जब बैंक के पास जो पैसा होता है वो जब कर्ज के रूप में बाहर चला जाये और फिर वापिस न आ पाए। ये सामान्य सा नियम है।
ऐसा ही हुआ अमेरिका के 16वें सबसे बड़े बैंक SVB के साथ। यह सिलिकॉन वैली बैंक नए स्टार्ट अप्स को लोन देता था। साथ ही बड़े स्टार्ट अप्स कम्पनियों को उनके बांड्स के बदले लोन देता था। अब हुआ यूं कि अमेरिका के स्टार्ट अप्स तो डूबे ही लेकिन बड़े बड़े टेक कम्पनियों के डूबने के दिन भी शुरू हो गए। इसके संकेत आपने तब देखने शुरू कर दिए थे जब इन कम्पनियों ने घाटे से उभरने को छंटनी करनी शुरू कर दी थी। नतीजा ये हुआ कि जो बांड्स पर बैंक ने पैसे कम्पनियों को दे दिए थे उसकी भरपाई बैंक नही कर पाया। यानि कर्ज जो दिया सो दिया, इन्वेस्टमेंट जो किया था वहां से भी पैसा डूब गया।
नतीजा बैंक के मालिक अपने शेयर बेच गए और एक दिन में ही बैंक के शेयर 70% डूब गए और अब बैंक बन्द हो रहा है। यह करीब 210 अरब डॉलर का बैंक था जिसकी वैल्यू 147 अरब डॉलर डूब गई। इससे जिनकी नौकरी आदि गयी ही लेकिन जिनका पैसा इस बैंक में था वो भी चला गया और अमेरिका में कोई नियम नही है कि जनता का पैसा सरकार भरपाई करे। मजे की बात ये है कि इस बैंक को फोर्ब्स जैसे बेस्ट बैंक और रेटिंग एजेंसियां टॉप रेटिंग हफ्ते भर पहले तक दे रही थी। ये औक़ात है इन पश्चिमी रैंकिंग देने वाली संस्थाओं की जिनकी रैंकिंग पर ये भारत को बताते हैं कि यहां कितनी भूखमरी है या कितना लोकतंत्र बचा है।
अब मुद्दे की बात कि 2016 में नोटबन्दी न होती तो ये हाल आप भारत के बैंकों का देखते और आप बर्बाद हो चुके होते। उस समय तक बैंकों का 52 लाख करोड़ कर्ज में बांटा जा चुका था जिसमें से करीब 10 लाख करोड़ से ऊपर NPA हो गया था। बैंक ICU में थे और नई सरकार पर उनके अधिकारी दबाव डाल रहे थे कि पुरानी सरकार के बंदरबांट पर आप स्वेतपत्र जारी कर दीजिए वरना इसका दोष आप पर आ जायेगा। मोदी सरकार ने ऐसा करने से मना कर दिया क्योंकि इससे निवेशक डर जाते और साथ ही सड़को पर आम जनता की अफरातफरी मच जाती और भारत को खुद को दिवालिया घोषित करना पड़ता।
इसकी जगह सरकार नोटबन्दी करती है और सारा कैश बैंकों का वापिस कराया जाता है जिससे बैंकों को ऑक्सीजन मिल सके। जितना पैसा आता है उसमें से संदिग्ध पैसा होल्ड कर दिया जाता है और समय के साथ और उसपर टैक्स लगा उन लोगों का वापिस होता है जो अपनी समांतर अर्थव्यवस्था चला रहे थे। बाकी एंगल अलग थे नोटबन्दी के लेकिन फिलहाल इसपर ही बात जारी रखेंगे। इस तरह सारा कैश जिसमें से 70% बैंकिंग सिस्टम में कभी वापिस आया ही नही था वो वापस आ जाता है। बैंक फिर से मजबूत होना शुरू होते हैं क्योंकि अब उनके पास पैसा था। जनता लाइन में खड़ी होती है लेकिन एक भरोसे के साथ कि हमारी भलाई के लिए सरकार ने कुछ किया है। हालांकि उन्हें इस बात का अंदाजा तक नही था कि वो फाइनेंसियल बारूद के किस मुहाने पर खड़े कर दिए गए थे। इसके बाद नए नए कानून बनाये जाते हैं जिसमें इंसोल्वेंसी कानून सबसे मुख्य था। बैंक अपना NPA भी वसूलना शुरू करते हैं जो अब तक 8 लाख करोड़ वसूल कर गए हैं। आज बैंक इस हालत में है कि हजारों करोड़ का प्रॉफिट हर क्वार्टर में दे रहे हैं। इस तरह भारत के बैंकों को एक नोटबन्दी ने बर्बाद होने से बचा लिया। नया कानून भी बना जिसमें 5 लाख तक का कैश यदि किसी बैंक से जनता का डूबता है तो सरकार उसकी भरपाई करेगी जिससे 99% बैंकों से जुड़े लोग भी कवर हो गए। बैंकों को मजबूत करने को उनके मर्जर का भी काम शुरू कर दिया गया जिससे बड़ा झटका सहने की ताकत उनपर आये। कांग्रेस की फोन बैंकिंग (नेताओं के फोन) बंद हो गए जिससे माल्या या चौकसी जैसों को फोन पर ही लोन मिलने बन्द हो गए और पुराना लोन न चुका पाने से वो भाग गए लेकिन नए कानूनों ने उनकी विदेशों तक कि संपति जब्त कर लोन से ज्यादा वसूली कर ली, अब बस उनको उनकी सजा दे जेल भेजने तक का ही मुद्दा बचा है और ये सब भगोड़े हैं। आज इंसान भाग सकता है लेकिन बैंकों का पैसा धरती के किसी भी कोने से वसूलने की ताकत इन बैंकों को सरकार ने दे दी है।
