‘गुदड़ी का लाल’ पहुंचा रायसीना हिल्स
महामति चाणक्य ने बड़ा सुंदर कहा है कि राजा दार्शनिक और दार्शनिक राजा होना चाहिए। जिस देश में ऐसी परम्परा स्थापित हो जाती है उस देश में लोकतंत्र जीवित रहता है और लोगों के लोकतांत्रिक अधिकार भी बने रहते हैं। इतना ही नहीं राजा के दार्शनिक और दार्शनिक के राजा होने के कारण देश के लोगों का बौद्घिक विकास और देश की वैज्ञानिक उन्नति भी निरंतर होती रहती है। सचमुच महामति चाणक्य के इस सूत्रवाक्य का बहुत गहरा अर्थ है जो हमारी राजनीति और सामाजिक चेतना को झंकृत करने और उसे सदैव सजीव बनाये रखने के लिए पर्याप्त है।
आज देश ने बहुत बड़ा निर्णय लिया है, जब देश के राष्ट्रपति भवन में देश की मूल चेतना को छूकर चलने वाला और उसी चेतना में पला बढ़ा एक ‘गुदड़ी का लाल’ पहुंचा है। देश के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद सचमुच ऐसे ही सांस्कृतिक और दार्शनिक विचारधारा के व्यक्ति हैं, जिनके कदमों से राष्ट्रपति भवन जो कि हमारी गणतांत्रिक परम्पराओं का गौरवमयी प्रतीक है, धन्य हो गया है। श्री रामनाथ कोविंद ईश्वरभक्त व्यक्ति हैं। हमारा मानना है कि एक ईश्वरभक्त व्यक्ति ही मानवीय संवेदनाओं को समझ सकता है और प्राणीमात्र के प्रति अपने राष्ट्रीय कत्र्तव्यों का पूर्ण निष्ठा से निर्वाह कर सकता है। आज श्री कोविंद ना तो दलित रहे हैं और ना ही किसी पार्टी के पदाधिकारी या कार्यकर्ता रहे हैं, वह आज किसी विशेष विचारधारा से जुड़े हुए भी नहीं रहे हैं, अपितु आज वह सारी संकीर्णताओं से ऊपर उठकर राष्ट्र के प्रथम नागरिक बन गये हैं। उनका प्रथम नागरिक बनना इस बात का प्रतीक है कि उनके पीछे खड़ा संपूर्ण राष्ट्र उनकी वैचारिक ऊर्जा और ऊंचाई से लाभान्वित होगा।
यह बहुत ही प्रसन्नता का विषय है कि श्री कोविंद अपने उत्तरदायित्व के प्रति पूर्णत: समर्पित हैं, और वह जानते हैं कि उन्हें जिस जिम्मेदारी का निर्वाह करने के लिए समग्र राष्ट्र ने चुना है उसकी गरिमा और महिमा क्या है? एक झोंपड़ी से निकलकर चलने वाले धरती के इस लाल ने बिहार के राजभवन को सुशोभित करते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि उनके लिए राजभवन में रहते हुए पार्टी और पार्टी की विचारधारा पीछे रह जाती हैं। उनकी इस महानता के कारण ही नीतीश कुमार ने उनका साथ देना श्रेयस्कर समझा।
देश के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविन्द ने अपने पहले भाषण में बहुत ही भावुक शब्दों का चयन किया और उन्होंने बहुत शान्त रहकर अपने बचपन की उन यादों को देश के लोगों के साथ सांझा किया है जब वह बारिश के मौसम में अपने टूटी झोंपड़ी के नीचे अपने बहन भाइयों के साथ किसी एक कोने में जाकर खड़े हो जाते थे, जिससे कि बारिश से बचा जा सके। एक ऐसा बच्चा जो बचपन में अपनी टूटी झोंपड़ी में अपने शेष बहन-भाइयों के साथ इधर-उधर छुुपने का प्रयास करता हो उसे भी भारत का गणतंत्र भारत के राष्ट्रपति भवन अर्थात रायसीना हिल्स पर पहुंचने का अवसर प्रदान करे-तो इससे अधिक प्रसन्नता का विषय कोई हो नहीं सकता। भारत के लोकतंत्र और गणतंत्र की यह सबसे बड़ी विजय है।
