शिव आख्यान
डॉ डी के गर्ग
भाग- 10 अंतिम
ये लेख दस भाग में है , पूरे विषय को सामने लाने का प्रयास किया है। आप अपनी प्रतिक्रिया दे और और अपने विचार से भी अवगत कराये
शिवरात्रि /महाशिवरात्रि
महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है?
पौराणिक मान्यता: फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि मनाया जाता है कहते है कि सृष्टि का प्रारंभ इसी दिन से हुआ। और इसी दिन भगवान शिव का विवाह माता पार्वती के साथ हुआ था। शिवरात्रि तो हर माह को आती है लेकिन शिवरात्रियों में से महाशिवरात्रि को सबसे महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है जो फरवरी-मार्च माह में आती है।
कई लोग महाशिवरात्रि को ही शिवरात्रि भी बोलते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। ये दोनों ही पर्व अलग-अलग हैं। शिवरात्रि हर महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर आती है।
फाल्गुन मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि साल भर में एक ही बार मनाई जाती यानी महाशिवरात्रि साल में एक बार तो वहीं शिवरात्रि हर महिने मनाई जाती है।
विष्लेषण;–
त्रेता काल मे एक महायोगी का नाम भी शिव था जो हिमालय के राजा थे। वह सशरीर पैदा हुए थे अर्थात वह महायोगी शरीरधारी था। फिर उसका वह शरीर नष्ट हो गया।
लेकिन दूसरा शिव ईश्वर तो अजन्मा है, अमर है,निराकार है । फिर महायोगी शिव और ईश्वर शिव की तुलना गलत है।दोनों एक हो ही नहीं सकते। शिवजी तो पैदा हुए और मरे अर्थात जन्म मरण के बंधन में थे। वह स्वयं अपने जन्म मरण के बंधनों को नहीं काट सके, तो फिर दूसरों के बंधनों को कैसे काटेंगे?
इसी प्रकार ईश्वर का एक नाम शंकर भी है, शंकर अर्थात जो सुख का करने हारा है, उस ईश्वर का नाम शंकर है।दूसरी तरफ आप किसी व्यक्ति का नाम भी विश्व में शंकर देखते हो लेकिन वह ईश्वर नही है ।
कृपया इस भ्रांति से निकले।
शंकर यदि ईश्वर का नाम है तो वह शंकर कभी नष्ट नहीं होता, परंतु जो व्यक्ति का नाम शंकर है वह नष्ट होने वाला है। इसलिए ईश्वर के नाम के पर्यायवाचियों के आधार पर भ्रमित होने की आवश्यकता नहीं है।
यह एक आयुर्वेदिक और अत्यंत प्राचीन भारतीय पर्व है। शिवरात्रि माह का सबसे अंधकारपूर्ण दिवस होता है। इस पर्व का समय देखो कि इन दिनों मौसम तेजी से बदला है और न सर्दी है न गर्मी है, लेकिन वायु में कीट उत्पन्न हो रहे है तथा संक्रमण रोग जैसे बुखार, खांसी, एलेर्जी और अन्य बीमारियां तेजी से अपना विकराल रूप ले रही हैं।
इसलिए जनता में एक डर आना स्वाभाविक है , स्वास्थ्य रक्षा के लिए हमारे पूर्वजों ने एक पर्व निर्धारित किया जिसका नाम महाशिवरात्रि दिया।
इसमें एक दो दिन का व्रत और सात्विक भोजन ताकि इन्द्रियों को शुद्ध किया जाए और शरीर के अंदर की मशीन को आराम मिले ताकि शरीर को नए मौसम में स्वतः ढालने में सफल हो। उदाहरण के तौर पर जैसे कि आप लेह लद्दाख जाते है तो शरीर की अनुकूल ढालने के लिए एक दो दिन विश्राम करना पड़ता है ताकि शरीर स्वयं को बदलते वातावरण में स्वयं को ढाल ले।
