मैं आया हूं उन राजद्रोही चरणों पर फूल चढ़ाने
मैं आया हूं उन राजद्रोही चरणों पर फूल चढ़ाने
आज भारतवर्ष अपना 71वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। इस पावन अवसर पर अपने नाम-अनाम स्वतंत्रता सेनानियों को पूरा देश नमन कर रहा है। ‘उगता भारत’ अपने इन नाम-अनाम स्वतंत्रता सेनानियों को नमन करते हुए उनके विषय में कवियों की कविताओं के माध्यम से अपने श्रद्घासुमन अर्पित करता है। गिरधारीलाल आर्य लिखते हैं-
‘जो उतरे थे मुर्दा लाशों को लडऩे का पाठ पढ़ाने,
जो आये थे आजादी के मतवालों का जोश बढ़ाने,
मैं आया हूं उन राजद्रोही चरणों पर फूल चढ़ाने।’
भारत का स्वाधीनता संग्राम हमारे लिए चाहे स्वाधीनता संग्राम था परंतु अंग्रेजों के लिए तो हमारे क्रांतिकारी राजद्रोही की श्रेणी के अपराधी थे। उस समय राजद्रोही होना अंग्रेजों की दृष्टि में अपराध था, परंतु हमारे क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानियों के लिए वह गौरव का विषय था। जिस पर आज हमें भी गर्व और गौरव की अनुभूति होती है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ऐसे राजद्रोहियों के सिरमौर हैं। उनके विषय में कवि लिखता है-
संसार नमन करता जिसको ऐसा कर्मठ युग नेता था,
अपना सुभाष जग का सुभाष भारत का सच्चा नेता था
सीमा प्रांत की धरती का रत्न शहीद हरकिशन 9 जून 1931 को मियां वाली जेल में (पाकिस्तान) फांसी पर लटकाया गया। उनके विषय में कवि ने क्या सुंदर लिखा है-
हम भी आराम उठा सकते थे घर पर रहकर
हमको भी मां-बाप ने पाला था दु:ख सहकर
ब वक्ते रूखास्ति उन्हें इतना भी ना आये कहकर
गोद में आंसू कभी टपकें जो मुख से बहकर
तिफल इनको ही समझ लेना जी के बहलाने को
दूर तक यादे वतन आई थी समझाने को।
पंडित रामप्रसाद बिस्लिम उन क्रांतिकारियों में से एक थे जो एक अच्छे कवि भी थे उन्होंने लिखा है-
”अरूजे कामयाबी पर कभी हिन्दोस्तां होगा
रिहा सय्याद के हाथों से अपना आशियां होगा
चखाएंगे मजा बरबादिये गुलशन का गुलची को
बहार आ जाएगी उसी दम जब अपना बागबां होगा
यह आये दिन की छेड़ अच्छी नहीं एक खंजर-ए-कातिल
बता कब फैसला उनके हमारे दरमियां होगा
जुदा मत हो मेरे पहलू से ए-दर्दे वतन हरगिज
न जाने वाद मुर्दन में कहां और तू कहां होगा?”
हमारे जिन क्रांतिकारियों ने भारत के विषय में और भारतीय स्वाधीनता के विषय में इतने ऊंचे विचार रखे उन्हीं के कारण आज हम स्वतंत्र भारत के स्वतंत्र नागरिक हैं। आज हम स्वतंत्र होकर सोच सकते हैं और स्वतंत्र होकर लिख सकते हैं। जिनके बलिदानों ने हमें आजादी की ये नेमत दी है, उनके विषय में मन बार-बार यही कहता है-
कलम आज उनकी जय बोल
जला अस्थियां अपनी सारी, छिटकाई जिनने चिंगारी
जो चढ़ गये पुण्य वेदी पर, लिये बिना गर्दन का मोल।
कलम आज उनकी जय बोल
अंधा, चकाचौंध का मारा, क्या समझे इतिहास बेचारा,
साखी हैं उनकी महिमा के सूर्य, चंद्र, भूगोल, खगोल।
कलम आज उनकी जय बोल।
भारत युग-युगों तक अपने बलिदानियों के बलिदान को नमन करता रहेगा और कृतज्ञ भाव से उनकी जय बोलता रहेगा। ये वही लोग थे, और वही देश धर्म के परवाने थे उनके विषय में कवि ने लिखा-
नौजवानों यही मौका है उठो खुल खेलें
खिदमते कौम में आये जो बलाये झेलें
फिर मिलेंगी न माता की दुआएं ले लो।
कौम के सदका में माता को जवानी दे दो
देखें कौन आता है इरशाद (आज्ञा) बजा लाने को….
यतीन्द्रनाथ दास देश पर बलिदान हुए। 13 सितंबर 1929 उनकी जीवन यात्रा का अंतिम दिन था। सभी साथी उनकी चार पाई के चारों ओर खड़े थे एक हिचकी आई और उनके प्राण पखेरू साथ लेकर चली गयी। सभी साथियों ने अश्रुपूर्ण नेत्रों से अपने साथी को अंतिम श्रद्घांजलि दी। इसके बाद दो बांसों की शैया पर उनका शव श्रंगार किया गया। उनका बलिदान जेल में हुआ था। इसलिए जैसा बन पड़ा वैसा करके वंदेमातरम् की धुन के साथ उस शव शैया को कंधा देकर जेल के फाटक पर विशाल जनसमूह को सौंप आये। उनके विषय में राष्ट्रकवि दिनकर ने लिखा है-
निर्मम नाता तोड़ जगत का अमरपुरी की ओर चले,
बंधन मुक्ति न हुई जननी की गोद मधुरतम छोड़ चले
जलता नंदवन पुकारता, मधुक कहां मुंह मोड़ चले?
बिलख रही यमुना माधव! क्यों मुरली मंजु मरोड़ चले?
आज हमारी स्वाधीनता को कई शत्रु बड़े ही शत्रु भाव से देख रहे हैं। उन्हें नहीं पता कि भारत मां का एक-एक सैनिक आज भी अपने क्रांतिकारियों के बलिदान की सौगंध उठाकर मां भारती की सेवा के लिए सेना में भरती होता है, यदि हमें अपने क्रांतिकारियों पर नाज है तो अपने वीर सैनिकों की देशभक्ति पर भी नाज है, हम उन्हीं के भरोसे घरों में सोते हैं। शत्रु किसी भूल में न रहे, यह भारत है और भारत का हर सैनिक अपने शत्रु का विध्वंस करना जानता है।