बिखरे मोती: जो प्रभु के समीप रहते हैं-

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ईश समर्पित हो रहे,
हृदय में सद्भाव।
प्रेम – भाव आदर बड़े,
मीठा सरल स्वभाव॥2186॥

मन की शक्ति के संदर्भ में-

रुचि क्षमता को जानके,
मन को लक्ष्य पै डाट।
मनोरथ करता पूर्ण है,
शक्ति- स्रोत विराट॥2187॥

प्रभु कृपा के संदर्भ मे-

हरि – कृपा बिन ना मिले,
यश-धन और सम्मान।
अर्जुन जीता युद्ध को,
सारथी कृपा – निधान॥2188॥

सच्चे हृदय की पुकार को प्रभु अवश्य सुनती है-

वांधा को पूरन करे,
दिल से कर फरियाद।
द्रोपदी के आंसू गिरे,
फौरन की इमदाद॥2189॥

रसना के संदर्भ में –

जिस रसना से हरि भजै,
उसको लगा लगाम।
झूठ – कपट – कटु बोलना,
और चुगली का काम॥2190॥

दर्पण देखने के बजाय आत्मस्वरूप को देखो-

आइना नित देखता,
कैसा मेरा रूप।
अन्तर आइना देख ले,
सुधरै तेरा स्वरूप॥2191॥

ब्रह्म – मुहूर्त में उठो,
बैठो हरी – आगोश।
हरि – ध्यान में डूब के,
ले उर्जा और जोश॥2192॥

                विशेष:

मेरी समस्त रचनाओं का अजस स्त्रोत परमपिता परमात्मा है, जो ब्रह्मांण्ड नायक है,सृष्टि का नियामक और विधायक है। वह अनन्त शुभ संकल्पों और प्रेरणाओं का पुँज है, सभी कृपाओं का पुँज है। मैं तो केवल निमित्त मात्र हूं। मेरी सभी रचनाएं प्रभु की प्रसन्नता के लिए प्रभु चरणों मैं श्रध्दानत होकर समर्पित हैं। इस संदर्भ में मेरा कवि हृदय भाव – विभोर होकर कृतज्ञ भाव से हृदय के तार बजने लगे है, भावनाए शब्दों से आगे चल रही है, बस मैं इतना कहना चाहता हूं –

हरि – कृपा से ही चली,
लेखिनी ये दिन – रात।
मैं तो केवल निमित्त था,
सब तेरी सौगात॥
क्रमशः
पूर्व प्रवक्ता
विजेंदर सिंह आर्य

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