आतंकवाद भारत की ही नहीं, अपितु आज विश्व की एक बड़ी समस्या बन चुका है। सही अर्थों में मानव समाज की यह बुराई मानव के दानवी स्वरूप की सनातन परंपरा का अधुनातन स्वरूप है। विश्व के पिछले दो हजार वर्ष के इतिहास को यदि उठाकर देखा जाये तो जिन लोगों ने ईसाइयत और इस्लाम के नाम पर विश्व में रक्तपात किया-वह भी उस समय आतंकवाद का ही एक भयानक स्वरूप था।
उस भयानक स्वरूप ने यूनान, मिश्र और रोम सहित बेबीलोनिया की संस्कृतियों को लील लिया। इसी प्रकार भारत, चीन और रूस जैसे राष्ट्रों की संस्कृतियों को बुरी तरह प्रभावित किया गया। आतंकवाद के इसी भयानक स्वरूप ने विश्व को खेमों में विभाजित किया। राष्ट्रों को पराधीन किया। कुछ लोग शासक (शोषक) बन गये तो कुछ शासित (शोषित) बन गये। ‘राजधर्म’ निजी महत्वाकांक्षाओं और अहम भाव की सरणि में ऐसे बह गया जैसे मानो था ही नही। ‘शासक’ लुटेरे हो गये और ‘लुटेरे’ शासक हो गये। फलस्वरूप उपनिवेशवाद का क्रूरतम काल आ गया। जिसकी परिणति हमें दो विश्व युद्घों के रूप में देखने को मिली।
विश्व के राष्ट्रों और शासकों ने अपनी मूर्खता को समझा। उन्हें इस बात की अनुभूति हुई कि व्यक्ति और राष्ट्र की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का हनन जब किया जाता है, तो उसके कितने घातक परिणाम सामने आते हैं? इसलिए सबने मिलकर यूएनओ का गठन किया और एक दूसरे की सम्प्रभुता और स्वतंत्रता का सम्मान करने का वचन दिया।
वे करोड़ों लोग जो दो विश्वयुद्घों में मारे गये थे, उनकी आत्मा की मौन पुकार को सुनकर जो सराहनीय कार्य हुए उससे लगा कि संभवत: मानवता विजयी हो गयी है। एक दूसरे राष्ट्र को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति और मानवीय स्वभाव में छिपी हुई दानवी प्रवृत्ति दोनों पर प्रतिबंध लग गया है। युद्घ अब संभवत: बीते दिनों की बात हो गयी है। लेकिन पिछले वर्षों में जिस प्रकार आतंकवाद की समस्या से विश्व को जूझना पड़ा है अथवा जूझना पड़ रहा है, उसने एक बार पुन: सिद्घ कर दिया है कि मानव का दानवपन उसके भीतर आज भी उपस्थित है। वह उसका सनातन शत्रु है, जो उसका पीछा कर रहा है। संभवत: तब तक करता भी रहेगा जब तक कि प्रत्येक मानव अपने मानव धर्म में प्रतिष्ठित न हो जाए। आतंकवाद का जहां तक भारत से संबंध है तो यहां के वर्तमान राजनीतिज्ञों ने इस देश की जनता को वास्तविकता से परिचित न होने देने का पूरा प्रबंध किया हुआ है। इनके रहते हुए आप आतंकवाद की वास्तविक समस्या से न तो अवगत हो सकेंगे और न ही मुक्त हो सकेंगे, क्योंकि ये आपको बताएंगे, कुछ रटे रटाये वाक्य यथा-
”भारत में आतंकवाद की वास्तविक समस्या का मूल कारण अशिक्षा और बेरोजगारी है।”
इस वाक्य को सुनते-सुनते लोगों के कान तक पक चुके हैं। किंतु राजनीतिज्ञ नाम का यह तोता हर प्रकार के अवसरों पर विचार गोष्ठियों में, संसद में, सभाओं में इसी रट को लगाये रहता है। आप सुनकर चाहे उसे गाली दें, अथवा कुंठित हों किंतु उसे सुनाने के लिए आपको सुनाना है, और गाड़ी में बैठकर फुर्र हो जाना है। पाकिस्तान का जन्म भी इस मूर्खता का परिणाम था कि हमने इतिहास के तथ्यों को और मजहब की घृणा की परिणति की स्वाभाविकता को समझकर भी नहीं समझा था। आज पुन: वही हो रहा है, क्योंकि गांधीवाद तो आज भी जीवित है, जो हमें यही बताता है कि सत्य को सत्य मत बोलो, मत समझो, मत जानो। गांधी के तीनों बंदर यही कहते थे और कह रहे हैं, और उस समय तक कहते रहेंगे-जिस समय तक यह गांधीवाद इस देश में जीवित रहेगा।
ऐसी भ्रांत धारणाएं देश और समाज को विकास की ओर न ले जाकर विनाश की ओर ले जाती हैं। भारत के बारे में यदि चिंतन करें तो पिछले साठ वर्षों में हमारे भीतर आई सामाजिक विकृतियों और राजनीतिक कुव्यवस्था के फैलने का कारण केवल यही है कि हमने ऐसी भ्रांत धारणाओं को अपने बीच न केवल पनपने दिया है, अपितु उन्हें सत्य और सार्थक मानकर उनकी पूजा भी की है।
(लेखक की पुस्तक ‘वर्तमान भारत में भयानक राजनीतिक षडय़ंत्र : दोषी कौन?’ से)
मुख्य संपादक, उगता भारत