निर्धारित प्रातः 10:00 बजे यज्ञ की पूर्णाहुति हुई । पूर्णाहुति के पश्चात आर्य भजनोपदेशक महाश्य जगमाल ने 3 भजन ऋषि महिमा के सुनाए। समस्त श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए। इसके पश्चात कार्यक्रम में आमंत्रित संन्यासी अखिलानन्द जी ने भारत की संस्कृति और सभ्यता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भारत की युवा पीढ़ी को आज अपनी गौरवमयी संस्कृति से जोड़ना होगा। पश्चिमी संस्कृति जो संस्कृति ना होकर कुसंस्कृति है, वह आज हमारे युवाओं के मस्तिष्क व हृदय पर अपनी छाप छोड़ रही है। यह राष्ट्र के लिए विनाशक है। उन्होंने कहा कि जिस वैलेंटाइन के नाम पर आज कल वैलेंटाइन डे मनाया जाता है हमने उस वैलेंटाइन को भी सही अर्थों में समझा नहीं है। उसके बारे में सच यह है कि उसे वहां की क्रूर तानाशाही सत्ता ने ही इसलिए फांसी पर चढ़ा दिया था कि वह भारत की वैदिक सभ्यता और संस्कृति के अनुसार यूरोप की संस्कृति को बनाना चाहता था। उन्होंने कहा कि मैक्समूलर ने अपनी पुस्तक “हम भारत से क्या सीख सकते हैं” में स्पष्ट लिखा है कि भारत की वैदिक संस्कृति ही संसार के लिए एक ऐसी उपयोगी संस्कृति हो सकती है जो संसार का कल्याण कर सकती है।
इस अवसर पर भारत को समझो अभियान के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डाक्टर वेदप्रकाश जी बरेली ने भी अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि आर्य परिवारों को अपने बच्चों को आर्य समाज के कार्यक्रमों में लाना होगा तभी आर्यकरण संभव होगा।
उन्होंने कहा कि ऋषि दयानंद वेदों की ओर लौटने का जब आवाहन कर रहे थे तो उन्होंने भी यही आवाहन किया था कि भारत को वेदों के माध्यम से समझो, क्योंकि वेदों की पवित्र वाणी से ही संसार सन्मार्ग पर लौट सकता है। गाजियाबाद से कार्यक्रम में चलकर आए सर्वेश मित्तल ने कहा कि मां क्या होती है ?मां का संतान निर्माण में क्या योगदान होता है ?यदि यह जानना समझना हो तो डॉ राकेश कुमार आर्य जी के आर्य बंधु परिवार को देखिए। एक मां के तप ने इस परिवार को आदर्श बनाया है। उन्होंने कहा कि देश की ऐसी हजारों माताएं रही हैं जिन्होंने इतिहास को नया मार्ग दिखाने का सराहनीय कार्य किया। निश्चय ही माता सत्यवती जी एक ऐसी ही आदर्श और महान महिला थीं। जिन्होंने आर्य पुत्रों को जन्म देकर संसार के लिए ऐसे पवित्र यज्ञ और यज्ञ के कार्यक्रम कराने के लिए उन्हें प्रेरित किया।
विचारों की श्रंखला में आर्य प्रतिनिधि सभा गौतम बुध नगर के अध्यक्ष महेंद्र आर्य जी ने सबसे पहले आयोजक परिवार की भूरि भूरि प्रशंसा की । फिर उन्होंने यज्ञ की वैज्ञानिकता महर्षि दयानंद के यज्ञ को लेकर अपने ओजस्वी वक्तव्य में कहा कि विचार शिल्प व्यवहार भी यज्ञ होता है। श्री आर्य ने इस विषय पर बेहद उत्कृष्ट उद्बोधन दिया। उन्होंने कहा कि आज हमें अपने यज्ञों के कार्यक्रमों को सामाजिक संगठनात्मक शैली का स्वरूप देने के लिए गंभीरता से विचार करना चाहिए। स्वामी ओमानंद जी ने कहा कि देश में प्रांतवाद, भाषावाद, संप्रदायवाद, जातिवाद की भयानक विकराल समस्या बहुत गंभीर हो चुकी है जिसका समाधान हमें समय रहते खोजना होगा, अन्यथा देश बर्बाद हो जाएगा। यदि इन सभी समस्याओं से भारत को मुक्त करना है तो महर्षि दयानंद के राजनीतिक चिंतन को वैधानिक व्यवस्था में लागू करना होगा। एक राष्ट्र, एक शिक्षा पद्धति, एक भाषा का उन्होंने आग्रह किया।
ईशान ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशन के निदेशक डॉ डी0के0 गर्ग ने बेहद विनोदी शैली में आर्य सिद्धांतों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि आर्यकरण हमारे आचरण से ही संभव है । हमें दैनिक यज्ञ की उपासना पद्धति को घर-घर तक पहुंचाना होगा, जो भी युवक दैनिक यज्ञ करने का संकल्प लेगा वह मूर्ति पूजा को छोड़ेगा, मैं उसे व्यक्तिगत तौर पर सम्मानित करूंगा। अपने जीवन के प्रेरक संस्मरण में भी उन्होंने सांझा किए । अपनी माता जी जो शतायु हैं, आज भी जीवित हैं, उनका भी संस्मरण उन्होंने सांझा किया।
