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आचार्य श्री विष्णुगुप्त
बागेश्वर धाम वाले धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जैसे अबोध, मंद बुद्धि के कथित धर्मचार्यों का गुब्बारा भी जल्द फूटता है और वे जिस तरह से चमकते हैं उसी तरह अस्त भी हो जाते हैं। इसके कोई एक नहीं बल्कि अनेक उदाहरण है। राम-रहीम, आसाराम, रामपाल जैसे उदाहरण भी है। रामदेव को तो सलवार-शमीज पहन कर भागना पड़ा था। आज इनका भाई तो कल ये खुद कटघरे में खडे हों सकते हैं।
बागेश्वर धाम के कथित धर्माचार्य धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री की उल्टी गिनती और आने वाली दुर्दिन तो मैं पहले ही देख लिया था। जब वह कांग्रेसी नेता कमलनाथ को अपने आश्रम में बुला कर स्वागत किया था और दिखाया था कि मेरे अंगने में कांग्रेस के लोग भी ता ता थैया करने के लिए आते हैं। जिनके अंगने में धर्म विरोधी, जिहादी और संस्कृति खोर लोग पहुंचने लगे तो समझो कि उस अंगने के मालिक का बंटाधार होना निश्चित है और उसका पतन भी अवश्यम्भावी है। कांग्रेसी तो जन्मतात संस्कृति खोर और विधर्मी-जिहादी होते हैं। कमलनाथ के पहुंचने का दुष्परिणाम भी सामने आ गया। धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री का भाई कट्टा प्रदर्शन में पकड़ा गया।
प्रसिद्धि हर कोई पचा नहीं पाता है। प्रसिद्धि अंधा कर देता है, खुशफहमी से भर जाता है, अंहकार फलो करने लगता है। निश्चित तौर पर धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री रातोरात प्रसिद्धि के शिखर पर बैठ गया था, इतनी जल्दी ऐसी प्रसिद्धि किसी अन्य को कभी-कभार ही मिलती है। जबकि इनमें वैसी प्रसिद्धि ग्रहण करने की क्षमता ही नहीं थी। न तो बुद्धि तीक्षण है और न ही इनमें राजनीतिक और संस्कृति की पहचान है, धर्म का ज्ञान तो था ही नहीं। सिर्फ भाड़चारण और अंधविश्वास के बल पर कोई ज्ञानी कहलाने का अधिकार नहीं रख सकता है।
कांग्रेसी कमलनाथ क्या पहुंचे इनके चरणों में ये अपने आप को महान और अपरिहार्य मान लिया। सत्ता और राजनीति को चुनौती दे डाली। मेरे चरणों में आओ नही ंतो फिर तुम्हारी सत्ता और राजनीति चलेगी नहीं। पर बागेश्वर धाम वाले मंद बुद्धि के बाबा को नहीं मालूम कि राजनीतिज्ञ कितने खिलाड़ी होते हैं वे समय पर ऐसे बाबाओं को जेल में डालने और इनकी साख पर बट्टा लगवाने की कला जानते हैं। मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री शिवराज चैहान कह चुके हैं कि बाबा कथा करें, धर्म का प्रचार करें, राजनीति को हांकने की कोशिश न करें। शिवराज सिंह चैहान का यह संदेश काफी ग्रहनीय है।
बागेश्वर धाम वाले बाबा की साख चली गयी, विश्वसनीयता तो मूर्खो और अंधविश्वासियों के बीच ही थी। लालची लोग ही प्रभावित होने वालों में शामिल थे। मेरे जैसे लोगों में इनकी न तो साख थी और न विश्वसनीयता। लालची और अंधविश्वासी लोग संघर्ष के समय खिसक जाते हैं। बूरे दिन शुरू होते ही छू मंतर जैसे दूर हो जाते हैं। सूखें पेड़ पर पंक्षियां विहार नहीं करती हैं।
आज इनका भाई अपराध मंें पकड़ा गया है। कल ये भी अपराध में पकड़े जा सकते हैं। कल इन पर कोई युवती खड़ी होकर अपना दूख-दर्द और पीड़ा पुलिस के बीच सुना सकती है। ऐसा हो सकता है, क्योंकि इनके पास इस तरह के दुर्गुन से बचने के लिए न तो चिंतन होता है और न मार्गदर्शक होता है। ऐसी दुश्वारियों से बचने की सलाह लालची और मूर्ख तथा अंधविश्वासी लोग तो दे नहीं सकते हैं, ऐसी श्रेणी के लोग तो सिर्फ चरणागत होने और महान होने का गुनगान ही कर सकते हैं। मार्गदर्शक भी मिलेंगे कहां? मार्गदर्शकों को ये तो अपने पास भी फटकने नहीं देते हैं। मार्गदर्शक भीड़ का सारथी भी नहीं होता।
इसलिए बागेश्वर धाम के बाबा धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री बहकावें में नहीं आये, प्रसिद्धि के बंवडर के फांस में न फंसे, सत्य और नैतिकता का दर्शन करें। अभी उम्र कम है, अभी समय धर्म चिंतन और संस्कृति चिंतन में लगायें। कांग्रेस जैसी बुराइयों और कालनेमियों से बचने की जरूरत हैं। अगर फिर भी प्रसिद्धि के अंहकार में पागल रहेंगे तो फिर इनकी भी दुर्गति आसाराम, रामरहिम और रामपालों की तरह ही होगी।
आचार्य श्री विष्णुगुप्त
नई दिल्ली।
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