श्री कोविन्द भारतीय संस्कृति के जिन शाश्वत मूल्यों के प्रति समर्पित रहे हैं-आज उनका प्रकाश राष्ट्रपति भवन में फैलाने के लिए देश ने उन्हें एक महान अवसर उपलब्ध कराया है। श्री कोविन्द की यह महानता है कि उन्होंने राष्ट्रपति का चुनाव जीतने के पश्चात अपने कई पूर्ववर्ती राष्ट्रपतियों का सम्मानपूर्ण स्मरण किया। ऐसा करके उन्होंने यह स्पष्ट करने का प्रयास किया कि वह भारतीय गणतंत्र की गरिमामयी और गौरवमयी परम्पराओं के निर्वाह में अपने प्रत्येक पूर्ववर्ती का अनुगमन करना चाहेंगे। श्री कोविन्द को कुछ लोग आरएसएस की विचारधारा से जुड़ा होने के कारण कमतर आंकने का प्रयास कर रहे हैं। वास्तव में ऐसे लोग श्री कोविन्द जैसे भद्रपुरूष के साथ अन्याय कर रहे हैं, साथ ही उन्हें यह भी पता होना चाहिए कि आरएसएस इस देश की मूल संस्कृति से जुड़े संस्कारों को पोषित करने वाला संगठन है। भारत का संविधान भारत की इस संस्कृति को वैश्विक संस्कृति बनाने के लिए कृतसंकल्प है। अत: श्री कोविन्द जैसे व्यक्तित्व को यदि आरएसएस ने अपने सांचे में ढालकर राष्ट्रसेवा के लिए आगे बढ़ाया है तो इसके समस्त राष्ट्र को इस संगठन का ऋणी होना चाहिए। श्री कोविन्द के विषय में हम यह कह सकते हैं कि वह कई अर्थों में अपने पूर्ववर्तियों से अलग सिद्घ होंगे। उनका यह स्वरूप पूर्णत: सकारात्मक ऊर्जा देने वाला होगा और राष्ट्र के लिए कल्याणकारी भी होगा। उनका हिन्दुत्व इतना सौम्य और शालीन है कि वह ‘सबका साथ और सबका विकास’ में विश्वास रखने वाला है और इसी विश्वास के साथ वह कुछ नई परम्पराओं को हिन्दुत्व के नाम पर स्थापित कर सकते हैं। विश्व की सबसे सुंदर और सबसे उत्तम संस्कृति अर्थात वैदिक संस्कृति के ध्वजवाहक बनकर और अपने पद पर रहते हुए सभी नागरिकों केे अधिकारों का सम्मान करने वाला व्यक्ति हिन्दुत्व की इसी परम्परा में पला हुआ हो सकता है और उसे यदि कुछ लोग फिर भी संकीर्णताओं के मकडज़ाल में फंसा हुआ देख रहे हैं तो वास्तव में ऐसा सोचने वाले स्वयं संकीर्ण हैं। एक भद्रपुरूष और दार्शनिक व्यक्तित्व को रायसीना हिल्स भारत ने भारत ने सचमुच समुद्रमंथन के पश्चात अपना चौदहवां रत्न प्राप्त कर लिया है। समस्त ‘उगता भारत’ परिवार की ओर से हम अपने नवनिर्वाचित राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविन्द का हार्दिक अभिनंदन करते हैं और आशा करते हैं कि उनकी दार्शनिकबुद्घि और गंभीर नेतृत्व देश को सही दिशा देगा और भारत में सही अर्थों में ‘राम राज्य’ स्थापित होगा
मुख्य संपादक, उगता भारत