आजादी के पचहत्तर साल बाद भी असत्य, अनर्गल, अर्थहीन और असंवैधानिक भाषा बोलने वाले नेताओं की कमी नहीं है ! इन अल्पमति, अज्ञानी, बेईल्म,
अल्पबुद्धि, जाहिल, मंदबुद्धि और विवेक शुन्य राजनीतिक दलों के नेताओं द्वारा बारंबार “संविधान खतरे में है”? बोलना संविधान संशोधन की अधूरी जानकारी के सिवाय और कुछ नहीं ! अस्सी के दशक में नारा उछाला था : “संविधान खतरे में है?” इस नारे की घंटी गले में बांधकर सत्ता सुख से वंचित राजनीतिक दल यत्र तत्र बजाते रहते हैं। आश्चर्य तब होता है जब भारत की सबसे पुरानी पार्टी का दंभ भरने वाले पूर्व अध्यक्ष विदेश में जाकर अपनी मूर्खता का परिचय यह कहते हुए देते हैं कि ‘भारत में प्रजातंत्र खतरे में हैं ! भारत का संविधान खतरे में हैं !!
राहुल गांधी, अखिलेश यादव, फारूक अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती, मायावती, ममता बनर्जी, चंद्रशेखर आजाद रावण,मनिष सिसोदिया और तेजस्वी यादव जैसे नेताओं की अर्धसत्य बकवास से देशवासी भलीभांति परिचित है। लेकिन कानून के ज्ञाता और सर्वोच्च न्यायालय में वकालत करने वाले औवेसी, सलमान खुर्शीद मनु संघवी जैसे संविधान विशेषज्ञ बोलते हैं तो कष्ट होता है।
“संविधान खतरे में है” का नारा यहीं नहीं रुकता ! आजकल बहुजन समाज पार्टी और भीम आर्मी, बैकवर्ड और माइनोरिटी कम्युनिटी एम्पलाई फेडरेशन और
अनुसूचित जाति- जनजाति अधिकारी एवं कर्मचारी संघ के साथ-साथ तमाम क्षेत्रीय पार्टियों के नेता प्रत्येक स्तर के सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक कार्यक्रमों में “संविधान खतरे में है” कहना नहीं भूलते ! सूप बोले तो बोले संग छलनी भी बोले जिसमें सौ सौ छेद।एक तरह से दलित आंदोलन इसी बुनियाद पर खड़ा होता दिखाई देता है कि बाबा साहब अंबेडकर द्वारा लिखित संविधान को बदलने का प्रयास किया जा रहा है ? प्रजातंत्र खतरे में है? आरक्षण समाप्त किया जा रहा है ? आदि।
इस तरह के संविधान संशोधन के संदर्भ में अधूरे ज्ञान पर आधारित आरोपों से आम जनता सहमत नहीं होना चाहिए । क्योंकि भारत एक प्रजातांत्रिक देश है और सात दशक से प्रत्येक क्षेत्र में आशातीत उन्नति कर रहा है । इस उन्नति में भारत के प्रत्येक नागरिक की समान भागीदारी है। भारत जैसे विशाल देश, जहां अनेक धर्म हैं, अनेक भाषाएं हैं, अनेक बोलियां हैं, अनेक जाति और समाज है। वहां की उन्नति सामूहिक उन्नति ही कही जाएगी । संविधान के दायरे यह सब कुछ हो रहा है।
“संविधान खतरे में नहीं है?” का विश्लेषण यह बताता है कि संविधान बिल्कुल भी खतरे में नहीं है। भारत का प्रत्येक नागरिक निश्चित रहे। संविधान को कोई खतरा नहीं है क्योंकि हमारे संविधान निर्माताओं की सोच और कलम दमदार, शानदार और वजनदार रहीं हैं। संविधान संशोधन की प्रक्रिया को इतना जटिल, पारदर्शी और संपूर्ण राष्ट्र हित को ध्यान में रखते हुए बनाया है। जिसका निकट भविष्य में कोई भी राजनीतिक दल अथवा व्यक्ति अथवा संसद अथवा राज्यों की विधानसभा बाल बांका भी नहीं कर सकती !! क्योंकि संविधान के भाग 30 के अनुच्छेद 