जब चीन को हराया था भारत ने
भारत के प्रधानमंत्री मोदी के सत्ता संभालने के बाद से चीन के हृदय की धडक़नें कुछ अधिक ही बढ़ी हुई हैं। अब भारत ने अपनी सीमाओं की रक्षा करना सीख लिया है, बस यही कारण है जो कि चीन को फूटी आंख नहीं सुहा रहा है। अब चीन हमें 1962 के युद्ध जैसे परिणामों की धमकी दे रहा है, हालांकि हमारे रक्षामंत्री अरूण जेटली ने चीन को स्पष्ट शब्दों में बता दिया है कि आज का भारत 1962 का भारत नहीं है।
यह कितने दुर्भाग्य की बात है कि आज हम अपने आपको यह बता रहे हैं कि हमारा देश 1962 वाला देश नहीं है, हम अपने बारे में ही यह भूल गये हैं कि हम वही भारतीय हैं, और यह वही भारत देश है जिसने 1962 के पांच वर्ष पश्चात ही चीन को परास्त कर दिया था, और उसे बता दिया था कि भारत का ‘पुनरूज्जीवी पराक्रम’ क्या होता है? हमने अपनी उस जीत को छुपा लिया या उसका अधिक प्रचार-प्रसार नहीं कर पाये यही कारण है कि चीन हार के बावजूद जीत का ही गीत गाये जा रहा है । पाठकों के लिए हम बताना चाहेंगे कि 1962 के युद्घ के 5 वर्ष पश्चात ही 1967 में चीन ने एक बार फिर प्रयास किया था कि भारत को एक बार फिर चुनौती दी जाए और उसे हमार का एक और ‘सदमा’ दिया जाए, परंतु तब तक परिस्थितियां बदल चुकी थीं । सिक्किम उस समय भारत का एक प्रांत नहीं था, इस स्वतंत्र देश पर भारत और चीन दोनों अपना दावा करते थे । उस समय वहाँ पर सीमा को स्पष्ट करने के लिए कोई तार नहीं लगे हुए थे, केवल पत्थर रखे थे और उन्हीं से यह अनुमान लगा लिया जाता था कि किस देश की सीमा कहां है?
इसी परिस्थिति का लाभ उठाकर 1 सितंबर 1967 को चीनियों ने घुसपैठ की चेष्टा की यद्यपि सेना ने उन्हें धकेल दिया, मगर अब भारत की नींद खुल गयी थी। सेना ने तुरंत कंटीले तार लगाने आरंभ कर दिये जब चीनियों ने यह सब देखा तो उन्होंने 14 सितंबर को फायरिंग शुरू कर दी। उत्तर मेंं भारत की सेना ने चीन की मशीन गन यूनिट को ही नष्ट कर दिया। उस समय भारत की सेना के उप सेनाध्यक्ष जगजीत सिंह अरोड़ा थे। उनके हृदय में 1962 की हार की गहरी चोट थी, जिसे भारत का वह शेर भूला नहीं था, और उसके हृदय में बार-बार चीन को पटखनी देने का प्रश्न उमड़-घुमड़ कर आता था। इसलिए उन्होंने ये युद्ध समाप्त नहीं होने दिया, अपितु भारत की सेना को सीधे चीन में घुसने का आदेश थमा दिया।
आदेश मिलते ही नाथुला और चोला पोस्ट पार करके भारतीय सेना आगे बढ़ती गयी, रास्ते में चीन की जितनी भी चौकियां मिलीं वे सारी की सारी नष्ट कर दी गयीं, चीन के सैनिक देखते रह गये, उन्हें ऐसे घातक प्रतिरोध की भारतीय सेना से अपेक्षा नहीं थी, क्योंकि 1962 की अपनी जीत से प्रफुल्लित चीन उस समय अपनी पीठ अपने आप थपथपा रहा था। अब उसे भारत के सैनिकों ने बता दिया था कि भारत का पराक्रम प्रतिरोध और प्रतिशोध लेने में कितनी शीघ्रता दिखाता है। भारतीय सैनिकों ने 340 चीनियों को स्वर्ग की यात्रा के लिये भेज दिया। 450 चीनी सैनिक बंदी बनाये गए यद्यपि हमें भी 90 सैनिकों का बलिदान देना पड़ा, परंतु 1 अक्टूबर 1967 आते-आते भारतीय सेना ने सिक्किम पर अपना नियंत्रण कर लिया और युद्धविराम की घोषणा कर दी।
