- गुरुग्राम / नई दिल्ली (अजय कुमार आर्य) यहां पर आयोजित किए गए एक विशेष कार्यक्रम में साहित्यिक जगत के मूर्धन्य विद्वान और स्वनाम धन्य डॉ विनय कुमार सिंघल ‘निश्छल’ की 17 पुस्तकों का एक साथ विमोचन किया गया। विमोचन की गई पुस्तकों के नाम हैं- राम का अंतर्द्वंद , अंतर्जगत की काव्य यात्रा, काव्य परायण, मेरी इक्यावन कविताएं श्रंखला 6 से 16 तक, प्रकृति से वार्तालाप, काव्य अनुष्ठान और काव्य संकल्प।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रुप में उपस्थित हुए डॉ राकेश कुमार आर्य ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि डॉ निश्छल ने साहित्यिक जगत में पुस्तकों के लेखन में जिस प्रकार शतक को छुआ है, वह अपने आप में बहुत ही अनुकरणीय, अद्भुत और अनुपम है। डॉक्टर आर्य ने कहा कि श्री सिंघल की कविताओं में भारतीय मनीषा अपने उच्चतम स्वर में बोलती है। जिससे साहित्यिक लोगों को साहित्य और राष्ट्र की सेवा करने की अनुपम प्रेरणा मिलती है। 17 पुस्तकों का एक साथ विमोचन होना उनकी अद्भुत प्रतिभा और साहित्य सेवा साधना के प्रति समर्पण की भावना को प्रकट करता है।
उन्होंने कहा कि हिंदी साहित्य के लेखकों में जिस प्रकार हिंग्लिश और उर्दू मिश्रित काव्य रचना की अतार्किक और बुद्धिहीन प्रतिस्पर्धा ने पांव पसारे हैं ,वह चिंता का विषय है। इसके विपरीत श्री सिंघल मां भारती की सच्ची साधना करते हुए शब्दों के चयन पर विशेष ध्यान देते हैं। ऐसा नहीं है कि वह किसी अन्य भाषा से विद्वेष रखते हुए ऐसा करते हैं , अपीतु उनका मानना है कि यदि साहित्य की साधना करनी है तो हिंदी के अपने शब्दों का प्रयोग करना किसी भी साहित्यकार या रचनाकार की प्राथमिकता होना चाहिए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त और बहुत ही लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री राकेश कुमार छोकर द्वारा की गई। उन्होंने कहा कि रचना जब विधाता की स्वयं की भाषा में बोलती है तो वह संसार का मार्गदर्शन करती है। ऊर्जा प्रदान करने वाली भाषा और जीवन व जगत के रहस्यों को सुलझाने में समर्थ काव्य रचना स्वयं विधाता की कृति होती है । इसलिए कवि स्वयं रचना करते समय विधाता का एक रूप बन जाता है। यह कहना पूर्णतया उचित ही होगा कि श्री सिंघल जब अपनी प्रतिभा को अपनी पुस्तकों के पृष्ठों पर बिखेरते हैं तो उनके भीतर विधाता का यही स्वरूप प्रकट होता है।
इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार एवं रचनाकार डॉ वीणा शंकर शर्मा ने भी अपने विचार व्यक्त किए और कहा कि मैंने जब भी श्री सिंघल की कोई पुस्तक पढ़ी तभी मुझे नए नए अनुभव हुए हैं। उन्होंने कहा कि श्री सिंघल साहित्य की ऊंची उड़ान को छूने में समर्थ हुए हैं। जो आज के युवा कवियों को कल्पना सी लगती है, पर उन्होंने जिस ऊंचाई को छूने का कीर्तिमान स्थापित किया है वह निश्चय ही आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देती रहेगी।
इसी प्रकार श्रीमती अंजू कालरा दासन ,अश्विनी दासन ने कहा कि श्री सिंघल की साहित्यिक रचनाओं में भारत की चेतना के दर्शन होते हैं। वह अंधेरे में एक दीपक की भांति प्रत्येक साहित्यकार का भारतीय बौद्धिक क्षमताओं के अनुरूप मार्गदर्शन करते हुए दिखाई देते हैं। उनकी प्रत्येक पुस्तक संग्रहणीय है।चित्रलेखा जी ,नलिनी , निशांत सिंघल एवं परिवार ने अतिथियों का स्वागत किया।
अंत में श्री सिंघल ने सभी उपस्थित आगंतुकों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि उनकी अन्तश्चेतना उन्हें जागृत कर साहित्य साधना के लिए प्रेरित करती है। एक अदृश्य शक्ति उनसे ऐसा कराती हुई अनुभव होती है। जिसके कारण वह इतना सब कुछ करने में सफल हुए हैं। उन्होंने कहा कि मैं अपनी इस यात्रा में अपने सभी परिजनों ,प्रियजनों, इष्ट मित्र, बंधु बान्धवों का हृदय से आभार व्यक्त करता हूं जिन्होंने किसी न किसी प्रकार से मेरा सहयोग किया है। साथ ही परम पिता परमेश्वर के प्रति भी ह्रदय से कृतज्ञ हूं जिसने मुझसे असंभव कार्य को संभव करवाया है।
ज्ञात रहे कि 74 वर्षीय श्री सिंघल ने अब तक अपनी 95 पुस्तकें लिखी हैं।इस अवसर पर श्री अश्विनी दासन सहित कई अन्य उपस्थित गणमान्य लोगों ने भी अपने विचार व्यक्त किए।