डॉ. जितेंद्र कुमार
हाल के दिनों में किडनी फेलियर के मामले काफी बढ़े हैं, जिसमें कई बार मरीज की जान भी चली जाती है। एक अनुमान के अनुसार, भारत में 15 फीसदी लोग किडनी की बीमारियों से जूझ रहे हैं, लेकिन उन्हें इसका अंदाजा भी नहीं है। देश में हर साल 300000 नए लोग किडनी फेलियर के शिकार होते हैं। इनमें से अधिकांश लोगों की संसाधन और जागरूकता की कमी के कारण असमय मृत्यु हो जाती है। किडनी के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल मार्च के दूसरे गुरुवार को विश्व गुर्दा दिवस के रूप में मनाया जाता है।
जानकारी ही निदान
आज समाज और सोशल मीडिया में बहुत ही भ्रामक जानकारियां दी जा रही हैं। यूरिया और क्रिएटिनिन जांच तक का गलत अर्थ लगाया जाता है। यूरिया और क्रिएटिनिन किडनी में नहीं बनता। ये खानपान या मांसपेशियों से पैदा होते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि कंप्लीट किडनी फेलियर के बावजूद मरीज स्वस्थ रह सकता है, लेकिन डर और अज्ञानता के कारण लोग सही इलाज नहीं कराते। किडनी के फंक्शन और उसकी देखभाल के बारे में सही जानकारी देकर यह डर दूर किया जा सकता है।
हर मनुष्य में दो गुर्दे होते हैं। इनका मुख्य काम है पेशाब का निर्माण। इस क्रम में किडनी शरीर में रोज पैदा होने वाले जहरीले पदार्थ और अतिरिक्त पानी को बाहर निकालती है।
हमारे खानपान में भिन्नता के बावजूद स्वस्थ किडनी शरीर में विभिन्न अवयवों को संतुलित रखती है। किडनी खून के निर्माण, हड्डियों की मजबूती और रक्तचाप नियंत्रण में मुख्य भूमिका निभाती है।
किडनी की बीमारी के लक्षण बहुत अस्पष्ट होते हैं, जैसे- कमजोरी, बदनदर्द, खून की कमी, उच्च रक्तचाप, अपच, सूजन और मूत्रमार्ग में परेशानी। बहुत बार मरीज इन शुरुआती लक्षणों को समझ नहीं पाते और गैस या दर्द की गोली खाकर समय नष्ट करते रहते हैं।
मधुमेह, उच्च रक्तचाप, गठिया, कैंसर, मूत्रमार्ग में रुकावट, किडनी की पथरी, प्रोस्टेट, वृद्धावस्था, मोटापा और पाश्चात्य जीवन शैली का गलत अनुकरण किडनी की बीमारी की आशंका बढ़ा देता है।
किडनी फंक्शन टेस्ट में खून में यूरिया, क्रिएटिनिन, सोडियम, पोटैशियम, कैल्शियम, फॉस्फोरस की जांच होती है। ध्यान रहे कि यूरिया क्रिएटिनिन लेवल तभी बढ़ता है, जब किडनी 50 फीसदी से भी ज्यादा क्षतिग्रस्त हो जाती है।
अत्यधिक परहेज कर वजन और मांसपेशियों को क्षीण कर दें तो यूरिया और क्रिएटिनिन का लेवल कम हो जाएगा। पर इसका मतलब यह नहीं कि किडनी ठीक हो गई। इसलिए आजकल GFR को नापते हैं।
पेशाब में प्रोटीन और खून का आना किडनी की बीमारी का शुरुआती लक्षण है। अल्ट्रासाउंड से किडनी और मूत्रमार्ग की बनावट का पता चलता है। जरूरत पड़ने पर न्यूक्लियर स्कैन, सीटी स्कैन, MRI आदि होता है।
अधिकांश बीमारियां समय रहते इलाज से ठीक हो जाती हैं। अगर बीमारी पुरानी और क्रॉनिक हो जाती है तो भी कमजोर किडनी को गुर्दा रोग विशेषज्ञ लंबे समय तक संभाल सकता है।
किडनी का कामकाज कृत्रिम रूप से भी चलाया जा सकता है, जिसे रीनल रिप्लेसमेंट थेरेपी कहते हैं। डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांट भी कामयाब हैं।
बदलें जीवनशैली
संक्षेप में कहें तो किडनी की बीमारियों से बचने के लिए जीवनशैली में बदलाव लाएं। जीवन में योग को अपनाएं। कसरत ज्यादा करें और खानपान के प्रति सजग रहें। खानपान में अत्यधिक प्रोटीन कहीं ना कहीं किडनी के लिए हानिकारक है। धूम्रपान और बाकी गलत आदतें भी किडनी के हानिकारक हैं। आजकल जो लोग नीम-हकीमी में दर्द की गोली या एंटीबायोटिक लेते हैं, वह किडनी को नुकसान पहुंचाती है। नीम-हकीमों को छोड़ यह बीमारी होते ही ढंग के डॉक्टर के संपर्क में आ जाएं तो किडनी ठीक भी हो सकती है। अगर किडनी कमजोर हो तो एक नैफ्रोलॉजिस्ट इस किडनी को ज्यादा चला सकता है। यहां तक कि फेल होने पर भी उसे चलाने के लिए उसके पास पूरे इंतजाम होते हैं।
(लेखक वरिष्ठ नैफ्रोलॉजिस्ट हैं)