वरुण गांधी नई संभावनाओं का केंद्र बन सकते हैं, यदि…..

सांसद वरुण गांधी का राजनीतिक स्वास्थ्य कैसा है? यदि इस पर विचार किया जाए तो वे भीतर ही भीतर अस्वस्थ दिखाई देते हैं। कभी-कभी उनकी अस्वस्थता उनकी बयानबाजी से झलक जाती है, जब वह अपनी पार्टी भाजपा के विरुद्ध मुखर होकर आलोचना करने लगते हैं। फिर कुछ समय बाद लगता है कि उनके सुर धीमे पड़ गए हैं। इस प्रकार वरुण गांधी की राजनीतिक तबीयत किसी अंतर्द्वंद का शिकार लगती है। इसका कारण यह है कि वरुण गांधी जिस पिता की संतान हैं उन संजय गांधी ने अपने यौवन में अप्रत्यक्ष रूप से अपनी मां से शासन सत्ता हाथ में लेकर देश को नेतृत्व दिया था। इस प्रकार वरुण गांधी की नसों में एक खास महत्त्वाकांक्षी पिता का खून दौड़ता है। उनकी दादी ने भी एक महत्वाकांक्षी नेता की तरह देश पर शासन किया है। इतना ही नहीं, उनकी मां मेनका ने भी घर की चारदीवारी के भीतर बंद रहना अच्छा नहीं माना था। मेनका देश की ताकतवर प्रधानमंत्री और अपनी सास इंदिरा गांधी को चुनौती देते हुए उनके राजभवन से बाहर आकर खुली सड़कों पर राजनीतिक गतिविधियों में लग गई थीं।
बस यही कारण है कि यू0पी0 के पीलीभीत से सांसद वरुण गांधी अक्सर अपनी ही पार्टी के विरुद्ध बयानबाजी को लेकर सुर्खियों में बने रहने की कोशिश करते देखे जाते हैं। यद्यपि उनकी मां मेनका गांधी इस समय वस्तुस्थिति को समझ चुकी हैं और उन्हें यह भली प्रकार पता है कि नरेंद्र मोदी के रहते वह अब अपना कोई राजनीतिक अस्तित्व स्थापित करने में सफल नहीं हो सकती।
वरुण गांधी को कभी-कभी निश्चित रूप से कांग्रेस में जाने का विचार भी आता होगा, पर कांग्रेस में जिस प्रकार राहुल की पप्पूगीरी के सामने गांधीगीरी को विदा कर दिया गया है उसके चलते अब वरुण गांधी की स्थिति वहां जाकर भी हास्यास्पद ही बन जाएगी या फिर पार्टी में एक बार भारी तूफान भी आ सकता है। यद्यपि राहुल गांधी वरुण गांधी को अपने साथ लेकर चलने की किसी भी संभावना से इंकार कर चुके हैं। इसका कारण केवल यही है कि राहुल गांधी भी यह भली प्रकार जानते हैं कि उनके सामने वरुण गांधी कांग्रेस में आते हैं तो फिर वह बाजी मार ले जाएंगे। इसका एक प्रमुख कारण यह भी है कि अब देश की जनता कांग्रेस की परंपरागत मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति को कभी भी सहन नहीं करेगी, दोगली बातें और दोगली चालें देश की जनता समझ चुकी है। राहुल गांधी अभी भी इन बातों से हटने को तैयार नहीं हैं,जबकि वरुण गांधी यदि कांग्रेस में आते हैं तो वह कांग्रेस के दोगलेपन और तुष्टीकरण को साफ करने का बड़े स्तर पर अभियान चला सकते हैं। जिसके लिए उन्हें कांग्रेसियों का भी पूर्ण समर्थन प्राप्त हो सकता है। तब राहुल गांधी हाशिए पर होंगे और वरुण सत्ता के केंद्र में होंगे। इस प्रकार राहुल गांधी अपने लिए अपने आप ही आफत नहीं बुला सकते।
कांग्रेस में गए वरुण गांधी को कांग्रेस को फिर से खड़ा करना होगा। जिसके लिए उन्हें कम से कम 2 लोकसभा चुनावों तक प्रतीक्षा करनी पड़ सकती है और यदि परिस्थितियां थोड़ी सी भी विपरीत हो गईं तो उनके लिए सारा खेल बिगड़ भी सकता है।
उनके भीतर नेतृत्व की असीम संभावनाओं को मेरे मित्र स्वर्गीय संदीप कालिया जी बड़ी उम्मीदों के साथ देखा करते थे। इसमें दो मत भी नहीं है कि वरुण गांधी के भीतर असीम संभावनाओं का सागर है, पर इस समय उनकी मां मेनका गांधी बीजेपी से दूर होने के मूड में नहीं हैं।
यही कारण है कि मां मेनका की मानसिकता को समझ कर वरुण गांधी के स्वर इस समय मद्धम पड़ गए हैं। अब उन्होंने बीजेपी के खिलाफ बयानबाजी और ट्वीट करना बंद कर दिया है। कयास लगाए जा रहे हैं सुल्तानपुर से सांसद मां मेनका गांधी के बीजेपी को लेकर दिए गए बयान के बाद पीलीभीत लोकसभा सीट को लेकर चल रही अटकलें साफ हो गई हैं। वरुण गांधी के अपने राजनीतिक कार्यालय के बाहर लगे पोस्टर भी अब इस बात की साक्षी दे रहे हैं जिनमें अब फिर से बीजेपी के वरिष्ठ नेता दिखने लगे हैं।
