इस्कॉन का सच*
Dr DK Garg
ये सीरीज पांच भागों मे है ,कृपया अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दे और अन्य ग्रुप में शेयर करे।
भाग /एक
इस्कॉन क्या है?
इस्कॉन हिंदी का शब्द नही है ये अंग्रेजी के International Society for Krishna Consciousness – ISKCON; उच्चारण : इंटर्नैशनल् सोसाईटी फ़ॉर क्रिश्ना कॉनशियस्नेस् -इस्कॉन), से बना है। जिसका यदि हिंदी रूपांतरण करे तो यह अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ होगा परंतु केवल अंग्रेजी का संक्षिप्त नाम इस्कॉन ही प्रयोग होता है ,अधिकांश इस्कॉन के अनुयाई व अन्य लोग ये शायद नही जानते।
इस्कॉन को “हरे कृष्ण आन्दोलन” के रूप में १९६६ में न्यूयॉर्क नगर में भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद ने प्रारम्भ किया था। तेजी से बड़ रही संस्था ने एक विशाल रूप ले लिया है और देश-विदेश में इसके अनेक मंदिर और विद्यालय है।
वैसे तो इस्कॉन की शुरुआत हिंदू धर्म के प्रचार प्रसार के रूप में दिखाई दी लेकिन हिंदू धर्म का सहारा लेकर एक अलग से इस्कॉन पंथ सुरु हो चुका है,जिसकी अलग मान्यताएं है,अलग पूजा पद्धति है और यहां तक कि भगवद गीता भी अलग तरह से और अलग भावार्थ के साथ इस्कॉन में पढ़ी जाती हैं।
इस्कॉन धर्म के चार स्तम्भ
– तप, शौच, दया तथा सत्य हैं।
इसी का व्यावहारिक पालन करने हेतु इस्कॉन के कुछ मूलभूत नियम हैं।
तप : किसी भी प्रकार का नशा नहीं। चाय, कॉफ़ी भी नहीं।
शौच : अवैध स्त्री/पुरुष गमन नहीं।
दया : माँसाहार/ अभक्ष्य भक्षण नहीं। (लहसुन, प्याज़ भी नहीं)
सत्य : जुआ नहीं। (शेयर बाज़ारी भी नहीं)
उन्हें तामसिक भोजन त्यागना होगा (तामसिक भोजन के तहत उन्हें प्याज, लहसुन, मांस, मदिरा आदि से दूर रहना होगा)
अनैतिक आचरण से दूर रहना (इसके तहत जुआ, पब, वेश्यालय जैसे स्थानों पर जाना वर्जित है)
एक घंटा शास्त्राध्ययन(इसमें गीता और भारतीय धर्म-इतिहास से जुड़े शास्त्रों का अध्ययन करना होता है)
इस्कॉन का महामंत्र
‘हरे कृष्णा-हरे कृष्णा’ नाम की १६ बार माला करना होती है।
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