अब वापिस आते हैं SVB पर… इस बैंक के पास ये अधिकार थे ही नहीं क्योंकि अमेरिका में ऐसे कानून ही नही है। वहां तो आम लोन देने के लिए भी वो कुछ गिरवी नही रखते हैं। इसलिए वहां क्रेडिट कार्ड लोगों के पास चिल्लर से ज्यादा पड़े होते हैं। अब इनका इतना बड़ा बैंक डूब गया। जाहिर है आने वाले समय मे अन्य बैंक भी प्रभावित होंगे और इसका असर ये हुआ कि कल दुनिया भर के शेयर मार्केट डूब गए। और सोमवार को जब खुलेंगे तब भी वापिस ये सिलसिला जारी रहेगा।
शेयर मार्केट डूबने से याद आया कि भारत का शेयर मार्केट इसी तरह अडानी के जरिये डुबाने का प्लान इसी अमेरिका की रिसर्च कम्पनी कर रही थी लेकिन अपने देश के बैंक पर वो रिसर्च न कर सकी क्योंकि अमेरिकी कानूनों ने उसे ऐसा करने से बैन कर रखा है और उसका टारगेट भी अडानी था नाकि अपने देश की संस्थाएं। यही हमला करवाकर फिर SBI और LIC को टारगेट करना था कि इनका पैसा भी डूब गया यानि जनता को इन्हें जमा कराया पैसा डूब गया जिससे जनता सड़को पर आती जैसा इस समय अमेरिका में आ रखी है। लेकिन एक तो इन्होंने अडानी को कच्चा खिलाड़ी समझ लिया था और दूसरा इन्होंने भारत के नए सिस्टम की स्टडी ठीक से नही की थी जिससे ये पता नही लगा पाए कि SBI हो या LIC दोनों का अडानी को एक्सपोजर 1% भी नही था और जो लोन भी था वो अडानी के हार्ड एसेट्स को गिरवी रख कर था नाकि किसी बांड पर। इन फर्जी रेटिंग एजेंसियों ने भी अडानी की रेटिंग्स गिराई जिससे उसे और ज्यादा नुकसान हो लेकिन अडानी ने न एक कर्मचारी निकाला बल्कि अपना FPO भी लौटाया और अपने लोन भी समय से पहले क्लियर कर रहा है। ये फर्क है किसी भारतीय अडानी और भारतीय सिस्टम का जो अमेरिका में है ही नही क्योंकि जैसा अमेरिका देश के नाम पर खोखला है वैसे ही उसका सिस्टम भी है।
इसलिए समझदारी कहती है कि निवेश करना है तो भारत पर कीजिये। भारत की कम्पनियों पर कीजिये। ये फैंसी अमेरिकी कम्पनियां आज है तो कल नही हैं। ये अडानी पर ओवरप्राइस होने का आरोप लगाती हैं लेकिन खुद इन्होंने जो ट्रिलियन-बिलियन डॉलर का मार्केट कैप दिखा रखा है इसके सामने तो अडानी साधु आदमी लगता है। कल को इनका मार्केट कैप क्रेश होगा तो इन्हें जिन जिन बैंकों या फाइनेंशियल इंस्टिट्यूशन ने पैसा दिया है सब बर्बाद हो जाएंगे। और इनके पास इससे उभरने को कुछ है भी नहीं। वैसे भी अमेरिका का कर्ज 34 ट्रिलियन पार कर चुका है जो उसकी नेशनल सेविंग से भी पार हो चुका है।
आज अमेरिका भी बारूद के ढेर पर खड़ा है और उसका नेतृत्व बड़े घटिया लोग कर रहे हैं जैसा कभी यहां कांग्रेस ने भारत को बर्बाद करकर छोड़ ही दिया था और आज दूसरों को चोर बताते हैं जैसा बाइडन की पार्टी दूसरों को बताती थी और सत्ता में आने के बाद खुद का लौंडा हंटर बाइडन ही यूक्रेन और चीन में इलीगल निवेश में आरोपी बना हुआ है और उसका बाप उसे बचाने में लगा है, देश को नहीं। इसलिए चोरों की बातों में न आएं क्योंकि विपक्ष में रहते हुए भौंकना आसान होता है और सत्ता मिलते ही किस तरह 12 लाख करोड़ का घोटाला यही चोर कर डालते हैं, आप जानते ही हैं। फिर देश बर्बाद हो तो हो।