इन नेताओं को कौन समझाये कि भारत में आतंकवाद की समस्या का मूल कारण अगर ‘अशिक्षा’ और बेरोजगारी होती तो भारत में क्रांति होती। सारे भूखे और बेरोजगार अशिक्षित संसद की ओर कूच करते, हमारे राजभवनों को आग लगाते, बैंक खातों में जमा धनराशि का हिसाब लेते और अपने अधिकारों का सम्मान करने वाले लोगों को अपना शासक नियुक्त कर देते। किंतु भारत में ऐसा संभव नहीं। क्योंकि ये लोग परंपरागत रूप से राजा को भगवान मानने वाले लोग हैं।
ये सभी आध्यात्मिक लोग हैं जो अपने भगवान के विरूद्घ विद्रोह करना जानते ही नहीं। इसलिए इनका जीवन और वर्तमान शासन दोनों यहां राम नाम पर चल रहे हैं। भारत के इन परम्परावादी लोगों ने अनेकोंसम्राटों का दीर्घकालीन युग भी देखा है और छोटे-छोटे रजवाड़ों के रूप में सैकड़ों राजाओं का काल भी देखा है। स्वतंत्रता से पूर्व यहां 563 देशी रियासतें थीं, जिन्हें इस जनता ने सभी को देवता समझकर शीश झुकाया है। इसलिए यह इन आधुनिक राजाओं को भी शीश ही झुका रही है, चाहे ये स्वयं ही आतंकवादी क्यों न हो जायें।
आतंकवाद का यथार्थ-वस्तुत: आतंकवाद अशिक्षा और बेरोजगारी से जुड़ी हुई समस्या नहीं है, अपितु मानव के भीतर छुपी हुई उस कलुषित भावना की प्रतिनिधि मानवी दुष्प्रवृत्ति है जो वर्ग, जाति और सम्प्रदाय जैसी संकीर्ण मानसिकता से जन्म लेती है। जनसाधारण में अशिक्षित लोगों को आप देखें, वह अपनी दो जून की रोटी के जुगाड़ में तेली के बैल की भांति अपनी गृहस्थी की छोटी सी दुनिया में ही चक्कर लगाते-लगाते दम तोड़ देते हैं।
आतंकवाद के विषय में यह एक कुख्यात तथ्य है कि झोंपडिय़ों में बैठकर ऊंची अट्टालिकाएं विध्वंस करने की योजनाएं कभी नहीं बना करती हैं, हां ऊंची अट्टालिकाओं में बैठकर झोंपड़ी में आग लगाने की योजनाएं अवश्य बना करती हैं। लाशों की गिनती पर राजनीति करने वाले राजनीतिज्ञ इसी चरित्र के प्रतिनिधि पुरूष हैं।
इतिहास में जितने क्रूर, अत्याचारी शासक हुए हैं उन्होंने झोंपड़ी में आग जलाई, किसी एक संप्रदाय पर अत्याचारों की एक ऐसी क्रूर और भयानक आंधी चलाई कि आज भी उधर देखने मात्र से ही मर्मान्तक पीड़ा अनुभव होती है। इतिहास की कब्र में दफन ये शासक न तो अशिक्षित और बेरोजगार थे और न आज ही इनके प्रतिनिधि अशिक्षित और बेरोजगार हैं।
कश्मीरी पंडितों पर कहर : कश्मीर में एक वर्ग और संप्रदाय के लोगों को चुन-चुन कर मारा जा रहा है। उनकी संपत्ति पर बलात् नियंत्रण किया जा रहा है। पूर्वोत्तर भारत में ईसाइयत की आग से हिंदुत्व के ‘वन’ को समाप्त किया जा रहा है, जलाया जा रहा है। पंजाब आतंकवाद की मर्मभेदी पीड़ा से गुजरा है, देश के सीमावर्ती क्षेत्रों में राष्ट्र की विघटनकारी शक्तियां सक्रिय हैं। इन सबके संगठन हैं और उन संगठनों के इनके अपने संरक्षक हैं। इन सबके तार विदेशों से हिल रहे हैं। वहां से प्रशिक्षण मिल रहा है, हथियार मिल रहे हैं। कौन हैं ये संगठन जो हथियार दे रहे हैं? क्या ये सभी अशिक्षित और बेरोजगार हैं?
आतंक एक रणनीति : इनकी योजनाएं, इनकी सोच, कार्य को करने की रणनीति क्या अशिक्षा की ओर हमारा तनिक सा भी ध्यान आकृष्ट करती हैं? कदापि नहीं। क्या अमेरिका में जाकर-‘वल्र्ड टे्रड सेंटर’ पर सफलतापूर्वक हमला एक अशिक्षित व्यक्ति कर सकता था?
इन्हीं प्रश्नों को यदि हम विस्तार दें और अपने देश की संसद, जम्मू कश्मीर की विधानसभा और अक्षरधाम मंदिर पर हमले की लंबी श्रंखला को इसके साथ जोडक़र देखें तो स्पष्ट होगा कि इन सबके पीछे जो मस्तिष्क कार्य कर रहा था वह अशिक्षित का मस्तिष्क तो कदापि नहीं था। इसके उपरांत भी हमारे नेता आतंकवाद को अशिक्षा और निर्धनता से जोड़ देते हैं। इसका अभिप्राय है कि देश के सीधे-सादे अशिक्षित और निर्धन लोग ही देश को आतंकवाद की भट्टी में झोंकने के लिए उत्तरदायी हैं।
(लेखक की पुस्तक ‘वर्तमान भारत में भयानक राजनीतिक षडय़ंत्र : दोषी कौन?’ से)