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आज का चिंतन

वेद ,वृक्ष और पक्षी*

वेद ,वृक्ष और पक्षी


आर्य सागर खारी🖋️

वेद ज्ञान विज्ञान के आदि स्रोत है। मंत्र दृष्टि से सबसे विशाल वेद ‘ऋग्वेद’ के अनेक सूक्त मंत्रों में वनस्पति वृक्ष पक्षी पर्यावरण संरक्षण की शिक्षाएं भरी पड़ी है। वैदिक संस्कृति का आधार ही वेद है। वेदों के संपूर्ण मंत्रों की शिक्षा को मनुष्य को करने योग्य कार्य कर्तव्य अर्थात विधिवाक्य (Do ‘es) ना करने योग्य निषेध अकर्तव्य (Do’nt) दो ही भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है। वेद को छोड़कर दुनिया की किसी आसमानी पुस्तक जमीनी पुस्तक जिन्हें धर्म ग्रंथ का दर्जा लोगों ने दे रखा है उनमें कहीं भी पर्यावरण संरक्षण की शिक्षा नहीं है।

लेकिन ऋग्वेद के मंडल 6 ,48सूक्त के 17के मंत्र के इस भाग अर्थात इस सूक्ति को देखिए।

माकाकम्बीरमुद्वृहो वनस्पतिमशस्तीर्वि हि नीनशः
(ऋग्वेद 6 मंडल सूक्त 48 मंत्र 17)

अर्थात हे! मनुष्यो कौओं आदि पक्षियों की पुष्टि करने वाले वट आदि वृक्ष , पक्षियों के आश्रय वृक्षों को मत काटो और अपने इन अप्रशंसित कर्मों का विशेषता से निरंतर नाश करें।

कितनी सुंदर शिक्षा है वृक्ष परिंदों के लिए उनकी पूरी दुनिया है। वेद सब सत्य विद्याओं की पुस्तक है चारों वेदों के अनेक मंडल अध्याय ऐसी महान शिक्षाओं से भरे पड़े हैं लेकिन धर्मनिरपेक्षता के नाम पर वेदों का पठन-पाठन आज भी स्कूली शिक्षा में निषेध है। वेद पढ़ाना भारत के कथित सेकुलर ताने बाने के लिए आज भी खतरा है काश! हम विद्यालय कॉलेजों में वेद की प्रेरक शिक्षाओं को पढ़ा पाते। वेदों के विरोध की मानसिकता कोई आज की नहीं है अपने ही इसके लिए जिम्मेदार है। ऐसा ही एक प्रसंग ऋषि दयानंद के जीवन से मिलता है। स्वामी दयानंद सरस्वती ने जब वेद भाष्य करना प्रारंभ किया तो उनका उद्देश्य बड़ा व्यापक एवं स्पष्ट था उनका लेखन केवल विद्वान और आर्य समाज के लोगों तक सीमित नहीं था वे चाहते थे कि उनका वेदभाष्य सरकार प्रकाशित करें और वह विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाए। इसी भावना उद्देश्य से महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने पंजाब के गवर्नर को सरकार द्वारा वेदभाष्य छपवाने का आग्रह किया था तो गवर्नर ने उस विचार के लिए एक समिति बनाई उस समिति में काशी सहित देश के अन्य हिस्सों के संस्कृत के विद्वान विश्वविद्यालयों के कुलपति थे । समिति ने निर्णय दिया कि स्वामी दयानंद का वेदभाष्य प्रचलित मान्यता एवं परंपरा के विरुद्ध है अतः ग्राह्य नहीं है। इसके उत्तर में एक पत्र मे स्वामी दयानंद ने इस बात को स्वीकारते हुए कहा मेरा वेद भाष्य उल्टा तो है ,परंतु उल्टे का उल्टा है। स्वामी जी ने आगे कहा मेरा वेद भाष्य परंपराओं के विपरित अवश्य है परंतु उन्ही परंपराओं के विपरित है जो स्वयं सत्य के विपरीत है

महर्षि दयानंद के मंतव्य को उनकी उत्तराधिकारी परोपकारी सभा ने पूर्ण किया कालांतर में।

आओ, ईश्वर की वाणी वेद में वर्णित वृक्षों की रक्षा विषयक ईश्वर के आदेशों का पालन करें। पेड़ों को कटने से बचाएं और पक्षी जगत को लुप्त होने से बचाएं।

आर्य सागर खारी ✍✍✍

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