डॉ. वेदप्रताप वैदिक
दिल्ली राज्य के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को गिरफ्तार कर लिया गया है। उन पर आरोप है कि उन्होंने दिल्ली के शराब-विक्रेताओं से लगभग 100 करोड़ रु. खाए हैं। भ्रष्टाचार के आरोप में आप पार्टी के वित्त मंत्री सत्येन्द्र जैन पिछले कई महीनों से जेल काट रहे हैं। सिसोदिया पर भ्रष्टाचार के आरोप की जांच प्रवर्तन निदेशालय कर रहा है। उसने दिल्ली सरकार के कई अफसरों, शराब व्यापारियों और दलालों के पहले से जेल में डाल रखा है। निदेशालय ने इन लोगों के घरों ओर मोबाइल फोनों पर छापे मारकर कुछ तथाकथित ठोस प्रमाण भी जुटाए हैं लेकिन मनीष सिसोदिया के घर और बैंक में की गई तलाशियों में निदेशालय को अभी तक कुछ हाथ नहीं लगा है। फिर भी उन्हें गिरफ्तार इसलिए किया गया है क्योंकि उनका एक सहयोगी ही प्रवर्तन निदेशालय की शरण में चला गया है और उसने सब रहस्य खोल दिए हैं।
जाहिर है कि प्रवर्तन निदेशालय केंद्र सरकार के इशारे के बिना यह कार्रवाई क्यों करता? यह तो सबको पता है कि यदि आपको राजनीति करनी है तो भ्रष्टाचार ही शिष्टाचार है, इस सिद्धांत को आपको सबसे पहले मानना पड़ेगा। इस तथ्य का मुझे अब से 65 साल पहले ही पता चल गया था, जब इंदौर में 1957 के चुनाव में मैं एक स्थानीय उम्मीदवार के लिए भाषण देते हुए शहर में घूमता फिरता था। केजरीवाल और सिसोदिया तो क्या, यदि गांधी और विनोबा भी चुनावी राजनीति में उलझ जाते तो उन्हें भी मजबूरन वही करना पड़ता, जो सभी नेता आजकल करते हैं। देश में एक नेता भी किसी पार्टी में आपको ऐसा नहीं मिल सकता जो शपथपूर्वक यह कह दे कि उसने कभी भ्रष्टाचार नहीं किया है। जब चुनावों में करोड़ों-अरबों रुपए खर्च होते हैं तो इतना पैसा आप कहां से लाएंगे? कई पार्टियों के शीर्ष नेताओं को मैंने स्वयं देखा है, अपने उम्मीदवारों से यह कहते हुए कि तुम इतने करोड़ रुपए पहले लाओ, फिर तुम्हें टिकिट मिलेगा। सरकार के कई बड़े अफसर और यहां तक न्यायाधीशों ने, जो कभी मेरे सहपाठी रहे हैं, मुझसे कहा है कि हमें पैसा खाने के लिए मजबूर किया जाता है, हमारे नेताओं द्वारा! कई खास-खास पदों पर कई चुनिंदा लोगों की नियुक्ति भी इसीलिए की जाती है।
वर्तमान मोदी सरकार यदि नेताओं और अफसरों के भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए ये छापे और गिरफ्तारियां कर रही है तो मैं इसका पूर्ण समर्थन करता लेकिन यह तब होता जबकि ये छापे भाजपा के मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों और अफसरों पर भी पड़ते। यदि वे निर्दोष होते तो भाजपा की छवि और ज्यादा चमक जाती। जो कार्रवाई बी.बी.सी., पवन खेड़ा और मनीष सिसोदिया वगैरह के खिलाफ हुई है, वही कार्रवाई गौतम अडानी के खिलाफ क्यों नहीं हुई? अगर हो जाती तो दूध का दूध और पानी का पानी सामने आ जाता। इसमें शक नहीं है कि आम आदमी पार्टी भाजपा के लिए इस समय बड़ी चुनौती नहीं है लेकिन इस तरह के छापे डलवाकर आप पार्टी के प्रति भाजपा सहानुभूति की लहर उठवा रही है। कोई आश्चर्य नहीं कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी कुछ दिनों बाद अंदर भेज दिए जाएं लेकिन ऐसी कार्रवाइयां एकतरफा होती रहीं तो यह भाजपा के लिए 2024 के चुनाव में बड़ा सिरदर्द बन सकती है।