शिव आख्यान* भाग 9
शिव आख्यान
डॉ डी के गर्ग
भाग- 9
ये लेख दस भाग में है , पूरे विषय को सामने लाने का प्रयास किया है। आप अपनी प्रतिक्रिया दे और और अपने विचार से भी अवगत कराये
क्या शिव की सवारी बैल है ?
ये बात केवल हिमालय के राजा शिव के विषय में कहीं जा सकती है जो शरीरधारी है। हिमालय के निवासी सवारी और अन्य कृषि कार्यों के लिए याक (बैल) का उपयोग करते है जिसका आकार और उपयोग गौ, बैल की तरह ही किया जाता है। पहाड़ पर याक को गौ की तरह की पूज्य मानते है। याक का दूध पीते हैं। याक केवल पहाड़ों पर ही जीवित रह सकता है और भूमि पर पाया जाने वाला बैल हिमालय पर जीवित नहीं रह सकता।
इससे स्पष्ट है कि महाराजा शिव ने उस समय एक (बैल) की सवारी करते होगे ।वास्त्विक प्रमाण किसी के पास नहीं है लेकिन इसको निराकार शिव की सवारी कहने गलत है।
क्या शिवजी को भांग पीते हुए चित्रित करना सही है?
हिन्दू समाज में शिवजी भगवान को कैलाशपति, नीलकंठ आदि नामों से सम्बोधित किया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शरीरधारी शिवजी भांग का सेवन करते हुए दिखाया गया है। जबकि हिमालय में भांग, गांजा इत्यादि पैदा ही नहीं होते।
राजा शिव एक आदर्शवादी राजा जिनको आज तक भी सम्मान दिया जाता है।
मनुस्मृति में किसी भी प्रकार के नशे से बुद्धि का नाश होना मानते हैं।
वर्जयेन्मधु मानसं च
बुद्धिं लुम्पति यद् द्रव्यम मद्कारी तदुच्यते।।
जैसे अनेक प्रकार के मद्य, गांजा, भांग, अफीम आदि
जो-जो बुद्धि का नाश करने वाले पदार्थ हैं उनका सेवन कभी न करें।
उपरोक्त के आलोक में राजा शिव को नशे का आदि बताना,उसके नाम पर चिलम ,भंग पीना दुख का विषय है।
क्या शिव डमरू बजाते थे ?
किसी भी प्रमाण के अभाव में यह कथन कैलाशपति महाराजा शिव के लिए सत्य प्रतीत होता है।उस समय हिमालय पर दूरसंचार के लिए आजकल की तरह टेलीफोन आदि की सुविधाएं नहीं थी। और आज भी पहाड़ी इलाकों में आपसी सन्देश इशारो में या अन्य माध्यम से दिए जाते है।पहाड़ों पर आपसी संवाद के लिए जोर से आवाज देकर अपना सन्देश पहुंचाना एक टेढ़ा कार्य है। यहाँ डमरू बजाने के दो अर्थ हो सकते हं- संगीत के लिए मधुर डमरू की आवाज निकालना ,२ डमरू की आवाज द्वारा प्रजा को कोई सन्देश देना।
इसका अन्य कोई तार्किक विश्लेषण नहीं बनता कि राजा शिव अपने संवाद आदि के लिए डमरू का कुशलता पूर्वक उपयोग करते थे।
कावँड यात्रा
हिन्दू धर्म शास्त्रों में जैसे गीता, रामायण, महाभारत, वेद, पुराण, उपनिषद काँवड यात्रा द्वारा जल चढ़ाने का जिक्र किसी धर्म शास्त्रों में नही किया गया हैं।
यदि आप शिवपुराण को मानते हो तो शिवपुराण मे गँगा को शिव की पुत्री लिखा है और आप उसे शिवलिंग पर चढाते हैं इसे आस्था बताते हैं। यह आस्था है या पागलपन जरा विचार करो ! बहुत नौजवान यह मानते हैं कि काँवड लाने से सभी मनोकामना पूर्ण होती हैं। मित्रांे किसी भी शास्त्र मंे काँवड लाकर शिव पर चढाना नही लिखा है। वेद, गीता, रामायण, उपनिषद, दर्शन, यहाँ तक कि पुराणों में भी शिव पर काँवड चढाना नही लिखा है। यह केवल फिल्मी दुनियाँ की मनगढंत कहानियाँ हैं।