हमारा विचार है कि वरुण गांधी को इस समय हिंदुत्व के लिए समर्पित होकर काम करना चाहिए। उन्हें हिंदुत्व के पुरोधा के रूप में संपूर्ण देश में अपनी छवि बनाने के लिए कठोर परिश्रम करना चाहिए। उनकी कठोरता और स्पष्टवादिता लोगों को रास आती है। लोग उनमें उसी संजय गांधी की छवि देखते हैं, जिन्होंने शक्ति के साथ शासन करने को वरीयता दी थी और प्रत्येक प्रकार के मुस्लिम तुष्टीकरण को मानने से इंकार कर दिया था। संवैधानिक और लोकतांत्रिक अधिकार प्राप्त करना देश के प्रत्येक नागरिक का अधिकार है, पर अधिकार इतने असीमित और अपरिमित भी नहीं होने चाहिए कि वह दूसरों के लिए घातक बन जाएं। इस दृष्टिकोण को अपनाकर वरुण गांधी को अपनी राजनीतिक यात्रा के अगले सोपानों की खोज करनी चाहिए।
उन्हें अपने लिए किसी एक ऐसे प्रदेश को चुनना चाहिए जहां से वह राजनीति के क्षेत्र में लंबी छलांग लगा सकते हैं मैं अपने आप को सर्वाधिक सहज अनुभव करते हैं। उनकी इस प्रकार की कार्य योजना उन्हें भाजपा में प्रधानमंत्री पद का दावेदार बना सकती है। यद्यपि इसके लिए उन्हें अभी प्रतीक्षा करनी होगी। क्योंकि मोदी जी के बाद भाजपा में कई ऐसे नेता हैं जो उनका स्थान लेने की तैयारी में हैं। इस तैयारी में वरुण गांधी को अभी अपने आप को जुटा हुआ नहीं दिखाना है, यद्यपि जुट जाने की हर योजना पर काम करना है। राजनीति में धैर्य और वाणी पर पूर्ण संयम बहुत महत्वपूर्ण होता है। कहीं पर निगाहें और कहीं पर निशाना साधने की कार्य शैली को विकसित करना होता है।
उन्हें वाणी पर संयम के लिए साधना करनी चाहिए और भाषण की कला में निखार करने के लिए भी परिश्रम करना चाहिए।
वरुण गांधी को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि कांग्रेस नाम की चिड़िया तक से भी देश के लोगों को अब किसी भले की अपेक्षा नहीं है। हिंदुत्व को जितना इस कांग्रेस नाम की चिड़िया ने छला है उतना किसी अन्य ने नहीं ,अब इस बात को देश का जनमानस भली प्रकार जान चुका है।
वरुण गांधी को अपने कठोर परिश्रम के माध्यम से देश के लोगों को यह संकेत और संदेश देने का प्रयास करना चाहिए कि वह भारत के इतिहास के गौरवपूर्ण लेखन के समर्थक हैं । उन्हें यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि वह अपने पिता के नाना नेहरू से हटकर अपने आप को हिंदू होने में गौरवान्वित अनुभव करते हैं।
वरुण गांधी को भारत के वैदिक वांग्मय और वैदिक मूल्यों में विश्वास प्रकट करते हुए सनातन को सुरक्षित और मजबूत करने की दिशा में काम करने के लिए पूरे देश में एक ऐसी टीम खड़ी करनी चाहिए जो इस कार्य में उनका सहयोग कर सके।
वरुण गांधी से अपेक्षा की जाती है कि देश में जिस प्रकार गंगा जमुनी संस्कृति के नाम पर हिंदुत्व का विनाश किया जा रहा है और आर्य संस्कृति को नष्ट करने की हरसंभव चेष्टा की जा रही है, उस पर लगाम लगाने के लिए वह अपने आप को निसंकोच प्रस्तुत करेंगे।
वरुण के पास चिंतन है ,विचारधारा है, सोच है ,महत्वाकांक्षा है और ये सब चीजें राजनीति में बहुत मायने रखती हैं। इनका सदुपयोग करने के लिए बिना समय गंवाए वरुण गांधी को अपने मूल परिवार की कलंकित कार्यप्रणाली से बाहर निकलकर ऊंचा सोचने का प्रयास करना चाहिए। वरुण को सावरकरवादी नीतियों पर चलने में गर्व और गौरव की अनुभूति होनी चाहिए और देश के लोगों को यह बताना चाहिए कि वह सावरकरवादी सोच को ही देश की समस्याओं का एकमात्र समाधान मानते हैं।
जिस प्रकार के संकेतों के साथ वरुण गांधी आगे बढ़ते हैं तो निश्चय ही वह देश के युवा वर्ग को एक सही दिशा दे सकते हैं।
ऐसी सोच, मानसिकता और नीतियों के उपरांत ही वरुण गांधी नई संभावनाओं को केंद्र बनकर उभर सकते हैं।
फिलहाल गांधी को दीवारों से टकराना नहीं है बल्कि दीवारों की ऊंचाइयों को नापने के लिए परिश्रम करना है। दीवारों को गिराना या उनको बिस्मार कर देना सदा ही अच्छा नहीं होता है। हर सिद्धांत के अपवाद होते हैं। कुछ दीवारें ऐसी होती हैं जिनकी ऊंचाई नापनी होती है और शक्ति प्राप्त कर समय आने पर उन्हें लांघना होता है। इसी को छोटी रेखा के समीप बड़ी रेखा खींचना कहा जाता है। उन्हें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि रेखाएं सब छोटी ही होती हैं। बड़ी रेखा खींचने का विकल्प हमेशा खुला होता है।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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