आर्य बंधु परिवार की ओर से एडवोकेट देविंदर आर्य ने सभी उपस्थित संन्यासियों, विद्वानों अतिथियों का वाचिक सत्कार किया। उनकी पुत्रवधू जो हाल ही में दिल्ली में एपीआरओ की परीक्षा पास कर एपीआरओ के पद पर नियुक्ति हुई है ,उन्होंने भी अपनी शैक्षणिक उपलब्धि में अपने परिवार व विशेष तौर पर अपने श्वसुर देवेंद्र आर्य की ओर से मिले वैचारिक भावनात्मक समर्थन को अपनी सफलता के लिए जिम्मेदार माना। वास्तव में श्री देवेंद्रसिंह आर्य अपने आदर्श जीवन दर्शन के कारण सभी के लिए प्रेरणा स्रोत है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि संजय विनायक जोशी ने अपना प्रेरक उद्बोधन दिया ,जो बहुत ही सरल सहज था। अधिकार से पहले हम सभी भारतवासियों को आज कर्तव्यों की बात करनी चाहिए। आज हम देख रहे हैं कि भौतिक इमारतें ऊंची हो रही हैं,लेकिन मानवता की इमारत नीचे की ओर जा रही है। आर्य समाज के कारण यह राष्ट्र संस्कृतिक वैचारिक तौर पर सुरक्षित रहा है। यज्ञ प्राकृतिक दिनचर्या के आधार पर हम स्वस्थ जीवन जी सकते हैं। कोरोना काल में यह रिसर्च स्टडी सामने निकल कर आई है। यज्ञ की वैज्ञानिकता यज्ञ से मिलने वाली आरोग्यता पर भी उन्होंने प्रकाश डाला कुछ राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय शोध जो इस विषय से संबंधित है उनके सार तथ्यो को भी जोशी जी ने साझा किया।
इस अवसर पर डॉ राकेश कुमार आर्य जी की नव लिखित 2 पुस्तक मेवाड़ के महाराणा और उनकी गौरव गाथा तथा 26 मानचित्र में भारत के इतिहास का सच विमोचन किया। संजय विनायक जोशी जी ने डॉ राकेश कुमार आर्य के द्वारा लेखनी से किये गये पुरूषार्थ की भूरि भूरि प्रशंसा की । उन्होंने कहा कि आर्य जी पता नहीं किस धातु के बने हुए हैं, इतिहास के पुन: लेखन में सांस्कृतिक गौरव की पुनर्स्थापना में इनका योगदान अद्भुत और अद्वितीय है। यह योगदान मुक्त कंठ से सराहनीय प्रचारणीय है। उन्होंने कहा कि इतिहास के अनछुए पहलुओं को स्पष्ट करना और सहजता के साथ जनमानस के सामने लाने का कार्य श्री आर्य का बहुत ही प्रशंसनीय है । आजकल इसी प्रकार के लेखन की आवश्यकता है जिसे डॉक्टर कार्य पूर्ण कर रहे हैं।
यह कार्यक्रम अट्ठारह मार्च की शाम से आरंभ होकर 19 मार्च की दोपहर तक संपन्न हुआ । पहले सत्र में प्रोफेसर विजेन्द्र सिंह आर्य ने अपने संबोधन में सबको गदगद कर दिया। उन्होंने कहा कि हमारी माता ही नहीं, प्रत्येक वह माता महान होती है जो पवित्र संस्कार देकर अपने बच्चों का निर्माण करती है। उन्होंने शिवाजी का उदाहरण देते हुए कहा कि उनकी माता जीजाबाई ने ही उन्हें शिवाजी बनने की प्रेरणा दी थी।
अंत में कार्यक्रम के अध्यक्ष देव मुनि जी ने अपना समापनीय उद्बोधन दिया कार्यक्रम का संचालन आर्य सागर खारी ने किया। इस अवसर पर भारत को समझो अभियान समिति के पदाधिकारियों, उगता भारत समाचार पत्र के कर्मठ पत्रकार साथियों तथा वैदिक विचारधारा को समर्पित आर्य जनों को प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर श्री रहीश राम भाटी बलवीर सिंह आर्य महावीर सिंह आर्य राजेश बैरागी संदीप गर्ग राजेंद्र शर्मा जितेंद्र डेडा चौधरी जतन सिंह सूबेदार जतनसिंह आर्य, रमेश सिंह आर्य, महाशय इंदर सिंह, प्रेमचंद आर्य, मूलचंद शर्मा, महेंद्र सिंह आर्य, प्रीतम सिंह आर्य, धर्मवीर सिंह आर्य,आचार्य प्राण देव ,रविंद्र कुमार आर्य सहित सैकड़ों आर्य जन अतिथि अंसल गोल्फ लिंक सोसाइटी वासी आरडब्ल्यूए के पदाधिकारी ,मातृशक्ति उपस्थित रही । सभी ने प्रीतिभोज का आनंद लिया।

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