डॉ डी के गर्ग
भाग- 7
ये लेख दस भाग में है , पूरे विषय को सामने लाने का प्रयास किया है। आप अपनी प्रतिक्रिया दे और और अपने विचार से भी अवगत कराये
भस्मासुर कथा
वास्तविक कथा समझने से पूर्व
काल्पनिक कथा पर विचार करते है।
” एक समय महाराजा भस्मासुर को इच्छा जागृत हुई कि मैं तपस्वी होऊं ।कुछ काल पश्चात उन्हें देव ऋषि नारद के दर्शन हुए ,तो नारद ने कहा अवश्य तपस्वी बनो। वह शिव की तपस्या करने लगे तो शिव आ पहुंचे। शिव ने कहा कि भस्मासुर क्या चाहते हो?
भस्मासुर ने कहा कि भगवान आपके द्वारा यह जो कंगन है इस कंगन को मुझे अर्पित कर दीजिए। अब भगवान शिव ने वह कंगन दे दिया। उस कंगन में यह विशेषता थी यदि वह मस्तिष्क के ऊपर ले भाग में हो तो वह मानव भस्म हो जाता है।
महाराजा शिव तो कैलाश पर जा पहुंचे और भस्मासुर को अभिमान आ गया। जिस को भस्म करने की इच्छा होती उसे कंगन द्वारा भस्म कर देते ।एक समय वह भ्रमण करते हुए कैलाश जा पहुंचे ।जब मानव के विनाश का समय आता है तो इसी प्रकार की बुद्धि बन जाती है ।उसी प्रकार के कारण बन जाते हैं ।भस्मासुर के जब विनाश का समय आया तो वह भ्रमण करते हुए कैलाश पर जा पहुंचा। माता पार्वती के दर्शन करते ही पार्वती पर मोहित हो गए और मोहित होकर के महाराजा शिव से कहा कि या तो मुझे पार्वती को अर्पित करो अन्यथा इस कंगन से मैं आप को भस्म कर दूंगा ।
अब महाराजा शिव ने यह विचारा कि यह तो एक मर्यादा का उल्लंघन होने चला ।क्या करना चाहिए? उसी काल में उन्होंने कहा कि अरे भस्मासुर मुझे कुछ समय प्रदान किया जाए उन्होंने कहा कि बहुत अच्छा।
समय लेकर के शिव कैलाश को त्याग करके ब्रह्मा के द्वार जा पहुंचे। तनिक विचार करिए कि शिवजी अपनी पत्नी को प्राप्त करने के लिए द्वार द्वार भटक रहे हैं। ब्रह्मा ने उनकी बात को सुना लेकिन सहायता करने से इंकार कर दिया। फिर से विचार करें कि भस्मासुर के आगे ब्रह्मा भी हथियार डाल चुके थे।
इसी प्रकार विष्णु के यहां पहुंचे तो विष्णु ने भी सुन कर के इनकार कर दिया। इससे सिद्ध हुआ कि विष्णु भी भस्मासुर को नष्ट नहीं कर सकते थे। इंद्र के पास पहुंचे तो इंद्र नहीं भी सहायता नहीं की।
इसका तात्पर्य है कि सारे देवता असफल हो चुके थे और शिव जी के सहायता नहीं कर पा रहे थे।
अंत में निराश होकर भ्रमण करते हुए पुन: कैलाश पर आ गए और पार्वती से कहा कि देवी अब क्या करना चाहिए ?
यह तो मर्यादा का विनाश होने चला है यदि मर्यादा का विनाश हो गया तो देवी हमारा जीवन व्यर्थ हो जाएगा !उस समय पार्वती ने कहा कि प्रभु यदि आप मेरे कहे वाक्य को स्वीकार कर लें तो मैं आपको कुछ कह रही हूं ।महाराज शिव ने कहा कि कहो, देवी उच्चारण करो।
देवी ने कहा कि भस्मासुर से कह दो और आप मेरा और भस्मासुर का नृत्य करा दीजिए ।जब नृत्य होगा तो जहां जहां मेरा हाथ जाएगा वही वही भस्मासुर का हाथ जाएगा। जब भस्मासुर का हाथ मस्तिष्क के ऊपर के विभाग में जाएगा तो कंगन से भस्मासुर समय नष्ट हो जाएगा ।
माता पार्वती के इस वाक्य को शिव ने स्वीकार कर लिया। अब महाराज शिव ने भस्मासुर से कहा कि हे भस्मासुर! तुम पार्वती के साथ नृत्य करो।
भस्मासुर ने प्रसन्न होकर के यह बात स्वीकार कर लिया और दोनों का नृत्य होने लगा । इस प्रकार योजना के तहत भस्मासुर का अंत उसी कंगन से करा दिया गया।
कथा का वास्तविक भावार्थ : यह तो अज्ञानियों की कहानी थी। विचार करो कि यदि शिव परमात्मा थे ,अर्थात सर्वशक्तिमान थे, तो उनके पृथ्वी पर उत्पन्न होने की आवश्यकता नहीं थी और न ही वह नष्ट होते। ईश्वर तो अजन्मा और अनादि एवं नित्य है । वह जन्म मरण में आता ही नहीं। न हीं वह अवतार धारण करता। न हीं पार्वती के साथ विवाह संस्कार करते ,तथा नहीं संतानोत्पत्ति करते ।
पार्वती के कारण ब्रह्मा विष्णु और इंद्र से सहायता नहीं मांगते ,क्योंकि ईश्वर तो सर्वशक्तिमान है ।
अपने महायोगियों को, अपने मनीषियों को, अपने तपस्वीयों, को मनस्वीयो को विधर्मीयो के द्वारा लान्छित करने का तथा अपमानित करने का अवसर हम स्वयं देते हैं। जब हम महायोगी शिव को भांग पीकर लेटा हुआ दिखाते हैं जब हम ऐसी कपोल कल्पित कल्पनाएं, दिष्टकूट बनाकर समाज में प्रस्तुत करते हैं तो हमारे महा योगियों का मजाक तो उड़ेगा ही।
इसीलिए महर्षि दयानंद ने सच्चे शिव की खोज करने का प्रण लिया था। संसार के समक्ष सत्य को स्थापित किया था। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए आर्य समाज की स्थापना की थी।