महाशिवरात्रि पर गंजहा /चिलम पीना: किसी भी प्रकार की नशा खोरी करना किसी भी तरह से ठीक नहीं है। शिव पुराण में कही भी भांग, नशा चिलम का भोले बाबा के नाम से करने के लिए कही नहीं लिखा है। एक और बात ,शिव का निवास जो कैलाश पर्वत पर बताते है ,वहा तो भांग और गंजहा पैदा ही नहीं होती है।
शिव स्तुति का वास्तविक स्वरूप समझिए:
वैदिक काल में वेदों में मूर्ति पूजा का विधान नहीं है और तो और पुराण भी मूर्तिपूजा करने को मना करता है।वेद तो घोषणापूर्वक कहते हैं-
न तस्य प्रतिमाऽअस्ति यस्य नाम महद्यशः। हिरण्यगर्भऽइत्येष मा मा हिंसीदित्येषा यस्मान्न जातऽइत्येषः।। (यजु० अ० ३२ । मं० ३ ।।)
शब्दार्थ:-(यस्य) जिसका (नाम) प्रसिद्ध (महत् यशः) बड़ा यश है (तस्य) उस परमात्मा की (प्रतिमा) मूर्ति (न अस्ति) नहीं है (एषः) वह (हिरण्यगर्भः इति) सूर्यादि तेजस्वी पदार्थों को अपने भीतर धारण करने से हिरण्यगर्भ है।(यस्मात् न जातः इति एषः) जिससे बढ़कर कोई उत्पन्न नहीं हुआ,ऐसा जो प्रसिद्ध है।
स पर्यगाच्छुक्रमकायमव्रणमस्नाविरं शुद्धमपापविद्धम्।
कविर्मनीषी परिभूः स्वयम्भूर्याथातथ्यतोऽर्थान् व्यदधाच्छाश्वतीभ्यः समाभ्यः।।(यजु० ४०/८)
भावार्थ:-वह सर्वशक्तिमान्,शरीर-रहित,छिद्र-रहित,नस-नाड़ी के बन्धन से रहित,पवित्र,पुण्य-युक्त,अन्तर्यामी,
दुष्टों का तिरस्कार करने वाला,स्वतःसिद्ध और सर्वव्यापक है।वही परमेश्वर ठीक-ठीक रीति से जीवों को कर्मफल प्रदान करता है।
यद् द्याव इन्द्र ते शतं शतं भूमिरुत स्युः।
न त्वा वज्रिन्सहस्रं सूर्या अनु न जातमष्ट रोदसी।।(अथर्व० २०/८१/१)
भावार्थ:-सैंकड़ों आकाश ईश्वर की अनन्तता को नहीं माप सकते।सैकड़ों भूमियाँ उसकी तुलना नहीं कर सकतीं।सहस्रों सूर्य,पृथिवी और आकाश भी उसकी तुलना नहीं कर सकते।
एको देवः सर्वभूतेषु गूढः सर्वव्यापी सर्वभूतान्तरात्मा।
कर्माध्यक्षः सर्वभूताधिवासः साक्षी चेता केवलो निर्गुणश्च।। (श्वेता० ६/१२)
भावार्थ:-एक परमात्मा ही सब पदार्थों में छिपा हुआ है।वह सर्वव्यापक है और सब प्राणियों का अन्तरात्मा है।वही कर्मफल प्रदाता है।सब पदार्थों का आश्रय है।वही सम्पूर्ण संसार का साक्षी है,वह ज्ञानस्वरुप,अकेला और निर्गुण-सत्व,रज और तमोगुण से रहित है।
जो परमपिता परमेश्वर सारे संसार को खिलाता- पिलाता है, क्या उसको हम खिला- पिला सकते है? कदाचित नही ।जो सारे विश्व को प्रकाशित करता है, क्या उसे हम दीपक दिखाकर अपमानित नहीं करते?
ईश्वर का सच्चा भक्त वही है जो ईश्वर की आज्ञा का पालन करता है, सबसे प्रीति पूर्वक व्यवहार करता है,सबसे प्रेम करता है, जो वस्तु जैसी है उसको वैसा ही जानता, मानता,और व्यवहार में लाता है। वही ईश्वर का सच्चा भक्त है ।
पर्व विधि:
1. इस पर्व का मुख्य उद्देश्य परम पिता ईश्वर जिसका शिव नाम है उसका ध्यान करना और ईश्वर के गुणों की चर्चा करना है इसलिए इस दिन परिवार से सदस्य वेद मंत्रों का पाठ करें, स्वाध्याय करें और अपनी क्षमता के अनुसार वेद मंत्र अर्थ के साथ कंठस्थ करें।
२. जो मधुमेह रोगी है वो इस दिन से बेल पत्र के पत्तों के रस का सेवन प्रारम्भ कर दें और एक माह तक करें।
३. यज्ञ करे इसमें जावित्री , तिल, गुड, लॉग आदि मिलाए।
४. तामसिक भोजन से दूर रहे।
५. एक समय भोजन करे ,हल्के भोजन करके इन्द्रियों को विश्राम दे।
६. आयुर्वेद पर गोष्ठी का आयोजन करे।
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