अब बातें राजनीतिक मैदान में आ गयी, इंदिरा गांधी उस समय प्रधानमंत्री थीं और वे किसी भी मूल्य पर चीन के समझ झुकने को तैयार नही थीं, उन्होंने चीन के तत्कालीन राष्ट्रपति माओ जदोंग को धमकी तक दे डाली कि या तो भारत की सेना यही रुकी रहेगी या फिर और अंदर तक घुस आएगी मगर वापस नहीं लौटेगी। पहली बार चीन असहाय और निरूपाय अवस्था में खड़ा था, कोई विकल्प चीन के पास नहीं था, अत: उसे सिक्किम से हाथ धोना पड़ा और जब सिक्किम वासियों ने अपने इलाकों में भारतीय सेना को देखा तो उन्होंने भारतीय सैनिकों पर फूलों की वर्षा की और भारत के जयकारे लगाए। 8 वर्ष पश्चात 1975 में सिक्किम को भारतीय संघ का राज्य घोषित कर दिया गया । आज भी सिक्किम के लोग हम मध्य, पश्चिमी और दक्षिण भारतीयों की तुलना में अधिक राष्ट्रवादी हैं। आज भी यदि कभी चीन घुसपैठ करता है तो ये हमारी तरह रोते नहीं हैं, अपितु प्रतीक्षा करते हैं कि चीनी सैनिक आयें और ये उस पर धावा बोल दें। इस युद्ध में भारत को भले ही विजय मिली हो मगर चीन ने इससे शिक्षा ली, उसी का परिणाम है कि पिछले 40 वर्षो से चीन ने सीमा पर एक गोली भी नही चलाई । चीन समझ गया कि वह अब भारत से संभवत: ना हारे, किंतु भारत को हरा भी नही सकता। इसलिए उसने भारत की ओर शांति का हाथ बढ़ाया, भारतवासियों ने कभी उसकी मित्रता दोबारा स्वीकार नहीं की, इसीलिए अब उसे पाकिस्तान की ओर बढऩा पड़ा। दुनिया भारत की शक्ति देख चुकी थी, 1965 में पाकिस्तान और 1967 में चीन को हराकर भारत एक बार फिर सामने खड़ा था मगर चीन ने अपनी हार का पूरा गुस्सा जापान, ताइवान, फिलिपीन्स और वियतनाम पर निकाला । आज भी चीन की सेना इनके समुद्री क्षेत्रों में घुसपैठ करती है । यद्यपि इन देशों ने चीन से निपटने के लिए भारत और अमेरिका से संबंध सुदृढ़ कर लिए हैं। यही कारण है कि प्रधानमंत्री मोदी की वियतनाम यात्रा के समय वहाँ के रक्षामंत्री ने भारत से वियतनाम में सैन्य अड्डे बनाने की माँग कर डाली थी । साथ ही जापान ने भारत के जल युद्धपोतों को सैन्य अभ्यास के लिये आमंत्रित किया था ।
चीन इतने वर्षों से इसीलिए मौन बैठा हुआ है, क्योकि वह वो 1967 का परिणाम जानता है और अब भारत भी बदल चुका है आज इससे कोई अंतर नही पड़ता कि किसके पास कितने बम हैं, क्योंकि हर हथियार अब विनाशकारी ही है । भारत के पास कुछ हथियार कम हो सकते हैं, परंतु भारत जब चाहे चीन को उसी की भाषा मे उत्तर आज भी दे सकता है। परिणाम बस यह होगा कि दोनों ही देश आर्थिक और सामाजिक रूप से 60 साल पीछे पहुँच जाएंगे। इसलिए भारत और चीन में युद्ध ना हो वही अच्छा विकल्प होगा। पर यदि चीन ने पाठ नहीं पढ़ा तो उसे पाठ पढ़ाने में देरी भी नहीं करना चाहिए ।
मुख्य संपादक, उगता भारत