368 में संविधान संशोधन का विस्तार से वर्णन किया गया है। संविधानिक संशोधन योग्य अनुच्छेदों का अध्ययन करते हैं तो हम पाते हैं कि संविधान में तीन तरीके से संशोधन की व्यवस्था है। साधारण बहुमत, विशेष बहुमत और विशेष बहुमत तथा राज्यों की अनू समर्थन द्वारा संशोधन। “साधारण बहुमत द्वारा संशोधन” के अंतर्गत संसद साधारण विषय जैसे राज्य की सीमा, राज्य का नामकरण आदि विषयों पर संशोधन बिल पास करतीं है और राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद कानून बन जाता है। “विशेष बहुमत द्वारा संशोधन” के अंतर्गत विशेष महत्व के विषयों पर दोनों सदनों में दो तिहाई बहुमत से मंजूरी जरूरी है। जैसे केंद्र शासित प्रदेश में उच्च न्यायालय की स्थापना। “विशेष बहुमत तथा राज्यों का अनु समर्थन” संसोधन के अंतर्गत विशिष्ट और संवेदनशील तथा संपूर्ण राष्ट्र को प्रभावित करने वाले विषय आते हैं। गंभीर विषयों पर संशोधन राज्यसभा और लोकसभा दोनों में दो तिहाई बहुमत से पास होने के बाद वह कानून अथवा संशोधन राज्यों की विधानसभाओं के पास जाता है और वहां कम से कम दो तिहाई अर्थात आधे से अधिक राज्यों की विधानसभाएं केन्द्र द्वारा कानून संशोधन अथवा कानून या किसी कानून में बदलाव लाने के उद्देश्य पारित करती है और फिर राष्ट्रपति के पास हस्ताक्षर के लिए भेजा जाता है। संविधान सम्मत होने पर राष्ट्रपति हस्ताक्षर करता है। तब जाकर कहीं संविधान में परिवर्तन होता है। इतना ही नहीं यदि राष्ट्रपति को लगता है कि कानून में खामियां हैं तो वह संसद को पुनः विचार के लिए लौटा सकता है। राष्ट्रपति द्वारा बिल लौटने के बाद पुनः दोनों सदनों में उसी प्रक्रिया के द्वारा उसे पास होना जरूरी होता है।
यहां यह भी समझना प्रासंगिक होगा कि इतनी जटिल प्रक्रिया के गुजरने के बाद भी यदि कोई कानून संविधान सम्मत नहीं है अथवा राष्ट्रहित में नहीं है तो उसे सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है और सर्वोच्च न्यायालय गहराई से अध्ययन कर उसको लागू करने से पहले पुनः विचार के लिए संसद को कह सकता है।
किस प्रकार संविधान में संशोधन प्रक्रिया की जटिलता और पारदर्शिता को देखते हुए भारतीय जनता के संज्ञान में लाया जाता है कि जो भी लोग यह कहते हैं कि भारतीय संविधान खतरे में है । यह सरासर झूठ है। अतः एतत द्वारा जन सामान्य से निवेदन है कि कृपया भारतीय संविधान में संशोधन की प्रक्रिया को पढ़ें और समझें। और फिर दृढ़ता और गंभीरता से उन लोगों अथवा राजनीतिक दल के नेता अथवा सरकारी कर्मचारी संघ अथवा कोई और भी सामाजिक संगठन यह कहता है कि “संविधान खतरे में है”? से पूछें कि उनको झूठ बोलने में क्या मजा आ रहा है ? वह सरासर झूठ बोल रहे हैं ? अपनी रोटीयां सेंक रहा हैं । आज का मतदाता जागरूक है। वह प्रजातंत्र के लिए क्या अच्छा है ? और क्या बुरा है ? इसकी गहरी समझ रखता है। उसे किसे नकारना है और किसे सत्ता सौंपना है, इसका अनुभव है और भारतीय प्रजातंत्र के नभ को निर्मल बनाए रखने की चिंता भी और कला भी है !!
डॉ बालाराम परमार ‘हॅंसमुख’