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इतिहास के पन्नों से

हरयाणा प्रान्तीय द्वितीय आर्य महासम्मेलन रेवाड़ी हरयाणा स्वामी ओमानंद जी का व्याख्यान

राजार्यसभा और हरयाणा

     हरयाणा के आर्यों ने राजनीति में पर्याप्त भाग लिया है । यहां जो आर्यसमाजी हैं वे ही कांग्रेसी हैं । जो कोई कांग्रेसी आर्यसमाजी नहीं है , वही ढीला है । हरयाणा प्रान्त के लगभग सभी वर्तमान एम.एल.ए. आर्यसमाजी हैं , किन्तु आगे जाकर अपने स्वरूप को भूल जाते हैं । शेर गीदड़ का चोला पहनकर अपने स्वरूप को भूल जाता है । अतः हरयाणाप्रान्त में राजार्यसभा बनानी चाहिये । यदि भलीभांति संघटन होजावे तो हरयाणा पर आर्य छा सकते हैं क्योंकि हरयाणा आर्यों का गढ़ है । धार्मिक साहित्य का प्रचार कम होता जा रहा है और गन्दे अश्लील साहित्य की भरमार है । अतः अच्छे साहित्य का प्रकाशन करना चाहिये । गत वर्ष भी हम ने धार्मिक साहित्य का प्रकाशन किया था और इस वर्ष भी किया है । इसी प्रकार संघटन बनाकर उत्तमोत्तमग्रन्थों का सस्ता सुलभ प्रकाशन अवश्य ही करना चाहिये । साहित्यसेवा ठोस सेवा है ।

गो – रक्षा

     गोरक्षा का भारतीयों के लिये जितना धार्मिक महत्त्व है उतना ही सांस्कृतिक और आर्थिक भी है । महर्षि दयानन्द जी के समय से गोरक्षा एक राजनीतिक समस्या बनी हुई है । १८५७ ई ० के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में युद्ध का एक कारण यह भी था कि भारतीय सिपाहियों को गाय की चर्बी लगे हुए कारतूस मुंह से खींचने पड़ते थे । अत एव भारतीय सेना उत्तेजित हो उठी थी । गाय के महत्त्व को महर्षि दयानन्द जी ने ओझल नहीं होने दिया । इस पर एक स्वतन्त्र पुस्तक ' गोकरुणानिधि ' लिखकर गोरक्षा के सर्वविध लाभ दिखलाकर उनकी रक्षा के लिये प्रेरणा की और गोहत्या को कानून द्वारा बन्द करवाने का यत्न किया । पंजाब विधानसभा ने अब गोहत्या वैधानिक ढङ्ग से बन्द करदी है । यह नियम बना दिया गया है कि जो कोई गोवध करेगा उसको एक हजार रुपया जुर्माना और दो वर्ष का कारावास दण्ड । इसके लिये हम पंजाब सरकार का धन्यवाद करते हैं । इस का श्रेय प्रो ० शेरसिंह , चौ ० बदलूराम , चौ ० माडूसिंह , पं ० समरसिंह वेदालङ्कार , चौ ० देवीलाल आदि पंजाब विधानसभा के आर्यसदस्यों को ही है , जिन्होंने यह नियम पारित कराया है । हरयाणा की गाय अच्छा दूध और अच्छा बछड़ा देती हैं , अत : इनके पालने से दोहरा लाभ होता है । खाने - पीने के लिये उत्तम घी - दूधादि और कृषि के लिये बढ़िया बैल मिल जाते हैं । किन्तु खेद है कि हरयाणा की गायें बाहर जाकर नष्ट हो रही हैं और हरयाणावाले उनकी रक्षा नहीं करते । यहां गायों का स्थान भैंसों ने ले लिया है । हरयाणा के आर्यों को चाहिये कि महर्षि दयानन्द जी की इच्छानुसार अपने - अपने घरों में गाय रखें और उसी के दूध आदि का सेवन करना चाहिये जिससे बल , बुद्धि आदि की वृद्धि हो और वायु आदि सैंकड़ों रोगों से स्वयमेव मुक्ति मिलजावे ।

शुद्धि – प्रचार

       हरयाणा में शुद्धि का कार्य स्वामी श्रद्धानन्द जी महाराज ने किया । उनके पश्चात् भक्त फूलसिंह जी आदि ने । पहिले तो शुद्धि का कार्य कुछ मन्दगति से हुआ । किन्तु सन् १९४७ के पश्चात् मूले जाटों के गांव के गांव शुद्ध होगये । उनके साथ खान - पान का व्यवहार तो कर लिया , किन्तु रिश्ते का नहीं किया , अतः वे पृथक् ही पड़े हैं । जाट , अहीर , सैनी , राजपूत , रोड़ , त्यागी , गूजर आदि अनेक कृषकजातियां हैं , वे भी परस्पर रिश्ता नहीं करतीं । जब तक रोटी बेटी का व्यवहार न होगा , तब तक शुद्धि नहीं होसकती । महर्षि दयानन्द जी और स्वामी श्रद्धानन्द जी के आदेशानुसार शुद्धि का कार्य होता तो आज यह पाकिस्तान ही न बनता । ' न होता बांस न बजती बांसुरी ' । आर्यों ने मेवों को शुद्ध किया तो पौराणिक भाइयों ने विरोध किया और अब हमारी सरकार भी प्रेरणा कर रही है कि वे मेव ही रहें । शुद्धि के न होने से ही पाकिस्तान बनने का दुर्दिन देखना पड़ा और अभी पीछे नागा हिल्ज में ईसाइयों ने विद्रोह कराया ही था । देशद्रोहियों को देश - भक्ति का पाठ पढ़ाने के लिये शुद्धि से बढ़कर अन्य कोई साधन नहीं । और शुद्धि का कार्य आर्यों के बिना किसी के वश का नहीं । जन्म के जाति - पांति के भेद - भाव ने हमारे सङ्घटन को बिगाड़ रखा है । सब के अपने - अपने समाचारपत्र हैं , पृथक् - पृथक् सभा और स्कूल आदि हैं- जाट हाई स्कूल , अहीर हाई स्कूल , वैश्य हाई स्कूल , गौड़ हाई स्कूल , विश्वकर्मा हाई स्कूल , सैनी हाई स्कूल इत्यादि । इन सब संस्थाओं के नामों का परिवर्तन होना चाहिये । ये जन्म के जाति - पांति के भेद - भाव हमारी उन्नति में बाधक हैं । स्वामी स्वतन्त्रानन्द जी महाराज से एक बार पूछा कि ' जाट अच्छे या अहीर ? ' तो उत्तर मिला कि रोहतक के पास जाट अच्छे और रेवाड़ी की ओर अहीर । अर्थात् जहां जिनका आधिक्य है वहां वे अच्छे माने जाते हैं , वैसे दोनों ही अच्छे हैं । इस भेदभाव को दूर करना चाहिये ।
  • अमित सिवाहा

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