यदि गंगा को शिव यानी ईश्वर की पुत्री बताया जाता है तो कुछ भी गलत नहीं हैं। परंतु यदि शिव किसी व्यक्ति पुरुष का नाम लेकर और गंगा की उसकी पुत्री बताकर गंगा का जल शिवलिंग पर चढ़ाना कहाँ तक उचित है, ये एक अमानवीयता है।
एक कविता बचपन में सुनी थीः-
दिनी गंगा ने दुहाई मेरी मदद करो भाई किसी को अक्ल इनको नहीं आयी मुझे शिव पुत्री बतावे शिवलिंग पर चढ़ावें पापी तनिक नहीं सरमावें बताओ मैं कहाँ डूब के मरूं।
शिव से विवाह का वास्त्विक भावार्थ
शिव नाम है परमात्मा का , सृष्टि के रचियता का, समस्त जीवधारियों के कल्याण करने वाले परमपिता का जिसने भोजन के लिए अन्न,फल, मेवाए ,पीने के लिए जल, दूध,नदिया और समुंद्र , पर्वत, औषधीयां बनाई है , जिसकी महिमा इतनी अपार की अकल्पनीय है ।
ऐसे ईश्वर को हृदय में उतार लेना ,उसकी स्तुती करना,उसके संरचना के साथ खिलवाड़ नहीं करना,उसके द्वारा दिए हुए जीवन का मूल्य समझकर जीवन भर शिव रूपी ईश्वर का सानिध्य प्राप्त करने को ही शिव रूपी ईश्वर के साथ विवाह की संज्ञा दी गई है जिसको गलत अर्थों में सांसारिक विवाह का स्वरूप देकर विकृत कर दिया है।
हिंदू समाज में विवाह एक पवित्र और अति विश्वास और प्रेम का बंधन है ,जिसको जन्म जन्मांतर तक साथ निभाने का संकल्प लिया जाता है, इसी आलोक में याचक शिव रूपी ईश्वर के साथ अपनी आत्मीयता का संकल्प लेता है।
ईश्वर का ही निज नाम ओ३म् है।ईश्वर के गुणों की व्यख्या वेदो में की गई है जिसमे मुख्य गुण हैं , सच्चिदानन्दस्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनन्त, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वज्ञ सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, अजर, अमर, अभय, नित्य, पवित्र और सृष्टिकर्ता है।जिसे भी हम सुप्रीम पावर कहेंगे उसमें उक्त से कम गुण हो ही नही सकते हैं।
शिव रूपी ईश्वर के गुणों को धारण करना एक उपमा के रूप में हो सकता है की शिव रूपी ईश्वर से विवाह की तरह पवित्र संबंध स्थपित करना।
यदि गंगा को शिव यानी ईश्वर की पुत्री बताया जाता है तो कुछ भी गलत नहीं हैं। परंतु यदि शिव किसी व्यक्ति पुरुष का नाम लेकर और गंगा की उसकी पुत्री बताकर गंगा का जल शिवलिंग पर चढ़ाना कहाँ तक उचित है, ये एक अमानवीयता है।
एक कविता बचपन में सुनी थीः- जल चढ़ाने
में कोई अमानवीयता नही है। शिवलिंग से आप क्या समझते पहले इसपे अपने विचार रखें और ध्यान दे की शिव लिंग का अर्थ संस्कृत भाषा से ले यदि समस्या आए तो अनुवाद के लिए विशेषज्ञ से मिले आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि नर्मदा भी शिव की पुत्री मानी जाती है और उस नदी से निकलने वाला हर पत्थर नर्मदेश्वर शिवलिंग (शिव का प्रतिबिंब) माना जाता है ।
आपका कथन तार्किक है