Dr DK Garg
भाग -4
ये सीरीज पांच भागों मे है , पहले तीन भाग में इस्कॉन के विषय में ,इनकी कार्य प्रणाली के विषय में बताया है ताकि आपको पूरी जानकारी हो सके बाकी २ भाग में विश्लेषण किया है। कृपया अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दे और अन्य ग्रुप में शेयर करे।
इस्कॉन परीक्षा
इसके लिए ”नाम हट्ट” नाम की एक किताब आती है जो ऑनलाइन मिलती है, जहॉ आपका इस्कॉन मंदिर है वहॉ के बुक स्टाल में मिलती है । यह किताब हर भाषा में उपलब्ध है।
इस किताब के एक चरण में 20 प्रश्न हैं जो खास तौर पर दीक्षा के लिए बनाये गये हैं, जो कि लिखित परीक्षा में लिखने के लिए आते हैं। परीक्षा दो चरणों में होती है, पहला चरण आपके लोकल इस्कॉन टेम्पल में होगा, अगर आप वह परीक्षा पास कर लेते हैं तब दूसरे चरण की परीक्षा के लिए इस्कॉन की मेन ब्रांच में भेजा जायेगा ।
सभी आरती आपको याद होना चाहिए, जैसे मंगल आरती, संध्या आरती, तुलसी आरती, गुरु वंदना, श्री गुरु चरण वगैरह । यह सब आपको जो इनकी तर्ज बनायी गयी है, उस तर्ज पर गाते हुये याद होना चाहिए । आपको वहॉ गाकर सुनाना होगा ।
दूसरे चरण की लिखित परीक्षा के अलावा आपका साक्षात्कार भी होगा ।
चरणाश्रय के तुरंत बाद हरिनाम दीक्षा नहीं होता है । चरणाश्रय लेने के बाद कम से कम 06 माह आपको रुकना पड़ेगा उसके बाद ही आपको हरिनाम दीक्षा दी जायेगी ।
हरिनाम दीक्षा में आपके गुरु महाराज अपने हाथों से एक नयी तुलसी माला देते हैं जो आपको अपने गले में धारण करनी होती है । इसके अलावा आपको नयी जप माला भी आपके गुरु महाराज द्वारा प्रदान की जायेगी । जिससे आपको हरे कृष्ण महामंत्र का जप करना होता है । दीक्षा के पहले वाली कंठी माला को गले से उतार दिया जाता है ।
दीक्षा के समय गुरु महाराज जी द्वारा आपको मंत्र दिया जाता है तथा आपसे यज्ञ व हवन कराया जायेगा तथा गुरु महाराज द्वारा भगवान से यह प्रार्थना की जाती है कि ‘हे प्रभु इस बच्चे को आप अपने दास या दासी के रूप में स्वीकार कीजिए, यह आज से आपका नित्य दास या नित्य दासी है ।’
दीक्षा देने के बाद आपका नाम बदला जाता है अर्थात् आपको एक नया नाम दिया जाता है । नये नाम के पीछे ‘दास’ और ‘दासी’ शब्द भी जोड़ा जाता है । पुरुष के लिए ‘दास’ और महिला के लिए ‘दासी’ शब्द का प्रयोग किया जाता है ।
इस्कॉन के अंदर सभी पुरुषों को ‘प्रभुजी’ शब्द से संबोधित किया जाता है तथा महिलाओं को ‘माताजी’ शब्द से संबोधित किया जाता है ।
आज्ञा का पालन करे, अपने गुरुजी की सेवा करे और कोई भी ऐसा अनुचित कार्य न करे जिससे उसके गुरुजी की आत्मा को कष्ट पहुंचे । दीक्षा के बाद जो अगली प्रक्रिया होती है उसका नाम है भिक्षा –
दीक्षा मिलने के बाद आपको अपने गुरु महाराज के लिए भिक्षा (भीख) मांगनी होती है और भिक्षा में जो भी आपको मिलेगा वह सब आपको अपने गुरु महाराज को दे देना होता है ।
इसके बाद ही आपका तीसरा स्टेप – हरिनाम दीक्षा पूर्ण होता है और गुरु महाराज आपको आधिकारिक रूप से अपने शिष्य के रूप में स्वीकार करते हैं ।
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